scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थऑक्सफोर्ड के अध्ययन में दावा- वैक्सीन कोविड ट्रांसमिशन का खतरा घटाती है लेकिन डेल्टा वैरिएंट पर केवल 90 दिन ही असरदार

ऑक्सफोर्ड के अध्ययन में दावा- वैक्सीन कोविड ट्रांसमिशन का खतरा घटाती है लेकिन डेल्टा वैरिएंट पर केवल 90 दिन ही असरदार

इस अध्ययन, जिसका पीर-रिव्यू होना अभी बाकी है, में कहा गया है कि डेल्टा से संक्रमित होने वाले टीका लगवा चुके किसी व्यक्ति से वायरस फैलने की संभावना ज्यादा कम होती है अगर उसे एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की बजाये फाइजर की वैक्सीन लगी हो.

Text Size:

नई दिल्ली: ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड की वैक्सीन संक्रमण से बचाने के साथ-साथ वायरस के ट्रांसमिशन का खतरा भी घटाती है.

हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि फाइजर और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका दोनों कंपनियों के एक-एक टीके पर किए गए इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि दोनों टीकों की दूसरी खुराक के तीन महीने बाद डेल्टा वैरिएंट के ट्रांसमिशन पर इसका प्रभाव घट जाता है. ट्रांसमिशन रोकने की क्षमता में यह कमी दूसरे वाले टीके में ज्यादा स्पष्ट तरीके से नजर आई, जिसे भारत में कोविशील्ड के नाम से बनाया और बेचा जाता है.

इस अध्ययन, जिसका पीर-रिव्यू किया जाना अभी बाकी है, में शोधकर्ताओं ने पाया कि अल्फा और डेल्टा दोनों वैरिएंट के मामले में टीका लगवा चुके लोगों से ट्रांसमिशन की संभावना कम थी. हालांकि, उन्होंने कहा कि दूसरा वैरिएंट ट्रांसमिशन वैक्सीन से मिलने वाली बचाव क्षमता को कुछ घटा देता है.

उनका कहना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि डेल्टा वैरिएंट से होने वाला संक्रमण ज्यादा कॉमन है, जिससे यह टीका लगवा चुके किसी व्यक्ति के संक्रमित होने पर इसके ट्रांसमिशन की संभावना बढ़ जाती है.

अध्ययन यह भी बताता है कि ज्यादा वैक्सीन कवरेज वाली आबादी के बीच डेल्टा वैरिएंट कोविड के मामलों में वृद्धि का कारण क्यों बना हुआ है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

अध्ययन करने वाले लेखकों ने शोध के लिए बड़े पैमाने पर ब्रिटेन में 1,39,164 से अधिक लोगों के कांटैक्ट ट्रेसिंग डेटा का इस्तेमाल किया.

इसमें यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश-स्वीडिश फर्म एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित फाइजर-बायोएनटेक एमआरएनए वैक्सीन और सीएचएडीओएक्स1 दोनों ही संक्रमित लोगों से सार्स-कोव-2 के ट्रांसमिशन के खतरे को कम करते हैं.

‘फाइजर संक्रमण फैलाने से रोकने में ज्यादा कारगर है’

पहले अनुमान लगाया गया था कि टीके वायरल लोड कम करते हैं, और चूंकि हायर वायरल लोड हायर ट्रांसमिशन से जुड़े होते हैं, इसलिए टीके लगने पर संक्रमण फैलने की संभावना भी कम होगी.

हालांकि, ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने इस बात पर ध्यान दिया कि टीकाकरण व्यावहारिक तौर पर संक्रामक वायरस को तेजी से बाहर निकालने में मदद करता है, वहीं यह क्षतिग्रस्त अप्रभावी वायरल पार्टिकल को छोड़ देता है जिनका पता बाद में कोविड टेस्ट के दौरान लगता है.

उन्होंने आगे यह भी जिक्र किया कि डेल्टा से संक्रमित होने वाले टीका लगवा चुके किसी व्यक्ति से वायरस फैलने की संभावना ज्यादा कम होती है अगर उसे एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की बजाये फाइजर की वैक्सीन लगी हो.

टीम ने यह भी देखा कि दोनों ही वैक्सीन के मामले में दूसरी खुराक के तीन महीने बाद आगे चलकर ट्रांसमिशन रोकने की क्षमता कम हो गई.

सुरक्षा घटने के बावजूद यह अल्फा वैरिएंट का संक्रमण फैलने से रोकने के पर्याप्त है. हालांकि, डेल्टा वैरिएंट का ट्रांसमिशन रोकने के लिहाज से, खासकर कोविशील्ड के मामले में, वैक्सीन की क्षमता काफी काम हो जाती है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि कोविशील्ड की दूसरी खुराक लेने के तीन महीने बाद टीके लगवा चुके लोगों और टीका न लगवाने वालों के बीच डेल्टा वैरिएंट के ट्रांसमिशन को लेकर कोई खास अंतर नहीं पाया गया.

उन्होंने आगे कहा कि समय के साथ यह सुरक्षात्मक व्यवहार कम होने के पीछे सामाजिक दूरी और मास्क पहनने जैसे उपायों में कमी आना भी एक बड़ा फैक्टर हो सकता है.

हालांकि, अध्ययनों से चूंकि यह पता चला है कि टीकाकरण करा चुके लोगों में एंटीबॉडी का स्तर समय के साथ घट जाता है, इसलिए इस घटती सुरक्षा के पीछे भी स्पष्ट तौर पर कुछ जैविक कारण हो सकते हैं.

लेखकों का मानता है कि अंततः बूस्टर वैक्सीनेशन संक्रमण फैलने से रोकने के साथ-साथ ट्रांसमिशन पर काबू पाने में भी मददगार हो सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments