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CBI ने रोल्स रॉयस के खिलाफ कसा शिकंजा, HAL सौदा मामले में आर्म्स डीलर सुधीर चौधरी पर भी FIR दर्ज

सीबीआई ने आरोप लगाया है कि रोल्स रॉयस इंडिया के पूर्व निदेशक टिम जोन्स, चौधरी और अन्य ने यूपीए युग के दौरान हॉक विमान की खरीद में भारत सरकार को धोखा देने की साजिश रची थी.

एचएएल ने 21 जनवरी को ओडिशा में हॉक-आई विमान से स्मार्ट एंटी एयरफील्ड हथियार का परीक्षण किया प्रतीकात्मक तस्वीर | ट्विटर: @एएनआई

नई दिल्ली: सीबीआई सूत्रों ने सोमवार को बताया कि लंदन में रहने वाले भारत में जन्मे हथियार डीलर सुधीर चौधरी, उनके बेटे भानु और ब्रिटिश एयरोस्पेस कंपनी रोल्स रॉयस के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भारतीय वायु सेना के पायलट को ट्रेनिंग दिए जाने के मामले और हॉक जेट्स की खरीद से संबंधित भ्रष्टाचार के एक मामले में मामला दर्ज किया है.

पता चला है कि रक्षा मंत्रालय और भारत में हॉक ट्रेनर बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) सहित अज्ञात पब्लिक सर्वेंट्स के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है. मामला उस समय का है जब भारत में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार सत्ता में थी.

चौधरी और उनके बेटे दोनों कथित तौर पर रक्षा मंत्रालय और सीबीआई की “अवांछनीय बिचौलियों” की सूची में शामिल हैं.

हालांकि, सुधीर चौधरी की पहले भी सीबीआई सहित जांच एजेंसियों द्वारा जांच की गई है, उन्हें भारत में कभी भी दोषी नहीं ठहराया गया और न ही गिरफ्तार किया गया.

वह अब एक ब्रिटिश नागरिक हैं और हौसपिटैलिटी, विमानन और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में हितों के साथ एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य चलाते हैं. चौधरी कथित तौर पर यूके में एक बड़े राजनीतिक दानदाता भी हैं.

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सूत्रों के अनुसार, सीबीआई का मामला 2003-2012 का है और इसमें रोल्स रॉयस इंडिया के तत्कालीन निदेशक टिम जोन्स और अन्य के खिलाफ हॉक विमान की खरीद में भारत सरकार को धोखा देने के लिए एक आपराधिक साजिश में शामिल होने के आरोप शामिल हैं.

विशेष रूप से, चल रही सीबीआई जांच, जो कई वर्षों से चली आ रही है, ने पाया है कि कथित लेनदेन से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज मैसर्स रोल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के परिसर से 2006-07 में आयकर विभाग द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान जब्त किए गए थे.

हालांकि, सीबीआई की एफआईआऱ, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, के अनुसार, आरोपी व्यक्तियों ने जांच से बचने के लिए कथित तौर पर जानबूझकर इन दस्तावेजों को “गायब” कर दिया. इसमें कहा गया है कि “साजिश को आगे बढ़ाने के लिए और भारतीय एजेंसियों द्वारा सौदे में कथित गड़बड़ी की जांच से बचने के लिए, (आरोपी) ने ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को गायब/हटाने/नष्ट कर दिया.”

इसके अलावा, रोल्स रॉयस पर अपने कर मामलों की जांच और सलाहकारों के उपयोग को रोकने के लिए कर अधिकारियों सहित भारत में पब्लिक सर्वेंट्स को घूस देने का आरोप है. वाणिज्यिक संविदात्मक समझौतों (CCAs) के माध्यम से बिचौलियों को कथित रूप से GBP 1.85 मिलियन की राशि का भुगतान किया गया था.

हॉक डील क्या थी?

सितंबर 2009 में, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 66 हॉक 115 विमानों की खरीद के लिए भारत और यूके की सरकारों के बीच एक इंटर- गवर्नमेंट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने की मंजूरी दी.

सीसीएस द्वारा दी गई प्रमुख स्वीकृतियों में 24 BAE हॉक 115Y AJT विमान की खरीद के साथ, जिसमें पुर्जों, ग्राउंड-सपोर्ट उपकरण और प्रशिक्षण सहायता भी शामिल है.

इसके अलावा, एचएएल द्वारा 42 विमानों के निर्माण के लिए सामग्री को 734.21 मिलियन जीबीपी (ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग) की कुल लागत के साथ अधिकृत किया गया था, जो 5,653.44 करोड़ रुपये के बराबर है (77 रुपये प्रति जीबीपी की विनिमय दर पर).

इस सौदे में इन 42 विमानों को एचएएल द्वारा 308.247 मिलियन जीबीपी से अधिक की अतिरिक्त लागत पर लाइसेंस-निर्मित किया जा रहा है, जो लगभग 1,944 करोड़ रुपये के बराबर है.

इसके अलावा, इंजन के निर्माण के लिए निर्माता के लाइसेंस शुल्क के रूप में रोल्स रॉयस को GBP 7.5 मिलियन का अनुमानित भुगतान किया गया था.

26 मार्च 2004 के कांट्रैक्ट, और बाद में विभिन्न चरणों में, एजेंट/एजेंसी कमीशन के भुगतान पर रोक लगाने वाले प्रोहिबिशन शामिल थे.

ये खंड इस आशय के थे कि आपूर्तिकर्ता (रोल्स रॉयस / बीएई) इस बात की पुष्टि करेगा कि उसने किसी भी एजेंट या बिचौलियों को मध्यस्थता, सुविधा, या किसी भी तरह से अनुबंध देने के लिए भारत सरकार से सिफारिश करने के लिए नहीं लगाया है, और यह भी कि कोई ऐसे किसी भी व्यक्ति को भुगतान किया गया.

भ्रष्टाचार के खुलासे

सीबीआई द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में कहा गया है कि 2012 में रोल्स रॉयस के सिविल बिजनेस ऑपरेशन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाली मीडिया रिपोर्टें सामने आईं, जिसके बाद यूके में एक खोजी सरकारी विभाग, सीरियस फ्रॉड ऑफिस (एसएफओ) ने जांच की.

इसके बाद, रोल्स रॉयस ने एक स्टेटमेंट ऑफ फैक्ट (SoF) तैयार किया जिसमें उसने इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, मलेशिया और भारत सहित विभिन्न देशों के साथ विभिन्न लेनदेन में किए गए करप्ट पेमेंट का खुलासा किया.
लंदन में रोल्स रॉयस और एसएफओ के बीच एक डेफेर्ड प्रोसिक्यूशन एग्रीमेंट (डीपीए) किया गया था.

इसके बाद, 17 जनवरी 2017 को यूके में साउथवार्क स्थित क्राउन कोर्ट ने एसएफओ और रोल्स रॉयस के बीच डीपीए पर एक फैसला जारी किया.

फैसले से पता चला कि रोल्स रॉयस ने 2005 और 2009 के बीच बिचौलियों को कमीशन या शुल्क के भुगतान पर इंटीग्रिटी पैक्ट (आईपी) के माध्यम से भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत में अपने रक्षा व्यवसाय में बिचौलियों की भागीदारी को छुपाया था.

सीबीआई ने अपने एफआईआर में लिखा है कि रोल्स रॉयस ने बिचौलियोंको भुगतान की गई महत्वपूर्ण राशि भारत में अधिकारियों को दी थी. क्राउन कोर्ट के फैसले में रोल्स रॉयस के लाइसेंस शुल्क को 4 मिलियन जीबीपी से बढ़ाकर 7.5 मिलियन जीबीपी करने के लिए रोल्स रॉयस द्वारा मध्यस्थ को 1 मिलियन जीबीपी के भुगतान का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है.”

स्टेटमेंट ऑफ फैक्ट (एसओएफ), जो उपरोक्त 2017 क्राउन कोर्ट के फैसले का आधार था, ने कहा कि 2006 में नई दिल्ली में रोल्स रॉयस इंडिया के अपने सर्वेक्षण के दौरान1.85 मिलियन जीबीपी का भुगतान एक मध्यस्थ को किया था ताकि आयकर विभाग द्वारा जब्त की गई बिचौलियों की सूची को फिर से प्राप्त किया जा सके.

इस सूची को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करने के दो कथित कारण थे. एक इसे रक्षा मंत्रालय (MoD) तक पहुंचने से रोकना था, जिसके परिणामस्वरूप कांट्रैक्ट समाप्त किया जा सके, और दूसरा रोल्स रॉयस के खिलाफ CBI जांच से बचा जा सके.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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