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Thursday, 28 March, 2024
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महिलाएं न करें अपने आसपास के पुरुषों पर भरोसा: हरियाणा पुलिस की सलाह

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पुलिस महानिरीक्षक ममता सिंह कहती हैं कि समस्या यह है कि ज्यादातर बलात्कारी पीड़ितों और उनके परिवार वालों की जानपहचान वाले ही होते हैं.

चंडीगढ़: हरियाणा में पिछले सिर्फ एक हफ्ते में बलात्कार के 9 मामले सामने आए हैं. पुलिस की क्षमता पर उठते गंभीर सवालों और इस तरह के अपराधों के प्रति उनकी संवेदनशीलता तथा राज्य में महिलाओं को निशाने पर लेने के लगातार बढ़ते मामलों के साथ यह राज्य पितृसत्ता और देश में सबसे खराब लिंग अनुपात के लिए जाना जाता है.

हालांकि पिछले आंकड़ों के अनुसार, यह संख्या चौंकाने वाला नहीं है. राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों से ये पता चलता है कि 2016 में एक दिन में लगभग तीन बलात्कार के औसत से हरियाणा में 1,187 बलात्कार हुए. इनमें से 191 मामले सामूहिक बलात्कार के थे जो देश में इस तरह के मामलों में सबसे अधिक हैं. लगभग आधे बलात्कार के मामलों में, पीड़िता की उम्र 18 साल से कम थी. इन आंकड़ों में ऐसी घटनाएं शामिल नहीं हैं जिनमें पीड़िता की हत्या कर दी गयी थी, क्योंकि ऐसे मामलों को हत्या के रूप में गिना जाता है.

विवरण में हरियाणा के दो महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है:

1. इस राज्य में सामूहिक बलात्कारों की संख्या राष्ट्रीय औसत से पाँच गुना अधिक है.

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2. महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों का पुलिस द्वारा निपटान की दर 56.2 प्रतिशत देश में दूसरी सबसे कम दर है (राजस्थान में सबसे कम है).

1996 बैच की आईपीएस अधिकारी, ‘प्रिवेंशन ऑफ क्राइम अगेन्स्ट विमेन सेल’ की प्रमुख, पुलिस महानिरीक्षक ममता सिंह ने दिप्रिंट के साथ इस चिंताजनक स्थिति के बारे में बात की.

कुछ अंशः

महिलाओं के खिलाफ अपराधों को नियंत्रित करने में हरियाणा इतना विफल क्यों हो रहा है?

जब एक अज्ञात महिला का अपहरण और बलात्कार होता है, तो इसे अपराधियों में कानून के डर की कमी की तरह देखा जा सकता है. लेकिन अगर आप हरियाणा में बलात्कार के आंकड़ों को देखते हैं, जैसा कि अधिकांश अन्य राज्यों में भी है, अधिकांश मामलों में बलात्कारी पीड़ितों की जान पहचान का ही होता है. इन मामलों में, जो भी परिस्थितियां बलात्कार का कारण बनती हैं, वह पूरी तरह से पुलिस द्वारा पर्याप्त कार्यवाही न करने का परिणाम नहीं हैं.

बलात्कार पीड़िताओं या उनके परिवार के सदस्यों के बारे में एक और बात यह है कि वे लोग अपने आस-पास रहने वाले लोगों पर विश्वास करते हैं और लापरवाह होकर ‘बलात्कारियों’ को अपने घरों में घुसने देते हैं अथवा अपने घर की महिलाओं को उनसे कहीं बाहर मिलने पर ऐतराज नहीं करते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि ऐसा करना उनके लिए खतरनाक हो सकता है.

पुलिस द्वारा बलात्कार पीड़िताओं और उनके परिवार के सदस्यों के साथ अशिष्ट व्यवहार क्यों किया जाता है?

कुछ साल पहले तक यह धारणा थी और यह धारणा काफी हद तक सही भी थी। अब ऐसी शिकायतों के प्रति पुलिस अधिक संवेदनशील है. लेकिन सकारात्मक परिवर्तन होने में समय लगेगा. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि पुलिसकर्मी भी उसी समाज में जन्म लेते हैं जिसमें पीड़ित या अपराधी जन्म लेते हैं. हरियाणा का पुरुष प्रधान समाज इन मामलों में सबसे पहले महिला के क्रियाकलापों पर ही गौर करता है.

यहाँ तक कि हम जूनियर पुलिस अधिकारियों को भी यह समझाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं कि जब कोई महिला शिकायत लेकर पहुँचे तो उसकी बात पर विश्वास किया जाए और एफआईआर दर्ज की जाय.

पुलिस द्वारा इन जाँचों पर खूब जोर नहीं दिया गया है, जो दिया जाना चाहिए था. हरियाणा में इस तरह के लगभग 50 प्रतिशत मामलों में बलात्कारियों को कोई सजा दिए बिना ही छोड़ दिया गया है.

मैं मानती हूँ कि जाँच प्रक्रिया में, विशेष तौर पर सबूत इकठ्ठा करने की प्रकिया में, सुधार किए जाने की आवश्यकता है. हम अपने अधिकारियों को बलात्कार के मामलों में वैज्ञानिक/गैर-वैज्ञानिक सबूत इकट्ठा करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं.

देखा जाए तो बलात्कार के मामले काफी हद तक अभियोग पक्ष द्वारा दिए गए बयान पर निर्भर होते हैं. लेकिन जुटाए गए सबूत इतने ठोस होने चाहिए कि अगर पीड़ित महिला किसी कारणवश अपना बयान बदले तो भी अदालत बलात्कारियों की नाक में दम करने में सक्षम हो सके.

क्या यहाँ पर ऐसे पर्याप्त मामले हैं जिनमें पीडिताओं ने अपनी राय बदली है?

आप सोच भी नहीं सकते, ऐसे बहुत सारे मामले हैं जहाँ बलात्कार को आपसी सहमती में बदल दिया जाता है. इसके पीछे के ये कारण हो सकते हैं:- आपसी संबंधों में विवाद होना, बिना शादी किये ही किसी को भगा कर ले जाना, एक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाना, शादी से पहले शारीरिक संबंधों की जानकारी समाज को हो जाना, पारिवारिक विवाद या कुछ अन्य मामलों में देखा जाता है कि आवारा लड़कियाँ पैसे के चक्कर में ये घिनौना काम करती हैं.

मेरे अपने अनुभव के अनुसार आमतौर पर ऐसे मामलों में लड़कियाँ अपना केस वापस ले लेती हैं और यदि पुलिस को इससे संबंधित कोई पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिलता तो आरोपी पर कुछ जुर्माना लगाकर उसे रिहा कर देती है.

हालांकि अधिकांश वास्तविक बलात्कार के मामलों में पीड़िता और उसके परिवार वाले अंत तक मजबूती से बने रहते हैं और हमारे पास भी उनके दावों का समर्थन करने के लिए बहुत सारे सबूत होते हैं.

क्या यह सच नहीं है कि बलात्कार पीड़िताओं पर, खासकर दलित पीड़िताओं पर, केस वापस लेने के लिए ग्राम पंचायतों द्वारा दबाव बनाया गया है?

हरियाणा में, खाप पंचायतों की गाँवों पर पकड़ बहुत मजबूत है और उनका सही और गलत के प्रति नजरिया बहुत ही तेज है, भले ही हमें इनकी निष्पक्षता पर संदेह हो.

मेरी जानकारी के अनुसार बलात्कार के मामलों में शायद ही कभी खाप या ग्राम पंचायतों का कोई हस्तक्षेप होता है.

हरियाणा में क्यों हो रहे हैं इतने सारे सामूहिक बलात्कार?

दूसरे के साथ मिलकर किसी घटना को अंजाम देना आसान होता है. एक अकेला आदमी किसी अकेली लड़की का अपहरण नहीं कर सकता, वो भी तब जब वह भागने की कोशिश कर रही हो। पुरुषों के गिरोह के लिए अपहरण बहुत आसान हो जाता है.

बलात्कार के मामले में बढ़ रही क्रूरता की व्याख्या आप कैसे करती हैं?

यह मेरे लिए भी एक पहेली है. 2012 के निर्भया मामले से पहले एक पुलिस अधिकारी या किसी अन्य रूप में, मुझे, किसी महिला के शरीर में सरिया डाल देने जैसे घनघोर क्रूरता के मामले याद नहीं हैं. हो सकता है कि बलात्कारी को अपने शिकार के प्रति अधिक क्रूरता दिखाने पर उसे ज्यादा अच्छा महसूस होता हो. वह पीड़िता को अधिक तकलीफ देने वाले तरीकों का प्रयोग करता है.

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