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Saturday, 20 April, 2024
होमहेल्थ5 तरह के संक्रमणों से जूझ रहे फिरोजाबाद के लोगों को सरकारी अस्पताल पर नहीं 'झोलाछाप' पर है भरोसा

5 तरह के संक्रमणों से जूझ रहे फिरोजाबाद के लोगों को सरकारी अस्पताल पर नहीं ‘झोलाछाप’ पर है भरोसा

फिरोजाबाद में इस रिपोर्टर ने डेंगू के मरीजों का इलाज करने में लगे कई झोलाछाप डॉक्टरों को देखा. माखनपुर गांव में ऐसे कम से कम छह ‘क्लीनिक’ मिले, और दो फिरोजाबाद सिटी के महादेव नगर में भी थे.

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फिरोजाबाद: अगर आप डेंगू और चार अन्य संक्रामक रोगों से जूझ रहे फिरोजाबाद के मुख्य शहर और गांवों के गली-मोहल्लों में घूमें तो नजारा कुछ ऐसा दिखेगा जिसे भुला पाना मुश्किल है. सड़क के किनारे चारपाइयों पर मरीजों को लिटा कर रखा गया है, और उनके हाथों में ड्रिप लगी हुई है.

दरअसल, ये वो मरीज हैं जो जिले के विभिन्न हिस्सों में स्थित झोलाछाप डॉक्टरों—जो आम तौर पर एलोपैथिक दवा प्रेस्क्राइब करने वाले गैर-एमबीबीएस चिकित्सक या आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक डॉक्टर होते हैं—के क्लीनिकों में इलाज करा रहे हैं.

कई मरीजों ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराने के अलग-अलग कारण गिनाए, जिसमें एक यह भी है कि वह दो-तीन दिन के इलाज के लिए 2,500 रुपये से 4,000 रुपये के बीच शुल्क लेते हैं.

मरीजों की मुख्य शिकायतों में सरकारी अस्पतालों में कथित तौर पर इलाज पर कोई ध्यान न दिया जाना और निजी अस्पतालों में इलाज काफी महंगा होना शामिल है.

हालांकि, कुछ लोगों ने यह भी कहा कि झोलाछाप उनके आस-पड़ोस में ही अभ्यास कर रहे हैं इसलिए अस्पताल में बेड ढूंढ़ने की मशक्कत की बजाये उनसे संपर्क करना आसान होता है, यही नहीं ‘डॉक्टरों से अपने मरीज पर ध्यान देने की गुहार’ भी नहीं लगानी पड़ती है.

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यह जिला इस समय डेंगू, मलेरिया, स्क्रब टाइफस, लेप्टोस्पायरोसिस और वायरल बुखार के प्रकोप से जूझ रहा है, जिसने अगस्त के अंत से अब तक कम से कम 62 लोगों (उनमें से 80 प्रतिशत बच्चे) की जान ले ली है.

यद्यपि जिला अस्पताल—राज्य का स्वायत्त जिला अस्पताल—का दावा है कि उसके आधे से ज्यादा बेड खाली हैं, दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते डेंगू वार्ड में एक बेड पर दो-दो मरीजों को पाया.

Two patients share a bed at the Firozabad district hospital | Shubhangi Misra | ThePrint
फिरोजाबाद के जिला अस्पताल में दो मरीज एक ही बेड शेयर कर रहे हैं/ शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

वहीं, तीन दिन के दौरे के दौरान, इस रिपोर्टर ने कई झोलाछाप डॉक्टरों को अपने ‘क्लीनिकों’ में डेंगू मरीजों का इलाज करते देखा. माखनपुर गांव में कम से कम छह क्लीनिक थे, दो फिरोजाबाद सिटी के महादेव नगर में और दो घाडी तिवारी गांव के पास दिखे.

माखनपुर के एक फार्मासिस्ट भानु कुमार गुप्ता ने कहा, ‘वे (झोलाछाप) हमारे घरों के आसपास वही इलाज मुहैया करा रहे हैं जो हमें अस्पताल में मिलेगा. डॉक्टरों और इन झोलाछाप में फर्क बस इतना ही है कि उनके पास डिग्री नहीं है. जहां हमारे कई बच्चों ने अस्पतालों में दम तोड़ दिया वहीं, इन डॉक्टरों ने हमारे बहुत से लोगों की जान बचाई है.’

बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को जहां झोलाछाप डॉक्टरों पर पूरा भरोसा है, वहीं इन अप्रशिक्षित चिकित्सकों का दावा है कि वे डॉक्टरों को जगह लेने का प्रयास नहीं करते हैं और केवल प्रारंभिक लक्षणों के आधार पर मरीजों का इलाज करने की कोशिश करते हैं.

इस बीच, जिले के अधिकारियों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को उचित स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए अपनी तरफ से वे पूरी कोशिश कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें: बिहार के भोजपुर में तो झोलाछाप डॉक्टर ही ‘भगवान बन जानें बचा रहे’ क्योंकि अस्पताल तो कोविड मरीजों से भरे पड़े हैं


‘सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं’

तूफान सिंह, जो वायरल बुखार से पीड़ित अपने छह वर्षीय बेटे सुमित का इलाज एक झोलाछाप डॉक्टर से इलाज करा रहा है, ने कहा, ‘सरकारी अस्पताल में कोई आपको देखता ही नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वहां कोई सुविधा नहीं है, आपको मरीजों के साथ बेड साझा करना पड़ता है. मैं अपने बच्चे को यहां ले आया. भले ही डॉक्टर के पास डिग्री नहीं है लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं है. उन्होंने जो दवा दी है, उससे मेरे बच्चे की स्थिति में सुधार महसूस हुआ, मेरे लिए यही काफी है.’

60 वर्षीय गौरी शंकर, जिनकी पत्नी डेंगू से पीड़ित हैं, ने कहा कि वह उन्हें पहले फिरोजाबाद के जिला अस्पताल ही गए थे लेकिन वहां कोई मदद नहीं मिली.

उन्होंने पिछले हफ्ते प्रिंट से बातचीत के दौरान कहा, ‘मैं दो दिन पहले वहां गया था, लेकिन किसी ने मेरी पत्नी की देखभाल पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने हमें पैरासिटामोल दिया और गांव लौटने को कहा. उसे वहां कोई राहत नहीं मिली. अब डॉक्टर साहब के इलाज से मेरी पत्नी को काफी बेहतर महसूस हो रहा है.’

हालांकि, झोलाछाप डॉक्टरों का दावा है कि वे डेंगू जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज का प्रयास नहीं करते हैं, और मरीजों को अस्पताल रेफर करने से पहले केवल बुखार या डिहाइड्रेशन के लिए प्राथमिक उपचार करते हैं.

A dengue patient is treated at a quack 'clinic' in Makhanpur village | Shubhangi Misra | ThePrint
माखनपुर गांव के एक झोलाछाप डॉक्टर ‘क्लीनिक’ में डेंगू के मरीज का इलाज किया जा रहा है | शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

होम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी में स्नातक की डिग्री रखने का दावा करने वाले ऐसे ही एक अप्रशिक्षित डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘मैं बुखार के लिए केवल पैरासिटामोल दे रहा हूं और डिहाइड्रेशन दूर करने के लिए ग्लूकोज ड्रिप लगा रहा हूं. मुझे पता है कि डेंगू का इलाज मेरे वश की बात नहीं है, इसलिए मैं लोगों को दूसरी जगह रेफर करता हूं.’

क्षेत्र के ट्रेंड के बारे में पूछे जाने पर फिरोजाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी दिनेश कुमार प्रेमी ने 23 सितंबर को कहा कि अधिकारी संक्रमण के प्रकोप पर काबू पाने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘एसएन मेडिकल कॉलेज (जिला अस्पताल का दूसरा नाम) में मरीजों की संख्या पीक के दौरान 470 से घटकर अब 270 रह गई है. यह केवल इसलिए नहीं है कि बीमारी का ग्राफ नीचे गिरा है, बल्कि इसलिए है कि मरीजों को पूरे दिन के लिए हम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी भर्ती कर रहे हैं और बिना किसी शुल्क के आवश्यक उपचार मुहैया करा रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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