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Thursday, 28 March, 2024
होमशासन10% लोगों को भी संतुष्ट न कर पायी यूपी और पंजाब पुलिस

10% लोगों को भी संतुष्ट न कर पायी यूपी और पंजाब पुलिस

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कॉमन कॉज-CSDS की रिपोर्ट के अनुसार,यूपी में 8% और पंजाब में सिर्फ 9% लोग ही अपने पुलिस बल से संतुष्ट हैं।सूची में हिमाचल प्रदेश और हरियाणा 71% के साथ शीर्ष पर है।

नई दिल्लीः हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के लोग अपने सम्बंधित पुलिस बल के काम करने के तरीके से संतुष्ट हैं,जबकि पंजाब और उत्तर प्रदेश के लोग अपने क्षेत्र की पुलिस को खराब मानते हैं।

पूरे भारत में पुलिस के प्रदर्शन और अनुभव को लेकर, एनजीओ कॉमन कॉज़ और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम मेंबुधवार को जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल और हरियाणा में लोगों की संतुष्टि का स्तर 71 प्रतिशत है, जबकि यूपी और पंजाब में यह प्रतिशत सिर्फ 8 और 9 है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो सहित, आधिकारिक आंकड़ों के विश्लेषण और 22 राज्यों में एक अनुभव सर्वेक्षण के बाद तैयार रिपोर्ट में,अंतराल और प्रणालीगत अक्षमताएं, जो स्थानिक बन गईं हैं, पर प्रकाश डाला गया है।

“इस रिपोर्ट में विश्लेषण को मुख्य रूप से सर्वोत्तम या सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों के क्रम में व्यवस्थित किया गया है। कॉमन कॉज द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है, कि उम्र, लिंग, जाति, समुदाय, ग्रामीण या शैक्षिक स्थिति जैसे मानकों पर भी जानकारी दी गयी है।“

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“यह सर्वेक्षण, संकट और अपराध के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली की न्यायसंगति और प्रतिक्रिया के स्तर, और समाज के कमजोर तबके के सम्मान के साथ पहुँच और निष्पक्षता के स्तर की तस्वीर सामने लाता है।”

मुख्य निष्कर्षः पुलिस ने सबसे गरीब वर्ग को अधिक सम्पर्क में लिया

रिपोर्ट के अनुसार यह पता चला है कि पिछले चार से पांच वर्षों में 82 प्रतिशत लोगों का पुलिस के साथ कोई भी संपर्क स्थापित नहीं हुआ था। इनमें से 67 प्रतिशत लोगों ने पुलिस के साथ सम्पर्क किया था, जबकि पुलिस ने महज 17 प्रतिशत लोगों के साथ ही सम्पर्क स्थापित किया था।

इस श्रेणी में,आदिवासी (23 प्रतिशत), मुस्लिम (21 प्रतिशत),ओबीसी (17 प्रतिशत),दलित (16 प्रतिशत), उच्च जातियाँ (13 प्रतिशत) और अन्य (10 प्रतिशत)शामिल थे।

कॉमन कॉज के निदेशक विपुल मुदगल ने यह भी कहा कि पुलिस ने अमीरों की तुलना में गरीबों से लगभग 2 गुना अधिक सम्पर्क किया।

पिछड़े समुदायों के साथ भेदभाव

रिपोर्ट से पता चलता है कि समाज के पिछड़े समुदायों को पुलिस द्वारा किए गए अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा था।

पुलिस द्वारा कथित तौर पर भेदभाव किया गया था जिससे 37 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियाँ,30 प्रतिशत ओबीसी, 29 प्रतिशत एससी, 32 प्रतिशत मुस्लिम और 27 प्रतिशत उच्च जाति के हिंदू संतुष्ट नहीं थे। इसके साथ ही पुलिस द्वारा शिक्षित लोगों की तुलना में अशिक्षित लोगों के साथ तीन गुना अधिक भेदभाव किया गया था।

51 प्रतिशत लोगों ने पुलिस द्वारा वर्ग के आधार पर किए गए भेदभाव के बारे में बताया गया था, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने यह कहा कि भेदभाव लिंग के आधार पर हुआ है। 26 प्रतिशत लोगों ने जाति के आधार पर भेदभाव होने के बारे में बताया था, जबकि 19 प्रतिशत लोगों की यह शिकायत थी कि भेदभाव धर्म के आधार पर किया गया है।

आरोप हैं कि पुलिस विशिष्ट समुदायों को निशाना बनाती है, एक रिपोर्ट में यह बताया गया कि दलितों को तुच्छ अपराधों में गलत तरीके से फंसाया गया था जिस रिपोर्ट पर 38 प्रतिशत लोगों ने अपनी सहमति व्यक्त की थी, 28 प्रतिशत लोगों ने यह भी कहा कि आदिवासियों को माओवादियों को लेकर गलत तरीके से फंसाया गया था, जबकि मुसलमानों और आतंकवाद से जुड़े आरोपों के लिए लोगों के आंकड़े 27 प्रतिशत थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.पी. शाह ने कहा,“रिपोर्ट हमें बताती है कि पुलिस राज्यों में किस तरह से काम करती है।यह हमें प्रशासन की स्थिति के बारे में जानकारी देती है।जहाँ पर पुलिस की कोई भी जवाबदेही नहीं होती है निश्चित ही वहाँ पर अराजकता होगी, पिछड़े समुदाय के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा, तथा इससे लोगों के मन से कानून की अवधारणा समाप्त हो जाएगी।

फोरेंसिक की शोचनीय स्थिति

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पूरे भारत की फोरेंसिक साइंस की स्थिति भयानक थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 67 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी और उससे भी अधिक बिहार में 80 फीसदी की कमी है।

धन का कुप्रबंधन

आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 71 प्रतिशत, यूपी में 41 प्रतिशत और असम में 32 प्रतिशत धन की कमी है। कॉमन कॉज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंधक मुदगल ने यह कहा कि “यह सामान्यतः धन का कुप्रबंधन और प्रशिक्षण के बुनियादी ढांचे की कमी का संकेत देता है” । “यूपी सरकार ने अपनी लाचारी के कारण प्रशिक्षण के लिए प्रदान की गई धनीराशि में से 80 प्रतिशत से ज्यादा की धनराशि वापस कर दी है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है अधिकांश राज्यों में कुल संज्ञेय अपराधों की तुलना में एससी, एसटी और गरीब बच्चों को लेकर दर्ज कराये गए मामलों पर की गई कार्यवाही का स्तर बहुत शोचनीय था।

एससी, एसटी और महिलाओं के प्रति निचले स्तर का प्रतिनिधित्व

रिपोर्ट में कहा गया है कि 22 राज्यों में से 19 राज्यों के एससी-एसटी वर्ग और महिला समुदाय को सेना में भर्ती के लिये योग्य प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

“हमने पाया कि 22 राज्यों में से 13 राज्यों में ओबीसी के प्रतिनिधित्व में कमी आई है, एसटी के 22 में से 16, और महिलाओं के लिये 22 राज्यों में से किसी भी राज्य में उन्हें आवश्यक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया जोकि 33 प्रतिशत अपेक्षित है‘’ रिपोर्ट के अनुसार।

पुलिस की व्यापक स्थिति के बारे में बोलते हुए, पूर्व डीजीपी और भारतीय पुलिस फाउंडेशन के चेयरमैन सूर्य प्रकाश सिंह ने कहा: “राजनीतिकरण और क्रमिक आपराधिकरण ने पुलिस को खराब कर दिया है। उन्होंने कहा “इसलिए इसमें सुधार की जरूरत है। यदि हम आर्थिक प्रगति की गति को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें सुधार की आवश्यकता है। आर्थिक प्रगति हासिल करने के लिए, कानून और व्यवस्था बनाये रखने की जरूरत है, अन्यथा एक व्यापारी कभी भी किसी राज्य में निवेश करने के बारे में क्यों सोचेगा? ”

Read in English:Less than 10% of people in UP & Punjab are satisfied with their police force

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