scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमशासनमुस्लिम युवा सत्ता में भागीदारी के लिए आईएएस,आईपीएस की तरफ कर रहे है रुख़

मुस्लिम युवा सत्ता में भागीदारी के लिए आईएएस,आईपीएस की तरफ कर रहे है रुख़

Text Size:

आबादी का लगभग 15 प्रतिशत होने के बावजूद, मुस्लिमों की सिविल सेवा में नुमाइंदगी बहुत कम है. लेकिन मुस्लिम अधिकारी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि व्यवस्था उनके साथ अनुकूल व्यहवार करें.

नई दिल्ली: कुछ महीने पहले, 24 वर्षीय तैयब पठान संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा की तैयारी के लिए महाराष्ट्र के मराठवाड़ा से दिल्ली आये. पठान एक अच्छा मैकेनिकल इंजीनियर था जिसका कॉलेज से प्लेसमेंट हुआ, लेकिन उसने इससे इनकार कर दिया ताकि वह देश की प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं में शामिल हो सके.

भारत की आबादी का लगभग 15 प्रतिशत होने के बावजूद, मुस्लिमों की सिविल सेवाओं में नुमांइदगी काफ़ी कम है – पिछले साल केवल 5 प्रतिशत सफल यूपीएससी उम्मीदवार मुस्लिम थे, और यहां तक कि यह पिछले वर्षों की तुलना में सुधार था.

पठान ने कहा “भारत में हर क्षेत्र में मुसलमानों की नुमाइंदगी बहुत कम ही … चाहे वह एमबीबीएस, इंजीनियरिंग, राजनीति या कानून हो – किसी भी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या मुस्लिम आबादी से मेल नहीं खाती है. यूपीएससी कोई अपवाद नहीं है”.


यह भी पढ़ें : India needs jobs for all, including its Muslims

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


“लेकिन यह बदलाव की शुरुआत है. यूपीएससी परीक्षा देने के लिए बहुत सारे मुसलमान आगे आ रहे हैं, और उनमें से बहुत से इसमें सफल भी हो रहे है. अब हमारे समुदाय के भीतर ही बहुत से रोल मॉडल हैं”

सबको बराबर का मौका

संख्या पठान के दावे की पुष्टि करती है. इतिहास में पहली बार, 50 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों ने 2017 में यूपीएससी परीक्षा पास की और फिर 2018 में फिर से 50 से अधिक उम्मीदवारों ने सफलता प्राप्त की.

सफलता का आंकड़ा 2013, 2014, 2015 और 2016 में, यह संख्या क्रमशः 30, 34, 38 और 36 थी.

पठान ने कहा “यूपीएससी एक ऐसा संस्थान है जो सबको बराबर का मौका देता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा नेता इन दिनों क्या कहता है. यूपीएससी कोई भेदभाव नहीं करता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि मुसलमान भी आगे आएं और इसका उपयोग करें.”

एक ऐसे समय में जब देश का राजनीतिक संवाद धर्म के आधार पर बहुत बट चुका है, यह एक भावना है जिसकी गूंज समुदाय के भीतर कई लोगों है.

मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के पूर्व कुलपति ज़फर सरेशवाला ने कहा “यूपीएससी एक उचित संस्था है, इसलिए इस समय जब राम मंदिर, लिंचिंग इत्यादि की बात हो, देश में राजनीतिक संवाद के क्षरण के बारे में शिकायत करने के बजाय, मुस्लिमों को यह देखने की ज़रूरत है कि वे सत्ता में अधिकार कैसे ले सके.”

दिप्रिंट के पहले साक्षात्कार में, सरेशवाला ने कहा था: “मैं अपने समुदाय से लोगों से कहता हूं, उन पार्टियों के साथ मत चलें जो आपको टिकट नहीं देते है. कड़ी मेहनत करें और यूपीएससी जैसे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करें (सत्ता में हिस्सा रखने के लिए). ”

श्रेय का हकदार कौन है?

हमदार्ड स्टडी सर्किल, आगाज़ फाउंडेशन, लार्कस्पुर हाउस जैसे देश भर में, कई कोचिंग संस्थान जो विशेष रूप से मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए मुफ़्त या सब्सिडी वाली कोचिंग प्रदान करते है.

राजधानी के ज़कात फाउंडेशन ने 51 मुस्लिम उम्मीदवारों को तैयार किया जिसमें से 26 ने इस वर्ष सफलता प्राप्त की. ज़कात फाउंडेशन दिल्ली के सत्ता के गलियारे में और अधिक मुस्लिमों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के प्रयास में सबसे आगे है.

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अधिक संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों के चयन का सारा श्रेय नरेंद्र मोदी सरकार को दिया वहीं ज़कात फाउंडेशन के अध्यक्ष और पूर्व सिविल सेवक डॉ सैयद ज़फर महमूद इस बात से काफ़ी असहमत थे.

महमूद 1977 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी है और सच्चर कमेटी के सदस्य है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “ये मान लें कि हम इस सरकार के होने के बावजूद ऐसा करने में सक्षम हुए हैं लेकिन इसकी वजह से नहीं. ”

महमूद को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा विशेष ड्यूटी (ओएसडी) के तौर पर नियुक्त किया गया था.

2006 में सौपी गयी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने अधिक मुसलमानों को शासन में लाने की ज़रूरत पर बल दिया था, उस समय, केवल 3 प्रतिशत आईएएस अधिकारी, आईएफएस अधिकारियों का 1.8 प्रतिशत और 4 प्रतिशत आईपीएस अधिकारी मुस्लिम थे, जबकि उनकी आबादी 2001 की जनगणना के अनुसार 13.4 प्रतिशत थी.

क्यों प्रतिनिधित्व बढ़ाना महत्वपूर्ण है

महमूद, जो भारत के कई शिक्षित मुसलमानों के जैसे हैं, ऐसा महसूस करते है कि देश में राजनीतिक संवाद में तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है, वे सिविल सेवा को “स्टील फ्रेम” कहते हैं जो मुसलमानों को देश की प्रशासन संरचना का हिस्सा बनने का उचित मौका दे सकती है.

यह पूछे जाने पर कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व समुदाय के सशक्तिकरण में कैसे मदद करता है, महमूद ने एक किस्से को याद किया.

“1985 में, मुझे फैज़ाबाद में एक साल के लिए तैनात किया गया था. मेरे आखिरी दिन, दाढ़ी वाले,टोपी पहने हुए मुस्लिम व्यापारी मेरे कार्यालय में आए और उन्होंने कहा धन्यवाद.

“मैंने कभी भी अपने एक साल के कार्यकाल के दौरान उनसे मुलाकात नहीं की थी, इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ कि वह मुझे धन्यवाद देना क्यों चाहता था. लेकिन जब मैंने उससे पूछा, उन्होंने कहा, ‘जिस दिन आप यहां आए थे, आपके कर्मचारियों ने कहा,’ मुल्ला जी, अब आपका काम हो जाया करेगा”

महमूद ने कहा, “यह नौकरशाही में प्रतिनिधित्व के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का एक प्रकार है. समुदाय के सदस्यों के बीच आत्मविश्वास की भावना है.”

उदाहरण के लिए इसका “प्रभाव हिंदुओं पर भी है. यहां तक कि यदि एक मुसलमान सुन रहा है, तो उसकी उपस्थिति टिप्पणी करने की शैली को बदलती है.”

भ्रम को कम करना

अप्रैल 2018 तक, दिप्रिंट द्वारा मूल्यांकन किए गए आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव और उसके ऊपर के पद धारण करने वाले 1.33 प्रतिशत अधिकारी ही मुस्लिम है. केंद्र में केवल एक मुस्लिम अतिरिक्त सचिव रैंक अधिकारी था, और कोई सचिव रैंक अधिकारी नहीं था जो मुसलमान हो.

महमूद ने कहा, “लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि व्यवस्था मुसलमानों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है … यहां तक कि मुसलमानों ने भी सिविल सर्विस को गंभीरता से नहीं लिया जितना लेना चाहिए था और इसे बदलने की ज़रूरत है.”

“इसके दो कारण हैं. एक, समुदाय के भीतर जागरूकता की कमी है, और दूसरा, व्यवस्था में कम विश्वास क्योंकि भ्रम और भेदभाव की भावना है. लेकिन यह सच नहीं है, हालांकि, यूपीएससी बहुत ही न्याययुक्त संस्थान है.”

24 वर्षीय उम्मीदवार पठान सहमति जताते है: “राजनीति और प्रशासन के बीच एक अंतर है. राजनीति मुसलमानों के खिलाफ झुकी हुई है, प्रशासन नहीं. और अधिक से अधिक मुस्लिम युवाओं को इसके अंतर को पहचानना और समझना चाहिए.”


यह भी पढ़ें : UPSC notifies lowest number of vacancies in 10 years. Is this the Modi effect at play?


जम्मू-कश्मीर के मुखर आईएएस अधिकारी शाह फैसल,जो 2009 में सिविल सेवा परीक्षा में शीर्ष स्थान पर रहे उनके लिए यह केवल अपने संवैधानिक हक को प्राप्त करना और अधिकारों पर जोर देने का प्रयास करने का विषय है.

उन्होंने कहा “हमारा संविधान इस देश के सभी लोगों के को समान अवसर प्रदान करता है. लेकिन जब तक हम उन अवसरों को नहीं तलाशेंगे, हम वहां नहीं पहुंचेंगे.

“मुस्लिमों को, किसी अन्य जनसंख्या समूह की तरह, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे देश के शासन संरचनाओं से बाहर न रह जाये.”

Read in English : India’s young Muslims are taking the IAS, IPS route to get a share of power

share & View comments