scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमशासनउत्तर भारत में धूम्रपान न करने वालों के लंग कैंसर के मामले अब धूम्रपान करने वालों के बराबर: नया अध्ययन

उत्तर भारत में धूम्रपान न करने वालों के लंग कैंसर के मामले अब धूम्रपान करने वालों के बराबर: नया अध्ययन

Text Size:

दिल्ली के एक अस्पताल द्वारा किये गए अध्ययन से भी धूम्रपान न करने वाले युवाओं में इसकी बढ़ती संख्या का पता चलता है।

नई दिल्लीः वर्ल्ड लंग कैंसर डे से पहले एक अध्ययन से पता चला है कि उत्तर भारत में फेफड़े के कैंसर से पीड़ित गैर-धूम्रपान करने वालों की संख्या धूम्रपान करने वालों के ही समान है।

मंगलवार को जारी किए गए सर गंगा राम अस्पताल (एसजीआरएच) द्वारा किए गए एक शोध से पता चला है कि धूम्रपान न करने वाले युवा वर्ग में फेफड़े के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। मार्च 2012 से जून 2018 तक फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 150 लोगों पर अध्ययन किया गया, जिसमें से 50 प्रतिशत मरीज ऐसे पाए गए जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया था और 21 प्रतिशत से अधिक मरीज 50 वर्ष से कम उम्र के थे।

इस जोख़िम भरे ट्रेंड ने एक बार फिर से तंबाकू के धूम्रपान के प्रतिकूल प्रभावों को उजागार किया है, मुख्य रूप से वायु प्रदूषण के कारण, चिकित्सकों ने इसे ‘आगामी महामारी’ करार दिया है।

दिप्रिंट ने पहले ही धूम्रपान न करने वालों और महिलाओं में इस घातक बीमारी की बढ़ती प्रवृत्ति की सूचना दी थी।

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

यह भी पढ़े: More Indians are being diagnosed with lung cancer, and it’s not because they’re smoking

सर गंगा राम अस्पताल में सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के अध्यक्ष, डॉ. अरविन्द कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि “युवाओं, धूम्रपान न करने वालों और महिलाओं में इसकी बढ़ती खतरनाक प्रवृत्ति को देखकर मैं खुद आश्चर्यचकित हूँ। हमने उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब और जम्मू-कश्मीर सहित अधिकांश उत्तरी राज्यों के मरीजों को देखा है। दिल्ली में, यहाँ तक कि एक नवजात भी अपनी पहली सांस के साथ ही स्मोकर बन जाता है। यहाँ पर इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।”

कुमार ने एक अध्ययन किया है और इसकी तुलना 1961 और 2003 के पूर्व अध्ययनों के साथ की और बताया कि फेफड़ों का कैंसर अब केवल ‘धूम्रपान करने वालों’ या ‘बढ़ती उम्र’ की बीमारी नहीं रही है।

उन्होंने बताया, “दशकों पहले, फेफड़ों के कैंसर के मामले के लिए धूम्रपान करने वालों और वृद्ध लोगों के समूहों को जिम्मेदार ठहराया गया जो तेजी से बदल रहा है। हमारे अध्ययन में, धूम्रपान करने वालों और गैर धूम्रपान वालों का अनुपात 1: 1 पाया गया था जो कि सभी पूर्व रिपोर्टों का विरोधी है।”

150 मरीजों में से 31 महिलाएं थीं। जिसमें दिल्ली से लगभग नौ, एनसीआर से 15 और शेष उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से थीं।

अतुल कुमार जैन, गैर धूम्रपान वाले 39 वर्षीय व्यक्ति, ने अपनी बीमारी का खुलासा करते हुए उच्च प्रदूषण को इसका जिम्मेदार ठहराया।

जैन ने दिप्रिंट को बताया, “सदर बाजार में मेरा बिजली के सामान का बिजनेस है। छाती में लगातार संक्रमण के चलते हुए मैंने सामान्य रक्त परीक्षण करवाया और अंततः 2017 में 2ए (2A) चरण के कैंसर होने की कठोर वास्तविकता ने मुझे झकझोर कर रख दिया।”

जैन ने बीते डेढ़ वर्षों में सर्जरी पर करीब 5 लाख रुपये खर्च किए हैं और 6 बार कीमोथेरेपी से गुजरे हैं। एक हाल ही के सीटी स्कैन ने प्रदर्शित किया कि अब वह बीमारी से मुक्त हैं।

स्टडी में बताया गया है कि डायग्नोसिस सबसे बड़ी दिक़्क़त है। लगभग 10 प्रतिशत रोगियों का आकस्मिक रूप से डायग्नोसिस किया गया था जबकि प्रारंभ में 30 प्रतिशत रोगियों का डायग्नोसिस गलत तरीके से किया गया था।
कुमार ने बताया, “फेफड़ों के कैंसर का प्रारंभ में ही पता चल पाना एक चुनौती है लेकिन हमारे अध्ययन में एक चौंकाने वाला तथ्य यह था कि कुछ रोगियों में इसके कोई लक्षण ही नहीं थे। तीस प्रतिशत मरीजों का डायग्नोसिस गलत तरीके से किया जा रहा था और उनका उपचार टीबी रोगी मानकर किया जा रहा था।”

डॉ श्याम अग्रवाल, वरिष्ठ सलाहकार, पल्मोनोलॉजी, सर गंगा राम अस्पताल, ने रेखांकित किया गया है कि लो- डोज सीटी, फेफड़ों के कैंसर का पता लगाने की एक नई तकनीक, भारत में बीमारी के उपचार का एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकती है।

यह भी पढ़े: A ‘GPS’ will help AIIMS detect, treat lung cancer

Read in English : Number of non-smokers with lung cancer in north India is now same as smokers: New study

share & View comments