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Wednesday, 24 April, 2024
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बिहार में ब्लैक फंगस की दवा की कोई कमी नहीं लेकिन इसका कारण एक पुरानी विफलता से जुड़ा है

बिहार में एम्फोटेरिसीन-बी का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है, जिसे ब्लैक फंगस के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. कई राज्यों में इस दवा की किल्लत है.

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नई दिल्ली: ब्लैक फंगस के आधिकारिक रूप से एक महामारी घोषित होने के बाद एंटी-फंगल दवा एम्फोटेरिसीन-बी की मांग बहुत बढ़ गई है, जिसे आमतौर से ब्लैक फंगस कहे जाने वाले संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. कई सूबे इसकी भारी कमी से जूझ रहे हैं और भारत सरकार इसका आयात और घरेलू उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

लेकिन एक राज्य इसका अपवाद है- बिहार.

इस पूर्वी सूबे में एम्फोटेरिसीन-बी का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है. कारण ये है कि इस दवा का इस्तेमाल, काला आज़ार (काला बुखार) के लिए किया जाता है, एक ऐसी बीमारी जिसे भारत खत्म करने की कोशिश कर रहा है. और बिहार देश की काला आज़ार राजधानी है.

काला आज़ार लेशमेनिया दोनोवानी नामक परजीवी से होता है. इसके लक्षण हैं बुखार, तिल्ली और लिवर का बढ़ना, वज़न घटना, हाथ-पैरों की त्वचा का रंग बिगड़ना (इसीलिए नाम पड़ा) और खून की कमी. ये बीमारी रेत मक्खियों के ज़रिए फैलती है. राष्ट्रीय काला आज़ार उन्मूलन कार्यक्रम में कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है, ताकि इन मक्खियों को पनपने से रोका जा सके.

नेशनल वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल तक देश में सामने आए काला आज़ार के कुल 447 मामलों में से 332 मामले बिहार से थे. 2020 में भारत में रिपोर्ट किए गए काला आज़ार के कुल 1,964 मामलों में से 72 प्रतिशत या 1,424- बिहार में थे.

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बिहार के मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास एम्फोटेरिसीन-बी का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है क्योंकि हमारे यहां काला आज़ार के बहुत मामले हैं और उस उद्देश्य से ये दवा पहले ही खरीदी जा चुकी थी. आज सुबह ही हमने एक बैठक की थी, जिसमें काला आज़ार, जापानी एंसिफलाइटिस और एक्यूट एंसिफलाइटिस की स्थिति की समीक्षा की गई’.

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में काला आज़ार अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ताओं द्वारा क्लिनिकल इनफेक्शियस डीज़ीज पत्रिका में 2007 के एक लेख में यह समझाने की कोशिश की गई कि इस बीमारी के लिए दवा का उपयोग कैसे किया गया: ‘भारत में एम्फोटेरिसिन-बी डीओक्सीकोलेट का उपयोग आंत के लेशमेनियासिस (काला आज़ार) के उपचार के लिए एक दशक से भी ज्यादा से किया जा रहा है. लेशमेनिया दोनोवानी संक्रमण के प्रभावी उपचार के रूप में इसकी पुनर्खोज बिहार में पारंपरिक पेंटावैलेंट एंटीमनी थेरेपी के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिरोध के विकास से पैदा हुई थी.’


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काला आज़ार के खात्मे की कई डेडलाइन बीत गईं

भारत ने काला आज़ार को खत्म करने के लिए कई बार समय सीमाएं तय की- जिनमें 2017 में पेश किया गया केंद्रीय बजट भी शामिल था और वो सभी निकल गईं. आखिरी समय सीमा 2020 थी. वो भी कथित रूप से कोविड-19 महामारी की वजह से निकल गई.

काला आज़ार बीमारी की चपेट में आए सबसे ज़्यादा ज़िले बिहार में हैं- 33. इसके बाद 11 ज़िलों से साथ पश्चिम बंगाल है और फिर उत्तर प्रदेश (6) तथा झारखंड (4) है. एनवीबीडीसीपी के अनुसार, इन चार सूबों में लगभग 16.54 करोड़ लोगों पर इस बीमारी का खतरा है. बिहार के अलावा बाकी तीनों राज्यों- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड ने अपने यहां म्यूकरमाइकोसिस दवा की किल्लत बताई है.

21 मई को जारी एक बयान में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया कि इस दवा की कमी है. बयान में कहा गया, ‘ब्लैक फंगस बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटी-फंगल दवा, एम्फोटेरिसीन-बी की भी कथित रूप से कमी बताई जा रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, फार्मास्यूटिकल्स विभाग तथा विदेश मंत्रालय (एमईए) साथ मिलकर एम्फोटेरिसीन-बी दवा के घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं’.

बयान में आगे कहा गया: ‘केंद्र सरकार ने वैश्विक निर्माताओं से सप्लाई मंगाकर, घरेलू उपलब्धता बढ़ाने की दिशा में भी सक्रिय प्रयास किए हैं. देश में इस समय एम्फोटेरिसीन-बी दवा के पांच निर्माता हैं और एक आयात कर्त्ता है. अप्रैल 2021 महीने में इन कंपनियों की उत्पादन क्षमता बेहद सीमित थी. भारत सरकार की सहायता से ये घरेलू निर्माता मई 2021 में कुल मिलाकर एम्फोटेरिसीन-बी की 1,63,752 शीशियों का उत्पादन करेंगे. जून 2021 में इसे और बढ़ाकर 2,55,114 शीशियां कर दिया जाएगा’.

उसके बाद से छह और कंपनियों को इस दवा को बनाने का लाइसेंस दिया गया है.

भारत में अभी तक म्यूकरमाइकोसिस के 11,717 मामले दर्ज हो चुके हैं. इसी महीने केंद्र सरकार ने महामारी रोग अधिनियम के तहत इसे अधिसूचित बीमारी बना दिया, जिसका मतलब है कि जब ब्लैक फंगस का कोई भी मामला आता है, तो राज्यों तथा केंद्र-शासित क्षेत्रों को केंद्र सरकार को सूचित करना होगा.

ब्लैक फंगस के मामलों में उछाल ऐसे समय आया है, जब भारत दूसरी कोविड लहर से जूझ रहा है. केंद्र सरकार ने कहा है कि इस बीमारी और कोविड के इलाज में स्टेरॉयड के बहुत अधिक इस्तेमाल के बीच संबंध से इनकार नहीं किया जा सकता.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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