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Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थकोविड लॉकडाउन में लीवर की बीमारी 10-15% तक बढ़ी, भारतीयों ने पी ज्यादा शराब कम किया काम

कोविड लॉकडाउन में लीवर की बीमारी 10-15% तक बढ़ी, भारतीयों ने पी ज्यादा शराब कम किया काम

विशेषज्ञों का कहना है कि घरों में बंद रहने और शराब ज्यादा पीने की वजह से मामले बढ़े हैं जबकि कुछ का मानना है कि लोगों ने जांच ज्यादा करावाई हैं जिसकी वजह से मामले बढ़े हुए नजर आ रहे हैं.

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नई दिल्ली: कोविड महामारी एक बीमारी से शुरू हुई थी लेकिन अब ये कई अन्य बीमारियों के तेजी से बढ़ने का कारण बन गई है. हालांकि इनका सार्स-कोव-2 वायरस से सीधे -सीधे कोई संबंध नहीं हैं.

हाल फिलहाल में लिवर से जुड़ी बीमारियों के मामलों में भी खासी बढ़ोतरी देखी गई है. दरअसल दुनियाभर में महामारी के दौरान लोगों ने शराब के सेवन की अपनी मात्रा को बढ़ा दिया था. इसे लिवर की बढ़ती समस्याओं के कारण के रूप में देखा जा रहा है. उधर डॉक्टरों का कहना है कि नॉन-अल्कोहल फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) के मामलों में भी वृद्धि हुई है. कोविड लॉकडाउन के दौरान कोई फिजिकल एक्टिविटी न होने कारण लोगों में मोटापा बढ़ा जो इस बीमारी का एक बड़ा कारण है.

फैटी लीवर एक ऐसी स्थिति है जब लिवर में अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है. यह आहार, व्यायाम की कमी /या शराब के सेवन के कारण हो सकती है. हेपेटाइटिस सी जैसे संक्रमण से भी लिवर की बीमारियां हो सकती हैं. डॉक्टरों के अनुसार, कोविड के बाद से उन्होंने लिवर कैंसर के मामलों काफी में वृद्धि देखी हैं. हालांकि ये मामले कोविड या फिर कोविड के नियंत्रण के लिए उठाए गए कदमों की वजह से बढ़े हैं, इसके कोई पर्याप्त दस्तावेज सबूत नहीं हैं.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड डाइजेस्टिव डिजीज, कोलकाता के सलाहकार गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ सौविक मित्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘महामारी के दौरान एनएएफएलडी की घटनाओं में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसका एक बड़ा कारण महामारी के दौरान बढ़ा हुआ मोटापा और एक गतिहीन जीवन शैली है.’

मित्रा ने कहा, ‘शराब की वजह से होने वाली लिवर डिजीज के मामले भी काफी बढ़े हैं. इसके लिए एक आंकड़ा दे पाना मुश्किल है. इस दौरान बहुत से लोग अपना टीकाकरण कराने से चूक गए थे, जिस वजह से हेपेटाइटिस ए के काफी मामले देखने को मिले हैं.’

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महामारी के दौरान ज्यादा शराब पीने और अल्कोहलिक लीवर रोग (एएलडी) के बढ़ते मामले सिर्फ भारत में ही नहीं हैं. पूरी दुनिया में इस तरह की बीमारियों के बढ़ने की जानकारी सामने आई है. पिछले साल हेपेटोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक पेपर में मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के शोधकर्ताओं ने लिखा: ‘कोविड 19 महामारी के दौरान एक साल में अल्कोहल खपत बढ़ने की वजह से एएलडी से जुड़ी 8000 अतिरिक्त मौतें, 18700 डीकंपनसेटेड सिरोसिस के मामले और एचसीसी (हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा) के 1,000 मामले होने का अनुमान है. इसके साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2020 और 2040 के बीच 8.9 मिलियन डिसएबिलिटी एडजस्टिड लाइफ ईयर (यह वैश्विक स्तर पर बीमारियों के बर्डन को मापने का पैमाना है.) हो जाएगा.

रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई कि कोविड-19 महामारी के दौर में 2020 से 2023 के बीच अल्कोहल की खपत में आए बदलाव के कारण 100 अतिरिक्त मौतें और 2800 अतिरिक्त डीकंपनसेटेड सिरोसिस मामले हो सकते है. 1 साल से भी अधिक समय तक लगातार अल्कोहल खपत में हुई वृद्धि अतिरिक्त रोग दर और मृत्यु दर का कारण बन सकती है.


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लीवर प्रत्यारोपण के मामले भी बढ़े

डॉ मित्रा ने कहा, ‘आम तौर पर शराब से संबंधित लीवर की बीमारियों में से केवल पांच से सात प्रतिशत ही उस चरण तक पहुंच पाती हैं जहां ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.’

नई दिल्ली के साकेत में मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सेंटर फॉर लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के अध्यक्ष डॉ सुभाष गुप्ता ने कहा कि इस दौरान शराब से होने वाले नुकसान के कारण लीवर प्रत्यारोपण की जरूरत वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है.

उन्होंने कहा, ‘शराब की वजह से होने वाली लिवर की बीमारी वाले कई मरीज हमारे पास आए हैं. इसमें एक बड़ी संख्या युवा मरीजों की है. महामारी के दौरान ऐसे मामले दोगुने हो गए हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘2021 में, हमने 300 लिवर ट्रांसप्लांट किए हैं. एक कैलेंडर वर्ष में ये अब तक के सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण की संख्या है. इसमें कोई विदेशी मरीज शामिल नहीं है.’

वह बताते हैं कि इसकी तुलना में महामारी से एक साल पहले 200 से 250 लिवर ट्रांसप्लांट किए गए थे.

डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘ कह सकते हैं कि कोविड ने लीवर कैंसर मामलों को बढ़ा दिया है, लेकिन उस पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है.’

एक अन्य ट्रांसप्लांट सर्जन ने अपना नाम न बताते हुए कहा कि पिछले एक दशक से, जब से हमने रिफाइंड शुगर का इस्तेमाल करना शुरू किया है, एनएएफएलडी के मामले बढ़ते आ रहे हैं . लेकिन कोविड लॉकडाउन की वजह से एक विस्फोटक वृद्धि हुई है.’

‘जांच बढ़ी है, बीमारी नहीं’

दिल्ली के बीएलके-मैक्स अस्पताल में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट और इंस्टीट्यूट ऑफ डाइजेस्टिव एंड लिवर डिजीज के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने माना कि महामारी के बाद मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है. लेकिन इसे सीधे तौर पर अचानक से बीमारी के मामलों में बढ़ोत्तरी के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता है. संभव है कि लोगों द्वारा की जा रही जांच की संख्या में बढ़ोतरी के कारण ऐसा हो.

उन्होंने कहा, ‘महामारी के दौरान पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की कई प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल किया गया था. उनमें से कई दवाओं के साइड इफेक्ट लीवर की समस्याओं का कारण बने, लेकिन ये ज्यादा गंभीर नहीं थे. इसके अलावा कुछ लोगों को पहले से भी लीवर की दिक्कते थीं, जिनके बारे में उन्हें पता नहीं था. और वह दिक्कत महामारी के समय उभर कर सामने आईं. ’

डॉ कुमार ने कहा, ‘इसके अलावा, कुछ मरीज ऐसे भी थे जिन्हें पहले से लिवर की बीमारी थी और महामारी के समय में उनकी स्थिति बिगड़ गई. ऐसा कई अन्य बीमारियों के साथ भी हुआ है. मुझे नहीं लगता कि कोविड की वजह से लीवर की बीमारियों में अचानक से उछाल आया है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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