scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमशासनसंसद में विपक्ष के हंगामे का पैटर्न: मुद्दा उठाओ, कार्यवाही स्थगित करवाओ और निकल लो

संसद में विपक्ष के हंगामे का पैटर्न: मुद्दा उठाओ, कार्यवाही स्थगित करवाओ और निकल लो

Text Size:

विमुद्रीकरण के चलते राहुल गांधी ने संसद में बोलने देने की अनुमति पर भूकंप लाने के वादा किया था। लेकिन यह शेख़ी बघारने के अलावा कुछ नहीं है।

नई दिल्ली: यदि लोगों को याद नहीं है कि संसद का बजट सत्र हंगामे कि भेंट क्यों चढ़ा था, जो कि पहले भी कई बार हुआ है, तो इसका आरोप स्मृतिभ्रंश को ना दीजिये जोकि राजनेताओं को लगता है कि मतदाता इस बीमारी से पीड़ित हैं। यहाँ तक कि शायद कॉंग्रेस, जिसने सबसे ज्यादा व्यवधान डाले, को भी याद न हो।

विपक्षी दल, विशेष रूप से कॉंग्रेस, उन मुद्दों पर संसद कि कार्यवाही बाधित करते रहे हैं जिन्हें वे सत्र समाप्त होने के तुरंत बाद भूल जाते हैं। या, एक बार लाइव प्रसारण के समाप्त होने के बाद उनके द्वारा छोड़ दिये गए मुद्दों की लंबी फेहरिस्त से ऐसा प्रतीत होता है।

उन मुद्दों को याद कीजिये जिनकी वजह से 2015 में संसद के बजट सत्र और मानसून सत्र की कार्यप्रक्रिया बाधित हुई थी। उनमें से एक था विपक्षी दलों द्वारा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के इस्तीफे की मांग, क्योंकि एक कैग रिपोर्ट में उन पर पूर्ति ग्रुप के लिए ऋण के विस्तार में अनियमितता बरतने का आरोप था।

बजट सत्र के दौरान कॉंग्रेस सांसदों का नारा था, “चिकन करी ना मटन करी, इस्तीफा दो गडकरी”। उस साल भी मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था क्योंकि एक बेरहम विपक्ष ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (पूर्व आईपीएल अध्यक्ष ललित मोदी की कथित तौर पर मदद करने के लिए) एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (तथाकथित व्यापम घोटाले के लिए) के इस्तीफे की मांग की थी।

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

एक बार इन सत्रों के समाप्त होने के बाद विपक्षी दल अपनी सामान्य जीवन शैली में वापस आ गए और इसी तरह सवालों के घेरे में खड़े केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री भी सामान्य दिनचर्या में दिखाई दिये।

2016 में संसद के बजट सत्र ने राज्य द्वारा संचालित गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम (जीएसपीसी) में तथाकथित कई करोड़ के घोटाले के मुद्दे पर विपक्ष को कार्यवाही में बाधा डालते हुए देखा था। एक विपक्षी नेता को आखिरी बार जीएसपीसी घोटाले के बारे में बात करते हुए कब सुना था?

उस साल सर्दियों के सत्र में विपक्षी दलों ने कई दिनों तक कार्यवाही बाधित रखी थी जिसमें वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विमुद्रीकरण के बारे में स्पष्टीकरण की मांग कर रहे थे और आरोप लगा रहे थे कि बैंक के बाहर कतारों में नगदी प्राप्त करने के संघर्ष में सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। उन्होंने बजट सत्र 2017 के पहले भाग में विमुद्रीकरण पर सरकार पर निशाना साधना जारी रखा, लेकिन बाद में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद बहुत विनम्र और उदार हो गए।

कुछ सत्रों को उन व्यवधानों द्वारा चिह्नित किया गया जो पारस्परिक रूप से सुविधाजनक लगते थे। इसलिए जब विपक्ष ने राफेल सौदे के बारे में सवाल उठाए, तो ट्रेज़री बेंच ने बोफोर्स या अगस्टावेस्टलैंड के बारे में अकड़ के साथ जवाब दिया। तब से कांग्रेस के लोग राफेल पर बात नहीं करते हैं।

संसदीय व्यवधान हमेशा सरकार और विपक्षी दलों के बीच एक-दूसरे पर आरोप लगाने के खेल को बढ़ावा देता है। विपक्ष में रहने के दौरान भाजपा को उसकी व्यवधान पैदा करने वाली रणनीति के बचाव मेँ पेश किए गए तर्क की याद दिलाते हुए विपक्ष का कहना है कि संसद की सुचारु कार्यवाही सुनिश्चित करना सरकार का काम है। 2016 की शुरुआत, जब संसदीय मामलों के तत्कालीन मंत्री वेंकैया नायडू जीएसटी बिल के लिए कॉंग्रेस से समर्थन मांगने के लिए सोनिया गांधी से मिलने 10 जनपथ गए थे, के अलावा सत्तारूढ़ दल के रणनीतिकारों ने विपक्ष को साथ लेने के लिए ज्यादा पहल नहीं की है। इस बार भी यह स्पष्ट है, क्योंकि सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से संसद की सुचारु कार्यवाही के लिए समर्थन मांगने के लिए जूनियर मंत्री विजय गोयल को भेजा था।

चूंकि संसद का मानसून सत्र बुधवार को शुरू हुआ ही है इसलिए आने वाले कई नए मुद्दे के साथ बाधाओं के एक और दौर के लिए खुद को तैयार कर लीजिये।

शायद कुछ अति-आशावादी विमुद्रीकरण के मुद्दे पर राहुल गांधी के “भूकंप” की उम्मीद अब भी कर रहे हों जोकि दिसम्बर 2016 में राहुल गांधी ने वादा किया था या वे राहुल गांधी द्वारा अप्रैल मे किए गए एक और दावे से भी उम्मीद कर रहे हों जिसमें गांधी ने कहा था की यदि उन्हें 15 मिनट तक बोलने की इजाज़त दी जाये तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा छोड़ने पर मजबूर कर देंगे। हालांकि, ये आशावादी फिर से निराश हो सकते हैं।

उनके पास विरोध करने के लिए नए मसले हमेशा तैयार हैं।

Read in English : There’s a pattern to opposition disruptions in Parliament: Raise issue, stall House, move on

share & View comments