scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमसमाज-संस्कृतिडॉक्टर से एसपी बने अभिषेक पल्लव की आंखें क्यों छलक पड़ीं?

डॉक्टर से एसपी बने अभिषेक पल्लव की आंखें क्यों छलक पड़ीं?

Text Size:

मंगलवार को दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में दो पुलिसकर्मी और एक पत्रकार की मौत हो गई थी. इस घटना के बारे में बताते हुए एसपी अभिषेक पल्लव भावुक हो गए.

नई दिल्ली: आम तौर पर ऐसा होता है कि पुलिस एनकाउंटर में मारे गए लोगों के परिजन रोते हैं और पुलिस अधिकारी कैमरे पर बयान देने और अपना बखान करने में व्यस्त होते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पहली बार ऐसा देखने को मिला कि एनकाउंटर के बाद पुलिस अधीक्षक एसपी अभिषेक पल्लव कैमरे के सामने रो पड़े.

मंगलवार को दंतेवाड़ा में एक नक्सली हमले में दो पुलिसकर्मी और दूरदर्शन के एक कैमरामैन की मौत हो गई थी. यहां पर पुलिस और कई मीडियाकर्मियों की टीम निलवाया गांव में आई थी, जहां पर गांव के लोग 20 साल बाद 12 नवंबर को वोट डालने जा रहे हैं. नक्सल हमले की इस घटना के बारे में बताते हुए एसपी अभिषेक पल्लव भावुक हो गए.

अभिषेक ने दिप्रिंट को बताया, ‘पत्रकारों और पुलिसकर्मियों पर 100 से लेकर 150 नक्सलियों ने हमला बोला था.’

बौखलाए नक्सलियों ने किया मीडिया पर हमला

प्रेस कांफ्रेंस में भावुक होते हुए उन्होंने कहा, ‘उनको बचाना संभव नहीं था तो हमने एंबुलेंस का इंतज़ार किया, एंबुलेंस से उनको यहां से भेजा. हमने पूरे इलाके को घेरा, जो दो हथियार उन्होंने लूट लिए थे हम उसे वापस पाने में असफल रहे. दो नक्सलियों को भी गोली लगी है. वे कहीं आसपास होंगे.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने मीडिया को दिए बयान में बताया, ‘दो तीन पहले यहां पर छह मीडिया टीमें यहां आ चुकी हैं. गांव वालों ने दिल खोलकर उनसे बात की और बताया है कि 20 साल बाद पहली बार वे मतदान करेंगे. उन्होंने नक्सलियों से लगातार दस दिन तक मार खाने के बाद इस रोड को नहीं काटा. उन्होंने आकर बोला कि सर, हम मर जाएंगे लेकिन रोड बनाकर रहेंगे. गांव वाले नक्सलियों की नहीं सुन रहे थे तो पांच छह इलाके के नक्सलियों ने मिलकर सीआरपीएफ को निशाना बनाने का फैसला लिया.’

उन्होंने बताया, ‘एक महिला को चोट लगी थी, नक्सली चार दिन से उसका इलाज नहीं करने दे रहे थे. उसे एंबुलेंस से हम इलाज के लिए ले गए. मीडिया उनके अत्याचार को बाहर ला रहा था. इससे वे तममता गए थे. आज उन्होंने पुलिस को नहीं, सिर्फ मीडियाकर्मियों को निशाना बनाया. एक को मार दिया उसका कैमरा ले लिया. बाकी दो पत्रकार रेंगते हुए भागे हैं. उन पर करीब 50 से 100 राउंड फायर किया गया. मेरे एक सिपाही ने आकर उनको धक्का नहीं दिया होता तो दो मीडियाकर्मी और मारे जाते.’

पुलिस का मानवीय चेहरा

एसपी अभिषेक पल्लव इसलिए नहीं रो पड़े कि वे कमज़ोर हैं. उन्होंने खुद दंतेवाड़ा में बहुत मौतें देखी हैं और कई एनकाउंटर किए हैं. उन्हें पुलिस महकमें में ऑपरेशन का एक्सपर्ट माना जाता है. लेकिन इसके साथ उनके बारे में यह भी मशहूर है कि पल्लव पुलिस का मानवीय चेहरा हैं.

मार्च, 2017 में बस्तर के जंगल में एक एनकाउंटर हुआ. उस समय अभिषेक पल्लव एडिशनल एसपी थे और इस एनकाउंटर में शामिल थे. इस एनकाउंटर में पांच नक्सली और दो पुलिसकर्मी मारे गए थे. एक लाख के इनामी नक्सली कमांडर सोमारू एनकाउंटर में घायल हो गया तो डॉक्टर से आईपीएस अधिकारी बने अभिषेक ने न सिर्फ उसका प्राथमिक इलाज किया, बल्कि उसे अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाई थी.

अभिषेक का कहना था कि उसका खून बह रहा था, इसलिए उसकी जान बचाने के अलावा कोई चारा नहीं दिखा. उन्होंने सोमरू को दवा दी, इन्जेक्शन लगाया और बाद में उसे एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया.

लोगों की जान की कीमत

उस समय अभिषेक का कहना था कि अगर उसका खून बह जाता तो वह मर भी सकता था. अभिषेक ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जो ऑपरेशन एक्सपर्ट के तौर पर नक्सल इलाके में तैनात तो हैं, लेकिन वे लोगों की जान की कीमत जानते हैं.

अभिषेक को करीब से जानने वाले छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रितेश मिश्रा बताते हैं, ‘अभिषेक पल्लव पहले एसपी हैं जो किसी के मरने पर रोया है. इसके पहले हमने बहुत एनकाउंटर देखें हैं लेकिन आम तौर पर अधिकारी आकर कैमरे के सामने बयान देते हैं. उन्होंने खुद कई एनकाउंटर किए हैं, लेकिन हमने अपने जीवन में पहली बार देखा है कि वे किसी की मौत पर रो पड़े.’

वे बताते हैं कि ‘अभिषेक के बारे में पुलिस महकमा और यहां के लोग यह बात जानते हैं कि पुलिस अधिकारी होने के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी हैं जो जान की कीमत जानते हैं. वे नक्सल विरोधी ऑपरेशन के एक्सपर्ट हैं तो एक संवेदनशील इंसान भी हैं. नक्सल विरोधी अभियान से निपटने का उनका तरीका भी अलग है. वे लोगों से अच्छे से पेश आते हैं, इसलिए गांव वाले भी उनके साथ खड़े होते हैं. उनका तरीका है कि आदिवासी समाज को अपने साथ ले लिया जाए तो वे नक्सलियों के विरोध में होंगे और इस तरह उनसे लड़ना आसान हो जाता है.’

डॉक्टर जिसने वर्दी पहन ली

बेगुसराय, बिहार के रहने वाले अभिषेक ने 2009 में एम्स से एमडी की पढ़ाई पूरी की. 2012 बैच के अधिकारी अभिषेक 2016 में बस्तर के एडिशनल एसपी के तौर पर तैनात हुए. हाल ही में उन्हें दंतेवाड़ा का एसपी बनाया गया है. आईपीएस बनने के पहले वे डॉक्टर बन चुके थे. उनका यह चिकित्सकीय कौशल समय-समय पर उनके काम आता है जब बस्तर जैसे खतरनाक इलाके में मुठभेड़ में कोई घायल हो जाए.

अभिषेक के पिता सेना में थे, इसलिए उनकी स्कूली शिक्षा सेना के स्कूल में हुई. वे आईपीएस बनना चाहते थे लेकिन डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के लिए एम्स गए और वहां से डॉक्टर बनने के बाद तैयारी की और आईपीएस बने.

अभिषेक की पहली पोस्टिंग एडिशनल एसपी दंतेवाड़ा, एंटी नक्सल ऑपरेशन के रूप में हुई थी. वे तीन साल तक वहां रहे. उसके बाद उनकी पोस्टिंग एसपी कोंडागांव के रूप में हुई. वहां वे लगभग एक साल तक रहे. हाल में उनको एसपी दंतेवाड़ा बनाया गया.

पत्रकार रितेश मिश्रा ने बताया, ‘दंतेवाड़ा और कोंडागांव में रहते हुए अभिषेक पल्लव ने ग्राउंड पर बहुत काम किया. उनकी छवि एक अच्छे पुलिस अधिकारी की है, जिसे देखते हुए उन्हें दंतेवाड़ा का एसपी बनाया गया. उनके खाते में यह उपलब्धि है कि वे फर्ज़ी एनकाउंटर नहीं करते. अगर उन्हें ऐसा लगता है कि निर्दोष लोग मारे जा सकते हैं तो एनकाउंटर टाल देते हैं. लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर काम करना, लोगों के साथ न्यूनतम मानवीय व्यवहार और संवेदनशीलता बनाए रखना उनकी खूबी है. पत्रकार और पुलिसकर्मियों की मौत पर उनका रो पड़ना उनकी संवेदनशीलता की ही एक कड़ी है.’

कबड्डी और डांस के ज़रिये जनसंपर्क

अभिषेक की पत्नी भी राजनांदगांव ज़िला अस्पताल में डॉक्टर हैं. वे भी आदिवासियों और ग्रामीणों के बीच में जाकर गरीबों की मदद करती हैं. अभिषेक खुद गांव वालों को विश्वास में लेने के लिए कई कार्यक्रम चलाते हैं.

वे कहते हैं, ‘मेडिकल की पढ़ाई के दौरान हमें लोगों की भावनाओं की कद्र करना, उन्हें समझना सिखाया जाता है. इससे लोग हमसे जुड़ते हैं. हमारे सहयोगी भी हमारे पास काउंसिलिंग के लिए आते हैं. एक डॉक्टर होना हमारे लिए हमेशा मदद करता है.’

अभिषेक ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे ऑपरेशन का आधार है ‘स्मार्ट इंटेलीजेंस बेस्ड ह्यूमन ऑपरेशन’. हम सॉफ्ट पोलिसिंग पर ध्यान देते हैं. हम अपने ऑपरेशन के दौरान मानवाधिकारों का ध्यान रखते हैं. लोगों को खुद से जोड़ने के लिए कबड्डी प्रतियोगिता, स्थानीय संस्कृति से जुड़ी सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए कैंप लगवाते हैं, ताकि लोग हमसे जुड़ें. हमें गांव के लोगों का खूब समर्थन मिलता है. हम हर किसी सुरक्षा और शांति के लिए काम करते हैं.’

उनके सहयोगी और वरिष्ठ अधिकारी भी अभिषेक के प्रशासकीय कौशल और उनके उम्दा प्रदर्शन की तारीफ करते हैं. बस्तर के स्पेशल डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (एंटी नक्सल ऑपरेशंस) डीएम अवस्थी ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘एडिशनल एसपी रहते हुए अभिषेक पल्लव ने बहुत अच्छा काम किया था. उनके उम्दा प्रदर्शन को देखते हुए हमने उन्हें दंतेवाड़ा का एपी (एंटी नक्सल ऑपरेशंस) नियुक्त किया है.’

पत्रकार रितेश मिश्रा ने बताया, ‘पत्रकार के तौर पर हमने देखा है कि अभिषेक ऑपरेशन के अधिकारी हैं, लेकिन कभी ऐसा नहीं देखने में आया कि उन्होंने कोई ऐसा एनकाउंटर किया हो जिसपर सवाल उठे हों. एक अधिकारी कैमरे के सामने अपने पुलिसकर्मियों के लिए रोया या पत्रकार के लिए, लेकिन यह पहली बार है कि कोई पुलिस अधिकारी लोगों की मौत को लेकर इतना संवेदनशील है. इस संवेदनशीलता की कद्र की जानी चाहिए.’

share & View comments