scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमडिफेंसवालोंग: जहां भारतीय सेना ने एक बड़े चीनी हमले को रोका और किया 1962 के युद्ध का एकमात्र जवाबी हमला

वालोंग: जहां भारतीय सेना ने एक बड़े चीनी हमले को रोका और किया 1962 के युद्ध का एकमात्र जवाबी हमला

सैन्य इतिहासकार कर्नल एन. एन. भाटिया (सेवानिवृत) कहते हैं कि संरचनात्मक, कमान और साजो सामान से जुड़े समस्याओं ने चीनी हमले का प्रतिरोध करने में बाधा पहुंचाई, फिर भी हमारे सैनिकों ने पूरी वीरता के साथ पहले रक्षा और फिर जवाबी हमले को अंजाम दिया.

Text Size:

वालोंग, अरुणाचल प्रदेश: अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत के सबसे पूर्वी गांवों में से एक, वालोंग, में तीन कांस्य प्रतिमाएं धुंध और उभरते हुए हिमालय की पृष्ठभूमि के खिलाफ बारिश में गर्व के साथ ऊंची खड़ी हैं. इन मूर्तियों का निर्माण साल 1962 में वालोंग की लड़ाई में मारे गए लोगों के सम्मान में किया गया है.

21 अक्टूबर 1962 को, आधी रात से ठीक पहले, चीनी सैनिकों ने लगभग 700 मीटर दूर अपने बंकरों से किबिथु स्थित भारतीय चौकियों पर तोपखाने से गोलाबारी करना बंदूकों से गोलियों की बौछार करनी शुरू कर दी थी. जल्द ही, चीनी सैनिकों की एक पूरी बटालियन ने भारतीय जवानों पर अपना हमला शुरू कर दिया.

संख्या की दृष्टि से काफी कम होने के बावजूद, 6 कुमाऊं रेजीमेंट – जो भारतीय सेना की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजिमेंटों में से एक है – की 3 इंच मोर्टार डिटेचमेंट वाली इकाई चीनी हमले को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पूरी बहादुरी से लड़ी. लेकिन, जैसा कि 1990 के दशक की शुरुआत में रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किया गया ‘1962 के युद्ध का भारत का आधिकारिक इतिहास’ बताता है, हथियारों की कमी का सामना कर रही इस इकाई को जल्द ही वालोंग से वापस हटने के लिए कहा गया.

और कुछ इस प्रकार शुरु हुई 23 अक्टूबर से 16 नवंबर तक वालोंग की रक्षा के लिए लड़ी गई भारत की 3 सप्ताह की वीरता भरी लड़ाई – एक ऐसी लड़ाई जो इतिहास में 1962 के युद्ध के दौरान एकमात्र भारतीय जवाबी हमले के रूप में दर्ज है.

इस युद्ध के दौरान तवांग के बाद पूर्वी क्षेत्र में वालोंग ही चीन आक्रमण का मुख्य केंद्र था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पूरे तीन हफ्तों के लिए, 6 कुमाऊं, 4 सिख, 4 डोगरा, 2/8 गोरखा राइफल्स, और 3/3 गोरखा राइफल्स सहित 11 इन्फैंट्री ब्रिगेड के सैनिकों ने सभी बाधाओं से लड़ते हुए और संख्या एवं गोलाबारी की ताकत में बड़े असंतुलन के बावजूद अपने खिलाफ बड़े पैमाने पर हो रहे चीनी हमले को सफलतापूर्वक रोके रखा.

एक सैन्य इतिहासकार, और वालोंग की लड़ाई के नायकों में से एक वीर चक्र पुरस्कार विजेता मेजर पी.एन. भाटिया के भाई, कर्नल एन.एन. भाटिया (सेवानिवृत्त) ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सभी बाधाओं के खिलाफ एक जवाबी हमला था. हमने काफी सारी विषमताओं के बावजूद वालोंग में चीनियों को रोके रखा.‘

गार्ड चौकियों में लगी टिन की छत से टकरा रही जोरदार बारिश के बीच वालोंग में तैनात एक सैनिक ने कहा, ‘मैंने नियंत्रण रेखा (एलओसी), वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र, सियाचिन, में भी अपनी सेवा दी है. सीमाओं की रक्षा करना बड़े सौभाग्य की बात है. लेकिन जब हम जबरदस्त सैन्य प्रतिरोध के ऐसे इतिहास वाले स्थान पर होते हैं, तो प्रेरणा और भी अधिक हो जाती है.’

Soldiers crossing a river during the war | Suchet Vir Singh | ThePrint
युद्ध के वक्त नदी को पार करता हुआ एक सैनिक । स्पेशल अरेंजमेंट

यह भी पढ़ेंः ‘विस्तारवादी’ नेहरू, तिब्बती स्वायत्तता, ‘नया चीन’ – माओ ने 1962 में भारत के साथ युद्ध क्यों किया


वालोंग की लड़ाई

कर्नल भाटिया (सेवानिवृत्त) ने दिप्रिंट को बताया कि लड़ाई शुरू से ही काफी चुनौतीपूर्ण थी. वे कहते हैं, ‘हालांकि संरचनात्मक, कमान और साजो सामान से जुड़े समस्याओं ने मुद्दों ने हमले का प्रतिरोध करने में बाधा पहुंचाई, फिर भी हमारे सैनिकों ने पूरी वीरता के साथ पहले रक्षा और फिर जवाबी हमले को अंजाम दिया.’

इसके अलावा, उन्हें बार-बार बदलते नेतृत्व ढांचे का भी सामना कर पड़ा. भाटिया ने बताया, ‘इन समस्याओं के बावजूद, इन सैनिकों ने चीनियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था.’

2014 में प्रकाशित ‘1962 वॉर — ऑपरेशन्स इन द वालोंग सेक्टर’ शीर्षक वाले अपने शोध पत्र में मेजर जनरल जी. जी. द्विवेदी (सेवानिवृत्त) और मेजर जनरल पी.जे.एस संधू (सेवानिवृत्त) का कहना है कि 22 अक्टूबर 1962 को भारतीय सैनिकों के वालोंग से पीछे हटने के बाद लेफ्टिनेंट बिक्रम सिंह राठौर के नेतृत्व में 6 कुमाऊं की ‘डी-कंपनी’ को चीनियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए आशी हिल पर ‘स्क्रीन पोजीशन’ लेने का आदेश दिया गया था.

‘स्क्रीन पोजीशन’ युद्ध के दौरान दुश्मन को धोखा देने के लिए अपनाई जाती है.

नतीजतन, आशी हिल में 6 कुमाऊं के सैनिकों ने चीनियों को गंभीर रूप से हताहत किया, जिससे 70 से अधिक चीनी सैनिक मारे गए.

सेना के सूत्रों का कहना है, ‘हालांकि, 25 अक्टूबर को, चीनी वहां आ धमके और स्क्रीन पोजीशन हटा ली गयी. फिर 25 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच, 4 सिख और 2/8 गोरखा राइफल्स के सैनिकों ने बार-बार किए गए चीनी हमलों को पूरी कामयाबी के साथ रोका.’

Battle Map | Suchet Vir Singh | ThePrint
युद्ध क्षेत्र का नक्शा । स्पेशल अरेंजमेंट

यह भी पढ़ेंः FATF के पाकिस्तान को राहत देने पर विचार करने से पहले ही जैश-ए-मोहम्मद अपने मदरसे के विस्तार में जुटा


ट्राई-जंक्शन पर हुआ जवाबी हमला

वालोंग में सेवारत एक सैन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि 28 अक्टूबर और 13 नवंबर के बीच लड़ाई में विराम सा आ गया था.

इन अधिकारी ने कहा, ‘यह वह वक्त था जब लड़ाई ने अपना रुख बदल दिया. जवानों और गोलाबारी की सामग्री की आपूर्ति को मजबूत करने में भारतीय पक्ष की कमी के कारण लड़ाई का मोमेंटम (संवेग) ही बदल गया.’

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 25 नवंबर को अतिरिक्त चीनी सैनिकों की कुमुक का आगमन शुरू हुआ. इसका मतलब था चीनी सेना के लिए अधिक सैनिकों का उपलब्ध होना और तोपखाने के समर्थन में भी वृद्धि. अधिकारी ने कहा कि उन्होंने अन्य क्षेत्रों से भी अपने सैनिकों को वालोंग में स्थानांतरित कर दिया, जिससे उन्हें फायदा हुआ.

अपने शोध पत्र में, मेजर जनरल द्विवेदी (सेवानिवृत्त) और मेजर जनरल संधू (सेवानिवृत्त) लिखते हैं कि आक्रामक गश्त के माध्यम से, चीनियों ने येलो और ग्रीन पिंपल की रणनीतिक ऊंचाइयों (पहाड़ियों) पर कब्जा कर लिया था, जो वालोंग के ठीक ऊपर स्थित हैं.

A Sikh soldier during the battle | Suchet Vir Singh | ThePrint
युद्ध के दौरान एक सिक्ख सैनिक । स्पेशल अरेंजमेंट

इसका मुकाबला करने की कोशिश में, 12 नवंबर तक, 6 कुमाऊं ने येलो और ग्रीन पिंपल दोनों के ऊपर स्थित एक ट्राई-जंक्शन वाले स्थान मोर्चा संभाला.

यहां से भारतीय सेना ने येलो और ग्रीन पिंपल से चीनियों को खदेड़ने के लिए जवाबी हमला किया. दो दिन बाद, 14 नवंबर को, 6 कुमाऊं ने एक दूसरा जवाबी हमला किया, लेकिन, दुश्मन के अधिक संख्या में होने और तोपखाने की मार तथा मोर्टार के हमले की जद में आने के बाद उन्हें वापस अपनी जगह पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा.

युद्ध के अपने आधिकारिक विवरण में, भारत सरकार का कहना है कि उस सुबह लड़ाई के लिए ट्राई-जंक्शन से जाने वाले 200 लोगों में से केवल ही 90 बच गए.

15 नवंबर से 16 नवंबर के बीच, चीन ने ट्राई-जंक्शन पर भारतीय सेना को पांच बार निशाना बनाया – जिसके तहत भारी गोलाबारी के लिए 120 मिमी मोर्टार का उपयोग करना शामिल था. आधिकारिक विवरण में यह भी कहा गया है कि चीनी ने रणनीतिक रूप से आपूर्ति की लाइन को भी काट दिया और उस मार्ग को बाधित कर दिया था जिसके जरिये सामान और उपकरण भारतीय सेना तक पहुंचाए जाते थे.

हालांकि, 6 कुमाऊं की मदद के लिए 4 डोगरा की एक कंपनी तैनात की गई थी, फिर भी भारतीय पक्ष में हताहतों को भारी संख्या ने 11 इन्फैंट्री ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर एन.सी. रॉले को 16 नवंबर को वालोंग से भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने के लिए मजबूर कर दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में नीतिगत बदलाव के संकेत नहीं, शी बने रह सकते हैं 2032 तक चेयरमैन 


 

share & View comments