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Friday, 19 April, 2024
होमहेल्थवॉलंटियर्स ने बेड्स, ऑक्सीजन, प्लाज़्मा के लिए सोशल मीडिया को कैसे बनाया नेशनल Covid ‘हेल्पलाइन’

वॉलंटियर्स ने बेड्स, ऑक्सीजन, प्लाज़्मा के लिए सोशल मीडिया को कैसे बनाया नेशनल Covid ‘हेल्पलाइन’

वॉलंटियर समूह, जिनमें समाज के अलग अलग वर्गों के सदस्य शामिल हैं- आईटी प्रोफेशनल्स से लेकर कॉलेज छात्रों और आईपीएस अधिकारियों तक- कोविड मरीज़ों की ज़रूरतें पूरी करने में उनकी सहायता कर रहे हैं.

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नई दिल्ली : पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया ग्रुप्स जिनमें व्हाट्सएप भी शामिल है, कोविड-19 मरीज़ों के विशेष अनुरोधों से भरे हुए हैं- जिनमें ऑक्सीजन सिलेंडर्स, रेमडिसिविर दवा, अस्पतालों में बिस्तर और प्लाज़्मा डोनेशन की गुहार लगाई गई है. और देशभर में फैले वॉलंटियर्स और नेक लोगों की बदौलत बहुत से मरीज़ कुछ घंटों के भीतर ही ज़रूरी सहायता पाने में कामयाब रहे हैं.

जो कोई भी ऑनलाइन या सोशल मीडिया पर मदद मांगता है, उसके सामने यक़ीनन कुछ कॉमन नाम और नंबर आ जाते हैं. उन्हीं में से एक नाम है विभा पाण्डे, जो कर्नाटक में लर्निंग स्पेसेज़ नाम की एक संस्था से बतौर आईटी प्रोफेशनल जुड़ी हैं. महामारी की शुरुआत से ही उन्होंने ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने का काम शुरू किया है.

जो लोग उन्हें जानते नहीं हैं वो भी व्हाट्सएप बातचीत में उनका ज़िक्र करते हैं, जब कोई कोविड मरीज़ के लिए अस्पताल में बिस्तर दिलाने के लिए सहायता मांगता है.

‘विभा पाण्डे से बात कीजिए. मैं उन्हें निजी तौर पर नहीं जानता लेकिन वो अस्पताल में बिस्तर दिला सकती हैं,’ इस रिपोर्टर को ये जवाब मिला, जब एक व्हाट्सएप ग्रुप पर सहायता के लिए अनुरोध डाला गया.

पाण्डे ने दिप्रिंट को बताया कि इन दिनों उनका फोन हर समय बजता रहता है.

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उन्होंने कहा, ‘किसी कमी की ख़बर मीडिया या सरकार तक पहुंचने से पहले ही, मुझे पता चल जाती है कि कोई समस्या है, क्योंकि मुझे फोन कॉल्स आने शुरू हो जाते हैं’.

पिछले साल विभा पाण्डे ने कुछ कॉलेज छात्रों के साथ मिलकर, जिन्होंने उनके साथ काम करने के लिए वॉलंटियर किया, लॉकडाउन के दौरान लोगों के घर दवाएं और भोजन भिजवाने का काम किया. वो ग़रीबों को अस्पतालों में बिस्तर दिलाने में भी कामयाब रहीं. इस राष्ट्रीय संकट में लोगों की मदद करने के लिए अब उनके ग्रुप ने @केसेज़गुड़गांव के नाम से एक अलग हैण्डल बना लिया है.

उन्होंने कहा कि उनकी एकमात्र कुशलता यही है कि वो लोगों को बहुत जल्दी समझा लेती हैं. उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी मैं गार्ड्स से झूठ बोल देती हूं, ऐसा दिखावा करती हूं जैसे मैं अस्पताल में किसी डॉक्टर से कॉन्फ्रेंस कॉल पर हूं. मुझे पता है कि परिसर के अंदर पहुंच जाने पर बेड हासिल करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है’.

पाण्डे ने कहा कि समस्या ये है कि लोग सहायता के लिए पीएम नरेंद्र मोदी या अपने राज्य के मुख्यमंत्री को टैग कर देते हैं, क्योंकि अधिकतर लोगों को पता नहीं होता कि उनके स्थानीय प्रशासक कौन हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘संकट के लिए हमें स्थानीय अधिकारियों और राजनेताओं को ज़िम्मेवार ठहराना होगा. उन तक ज़्यादा आसानी से पहुंचा जा सकता है. ज़्यादातर समय मेरे वॉलंटियर्स को सिर्फ उन्हें कॉल करना होता है’.


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‘इस उछाल के दौरान अनुरोध पूरे करना ज़्यादा मुश्किल’

पाण्डे अकेली व्यक्ति नहीं हैं जो कोविड मामलों में उछाल के बीच, लोगों की सहायता के लिए पहल कर रही हैं.

आईपीएस अधिकारी अरुण बोथरा एक और ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने वॉलंटियर्स का एक ऑल इंडिया नेटवर्क तैयार किया है. इंडिया केयर्स नाम का ये ग्रुप भी पिछले साल के लॉकडाउन के बाद से लोगों की सहायता में लगा हुआ है, जब इसने भोजन और दवाएं भिजवाने में लोगों की मदद की थी.

सहायता के लिए ऑनलाइन अनुरोधों की भारी संख्या को देखते हुए इंडिया केयर्स से जुड़े दिल्ली के एक 24 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर पुलकित गोयल ने एक ट्विटर बॉट तैयार किया, जो उल्लेखों को छांटकर इंडिया केयर्स को टैग किए गए ट्वीट्स को वॉलंटियर ग्रुप के टेलीग्राम चैनल को भेज देता है.

अपने प्रयासों को समन्वित करने के लिए ये नेटवर्क एक कोर व्हाट्सएप ग्रुप और दो टेलीग्राम चैनल्स का इस्तेमाल करता है. पिछले साल इस नेटवर्क में 3,000 वॉलंटियर्स शामिल थे.

गोयल के अनुसार, जब मामलों की संख्या कम हो गई तो बहुत से वॉलंटियर्स अपने-अपने रोज़मर्रा के जीवन में वापस चले गए. लेकिन अब, मामलों में उछाल आने के कारण ग्रुप फिर से उन्हें साथ लाने की कोशिश कर रहा है.

लेकिन, गोयल ने इस बात को ज़रूर स्वीकार किया कि इस बार लोग जिस तरह के अनुरोध कर रहे हैं, उन्हें पूरा करना ज़्यादा मुश्किल है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले साल, ज़्यादातर समस्या ये थी कि लोगों को भोजन और दवाएं नहीं मिल पा रहीं थीं. लेकिन इस बार, उन्हें चार चीज़ों की सबसे अधिक ज़रूरत है- प्लाज़्मा, ऑक्सीजन, रेमडिसिविर और अस्पतालों में बिस्तर. और इन सब चीज़ों की सप्लाई कम है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे बहुत से ऑनलाइन रिसोर्सेज़ हैं, जहां फिलहाल ऑक्सीजन सप्लायरों और रेमडिसिविर की सूची दी हुई है, लेकिन जब हम उन्हें कॉल करते हैं तो उनके पास सप्लाईज़ नहीं होतीं’.

इंस्टाग्राम पर वॉलंटियर्स के एक ग्रुप ने प्लाज़्मा डोनर्स डेल्ही नाम से एक पेज बनाया है जो इच्छुक प्लाज़्मा डोनर्स का, ज़रूरतमंद कोविड-19 मरीज़ों से संपर्क कराने की कोशिश करता है. पेज की मुख्य एडमिन एक 21 वर्षीय छात्रा आशी गोयल हैं.

इस ग्रुप को भी प्लाज़्मा के लिए भारी संख्या में अनुरोध मिल रहे हैं और इसने अब एक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें प्लाज़्मा दान करने के इच्छुक या प्लाज़्मा डोनेशन की ज़रूरत वाले लोग पंजीकरण करा सकते हैं.

इसी तरह बेंगलुरू स्थित सिगमा फाउण्डेशन के सीईओ, अमीने-ए-मुदस्सर ने एक वेबसाइट तैयार की है, जो कर्नाटक की राजधानी में कोविड-19 से संबंधित सहायता के लिए एक रेडी रीसोर्स का काम करती है.


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(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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