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Friday, 19 April, 2024
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मैं वी तैनूं प्यार कर दीं’ पलायन कर दूसरे शहर में कैसे अपनों में जिंदगी तलाशते आगे बढ़ते रहे कश्मीरी

मनवीर ने केसर के सामने टूटी-फूटी कोशुर बोलकर अपने प्रेम का इजहार किया था और केसर ने भी बदले में पंजाबी में प्यार का जवाब दिया था.

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दिन ढल गया था और मनवीर के फैक्टरी से लौटने का समय हो चला था. मम्मीजी और केसर ने एक-दूसरे को इशारा किया, ताकि अब इस विषय को बदला जा सके. सभी के चेहरे बहुत रुआंसे लग रहे थे, बच्चे भी उदास थे, हालांकि कुशल की बात से कुछ मन हलका हुआ था सबका, एक हंसी गूंजी थी फिर से.

‘मम्मीजी, चाय बनाकर लाती हूं’

‘हां पुत्तर. सुन! मैं भी आऊं तेरे साथ?’

‘न-न, आप बैठो. मैं लाती हूं. साथ में बच्चों के लिए भी कुछ खाने के लिए बना देती हूं.’

तब तक दरवाजे की घंटी बजी और ‘पापा आ गए’ कहते हुए कुशल दरवाजा खोलने चल दिया. इधर दादी-दादा भी बुलबुल से उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछने लगे. उसके कॉलेज में एनुअल फंक्शन होनेवाला था, वह इसके बारे में अपने दादा-दादी को बताने लगी. बातचीत के विषय बदले तो धीरे-धीरे सभी के मन भी शांत हो गए.

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रात को डिनर टेबल पर सभी प्रसन्न होकर भोजन कर रहे थे. मनवीर ने मां की ओर देखकर कहा, ‘बेब्बे! मजा आ गया. आपके हाथ के इन भरवाँ बैंगनों का तो कोई जवाब ही नहीं है. वाह!’

वे सकपका गईं और मनवीर की पीठ पर धीरे से मारते हुए बोलीं, ‘धत्त! मैंने नहीं बनाए ये…ये केसर ने बनाए हैं.’
‘अरे वाह! तुमने बनाए हैं केसर…वाह क्या स्वाद है!’

‘अब ज्यादा बातें मत बनाओ, बस करो!’ केसर ने आंखें तरेरकर मनवीर की तरफ देखा. मनवीर खिसियानी हंसी हंस दिया. उसकी हालत देखकर सभी की हंसी छूट गई. तभी बुलबुल बोल पड़ी, ‘मम्मी! ये छोले भी बड़े यम्मी बने हैं. आपने बनाए हैं न?’

केसर ने ‘हां’ में सिर हिलाया और प्यार से मुसकरा दी.
पापाजी भी बोले, ‘हां पुत्तर! छोले बड़े स्वाद बने हैं!’
मनवीर भी केसर को छेड़ते हुए बोला, ‘हां पुत्तर! बड़े स्वाद बने हैं.’
केसर ने फिर मनवीर को घूरकर देखा. यह देख उसकी माँ ने हंसते हुए कहा, ‘अब तू रहने ही दे. आज तेरी खैर नहीं है.’

सभी दादी की इस बात पर खिलखिलाकर हंस दिए.
केसर ने पापाजी की तरफ देखते हुए कहा, ‘पापाजी! छोले बनाना तो मुझे मम्मीजी ने ही सिखाया है, बल्कि छोले ही क्या; और भी कई चीजें मैंने इनसे ही तो बनानी सीखी हैं. आप तो जानते ही हैं कि शादी के बाद मुझे खाना बनाना नहीं आता था.’

मनवीर की मां ने केसर की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, ‘अरे, तो क्या हुआ केसर! कई लड़कियों को शादी के समय तक खाना बनाना नहीं आता है. इसमें तेरी क्या गलती पुत्तर? तू जिन हालातों में दिल्ली पढ़ने आ गई थी और खुद को इतनी अच्छी तरह से संभाला, ये भी तो कोई छोटी बात नहीं है? चल अब हँसकर खाना खा, ऐसा नहीं सोचते.’
‘पुत्तर! सही ही तो कह रही है तेरी मम्मी. ये जब ब्याह कर आई थी तो इसे कौन-सा कुछ बनाना आता था! इसे भी मेरी बेब्बे ने ही सब सिखाया था.’ पापाजी बीच में बोल उठे.

उनका इतना बोलना था कि मम्मीजी ने मानो तलवार खींच ली, ‘जी, क्या बोले तुस्सी! जरा फिर से तो बोलना. मुझे कुछ न आता था?’

‘न जी, मैं ऐसा क्या बोला!’ वे सकपका गए. कभी मेज पर रखे खाने को देखते तो कभी इधर-उधर देखने लगते, फिर बुलबुल से बोले, ‘बुलबुल रोटी देईं जरा. पता है, तेरी दादी रोटी बड़ी चंगी बनाती है, ये गोल-गोल और नरम-नरम …गरम-गरम.’

दादी ने बुलबुल के हाथ से रोटी लेकर खुद ही देते हुए आँखें तरेरकर पूछा, ‘न जी! रोटी ही क्यों, मुझे तो और भी बहुत कुछ बनाना आता है…गरम-गरम …हुन बनावां कीं?’

‘न जी, आज रहन दे, आज रोटी ही ठीक है…ओदे नाल कां चल जाउंगा.’ उनकी इस मीठी नोक-झोंक से घर में सभी को बड़ा मजा आता था.

तभी बाबा थोड़े संजीदा होकर बोले, ‘वैसे सच बात यही है कि सबको अपनी मां के हाथ का खाना दुनिया में सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगता है.’

‘हां पापाजी, ये तो आपने एकदम सही कहा. अपनी मां का खाना हर बच्चा याद करता है.’ मनवीर के ऐसा कहते ही, जैसे सभी अपने-अपने बचपने में खो गए. पापाजी को अपनी बेब्बे की याद हो आई. आज दोपहर में ही तो तीनों ने सबको याद किया था.

दादी ने हमदर्दी से उनका हाथ दबा दिया और बोलीं, ‘उदास न हो जी! खाना खा लो.’

इधर उन्होंने अपनी बहू के चेहरे का दर्द भी पढ़ लिया था. वे समझ गईं कि केसर अपनी मां को बहुत याद करती है, लेकिन जाहिर नहीं करती, शायद वह नहीं चाहती कि घर में कोई उसकी वजह से उदास हो.

अगले दिन सुबह होते ही बुलबुल दादी के पीछे पड़ गई. आज उसके कॉलेज में एनुअल फंक्शन था. इसलिए ड्रेस पसंद कराने के लिए दादी को अपने कमरे में खींच लाई. वह घंटे भर से अपनी अलमारी के एक-एक कपड़े को उलट-पलटकर देखे जा रही थी, लेकिन तय ही नहीं कर पा रही थी कि आज के मौके पर अपनी कौन सी ड्रेस पहने. कभी एक देखती तो कभी दूसरी. हर एक में उसे कोई-न-कोई नुक्स मिल ही जाता. उसकी दादी पीछे बैड पर बैठीं बहुत देर से उसका यह तमाशा देख रही थीं और उसकी हां में हां मिला-मिलाकर थक चुकी थीं. जी तो उनका यह कर रहा था कि यहां से उठकर चली जाएं या फिर उसे एक जोर का चांटा लगाकर कहें कि, ‘घंटे भर से तुझे इन पचासों कपड़ों में से कोई एक ड्रेस भी पसंद न आ रही? जबकि सब एक से बढ़कर एक हैं!’

खैर! उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और न ही कुछ कहा, क्योंकि उनके दिमाग में ये बात थी कि जब बच्चे बड़े हो जाएं तो उनकी हर बात बहुत ही तसल्ली के साथ और दोस्ताने ढंग से सुननी चाहिए, अगर उनके घरवाले ही उनकी बातें रुचि लेकर सुनने लगें तो वे बेचारे बाहर गैरों का सहारा ढूंढ़ते हुए भटकें ही क्यों!

‘दादी देखो, ये कैसी रहेगी आज के लिए?’

‘हां, ये तो बहुत सुंदर है. इसका रंग भी तुझ पर बहुत खिलेगा.’

‘न…मुझे लगता है कि इसका रंग कुछ ज्यादा ही डार्क है. बहुत शाइन करेगा.’ उसने मुंह बिचकाकर कहा.
‘अच्छा, बताओ दादी, ये वाली कैसी है?’ उसने अपने ऊपर दूसरी ड्रेस लगाते हुए पूछा.
‘अरे हां! ये तो सचमुच बहुत प्यारी है. इसकी लेंथ भी कितनी अच्छी है. इसे पहनकर तू लंबी भी लगेगी.’ उन्होंने दोस्ताने अंदाज में जवाब दिया.

‘ओ नो दादी! मैं तो पहले ही इतनी लंबी हूं, इसे पहनकर ताड़ का पेड़ न लगने लगूं?’
‘अरे, तो कोई दूसरी पहन ले…वो पिंकवाली पहन ले.’ दादी आखिर झुंझला उठीं.
‘क्या दादी, आप भी! पिंक कलर कौन पहनता है आजकल, फैशन भी नहीं है इसका अब तो.’
अब तक दादी की सहनशक्ति भी जवाब देने लगी थी, तभी कमरे में केसर आ गई और उन्हें यहां से भाग निकलने का बहाना मिल गया, ‘ले! अपनी मां से ही पूछ कि क्या पहनना है, तब तक मैं तेरे दादाजी को देखती हूं…कहां हैं, क्या कर रहे हैं!’

केसर सारा माजरा समझ गई और अपनी सास की इस हालत पर हंस पड़ी. वे खिसियाई सी धीरे से बोलीं, ‘हंस मत ज्यादा…एक घंटे से परेशान करके रख दिया कुड़ी ने!’
केसर और जोर से हंस दी.

मां को देखते ही बुलबुल चिढ़कर बोली, ‘देखो न मम्मी, मेरे पास कोई ढंग की ड्रेस नहीं है! मैं क्या पहनूं आज?’
‘इतनी सारी तो हैं! अलमारी भरी पड़ी है, फिर भी तेरे पास ड्रेस नहीं हैं? अरे! अभी जो तेरे बर्थडे पर पापा लाए थे, वह ड्रेस पहन ले!’ केसर ने बिखरे कपड़ों को हैरानी से देखते हुए कहा.

‘मम्मी, सब कपड़ों के साथ कुछ न कुछ गड़बड़ है और वैसे भी वह ड्रेस तो मैं अपनी सारी फ्रेंड्स के सामने पहले ही पहन चुकी हूं.’
‘अच्छा तो फिर इन्हें छोड़, आ मेरे साथ आ.’ वह बेटी का हाथ पकड़कर उसे अपने कमरे में ले गई.
केसर ने बुलबुल को अपनी अलमारी में से एक ड्रेस निकालकर देते हुए कहा, ‘ये पहन. इसमें तू बहुत प्यारी और सबसे अलग दिखेगी.’

उसने बिना कोई तर्क किए वह माँ के हाथ से ले ली और पहनने के लिए अपने कमरे की ओर चल दी.
‘रुक! इससे मैचिंग के जेवर भी तो लेती जा.’ बुलबुल खुद को आईने में देख देखकर हैरान हो रही थी. वाकई ड्रेस बहुत प्यारी थी…सबसे अलग. बुलबुल भी खुद को देखती रह गई.

जैसे ही वह अपने कमरे से निकलकर बाहर ड्राइंगरूम में आई कि अचानक सबकी निगाहें उसी पर ठहर गईं. मनवीर को एक बार तो ऐसा लगा, जैसे अठारह साल की चंचल केसर आज फिर वही कश्मीरी फिरन पहनकर उसके सामने आकर खड़ी हो गई हो, जिसे पहनकर वह उसके जीवन में आई थी.

तब तक बुलबुल उसके सामने आकर खड़ी हो गई, ‘पापा मैं कैसी लग रही हूं?’
‘बहुत-बहुत-बहुत प्यारी, एकदम कश्मीरी गुड़िया.’
उसने लाड़ दिखाते हुए अपने दादा और दादी से भी पूछा, ‘दादी! दादू! मैं कैसी लग रही हूं?’
‘बहुत प्यारी, एकदम परी.’ दादाजी ने प्यार से कहा, फिर दादी बोलीं, ‘ये ड्रेस पहले ही पहन लेती! मुझे एक घंटे तक अपने सारे कपड़े दिखा-दिखाकर परेशान कर दिया तूने!’

‘अरे, मेरी प्यारी दादी!’ कहते हुए वह उनके गले में हाथ डालकर लाड़ लड़ाने लगी.
तभी उसने देखा कि मां दूर खड़ी उसे प्यार से निहार रही हैं. उसने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उनके सामने जाकर खड़ी हो गई. केसर ने बहुत कोमलता से अपनी बच्ची का माथा चूमा और उसकी बलाएं उतारते हुए बोली, ‘किसी की नजर न लगे, मेरी भी नहीं. कितनी प्यारी लग रही है तू!’
दादी ने कॉलेज जाती हुई बुलबुल को प्यार से डांटते हुए कहा, ‘सुन कुड़िए! बहुत ज्यादा खी-खी खी-खी न करीं…उसी से नजर ज्यादा लगती है.’

उसने मुसकराते हुए ‘हां’ में अपना सिर हिला दिया. दादी की यह प्यार भरी डांट उसे बहुत मीठी लगी.
रात में सोने से पहले केसर उस फिरन को तह करके रखने लगी, जैसे ही उसने उसे अलमारी में रखने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, पीछे से मनवीर ने उसकी कलाई पकड़ ली और धीरे से बोला, ‘जान! आज इसे पहनकर दिखा दो न…प्लीज.’

केसर ने कुछ नहीं कहा, बस प्यार से मनवीर की तरफ देखने लगी. वह फिर मनुहार करते हुए बोला, ‘प्लीज आज फिर पहनो इसे. कितना समय हो गया उस कश्मीरी लड़की को अपनी बाँहों में लिये हुए.’

‘धत्त! तुम भी न! कुछ भी बोलते हो…अब मैं लड़की हूं? बुड्ढी हो रही हूं’.
‘किसने कहा बुड्ढी! तुम तो अब भी मेरी वही केसर हो, जो मेरा हाथ थामकर महकती हुई मेरी जिंदगी में चली आई थी.’
केसर शरमा उठी. मनवीर ने उसके चेहरे पर सामने आए बालों को अपनी उंगलियों से पीछे किया और भीगी हुई आवाज में बोला, ‘पहनो न…प्लीज.’

केसर ने मनवीर से आंखें बंद करने के लिए कहा. वह भी आज्ञाकारी प्रेमी की तरह दोनों आंख बंद करके बैठ गया.
वह शुरू से ऐसा ही था, एक सच्चा प्रेमी. वह आंख बंद करके बैठ गया और यादों की गलियों की सैर करने लगा. उसे याद हो आया कि उसने ऐसे ही आंख बंद करके पहली बार केसर के सामने अपने प्रेम का इजहार किया था, हालांकि दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, यह बात इन्हें क्या, बल्कि पूरे कॉलेज को पता थी, लेकिन फिर भी मनवीर के खास दोस्तों ने उसे यह अनमोल सलाह दी कि ‘प्रेम में इजहार बहुत जरूरी है और यह इजहार लड़के को ही करना पड़ता है, क्योंकि अगर तू केसर से इजहार की उम्मीद लेकर बैठा रहा तो तेरे प्यार की बैलगाड़ी कभी कहीं नहीं पहुंच पाएगी. इसलिए उठ और हिम्मत कर! जा उसके सामने अपने प्यार का इजहार कर डाल. अपने प्यार की बैलगाड़ी को बुलेट ट्रेन बना डाल.’
अब जितने दोस्त, उतनी सलाहें—

एक बोला, टसुन मनवीर! तू उसे जाते ही बेधड़क बोलना—मैं तेरे से प्यार करता हूं’.
दूसरे ने बात काटते हुए कहा, ‘धत्त! ऐसे भी कोई अपने प्यार का इजहार करता है? लग रहा है प्यार का इजहार करने नहीं, बल्कि धमकी देने आया हो. तू इसकी छोड़, मेरी सुन. तू उसे गुलाब देते हुए पूछना—क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’
‘नहीं यार! ये तो बड़ा ही पुराना स्टाइल है.’ मनवीर मुंह बिचकाकर बोला.
‘अच्छा तो तू ऐसे बोलना, ‘क्या तुम मेरी लाइफ पार्टनर बनोगी?’ तीसरे ने अपनी कीमती सलाह दी.
‘ऊंह…न, ये भी नहीं जम रहा. ऐसा लग रहा, जैसे प्यार का इजहार नहीं कर रहा, बल्कि बिजनेस का कोई प्रपोजल सुना रहा हूं.’
‘अच्छा तो ये कह देना—क्या तुम मेरे साथ रूम शेयर करोगी?’ एक और बिंदास सलाह आई.
‘अबे! तू मुझे बीवी दिलवा रहा है या होस्टल की रूम मेट?’
तभी एक और महान दोस्त ने गर्म साँसें छोड़ते हुए सलाह दी, ‘अरे यार! तू सीधे-सीधे बोल दियो कि क्या तुम मेरे साथ बेड शेयर करोगी?’
मनवीर उसे मारने दौड़ा. उसके सभी दोस्त इस सुझाव पर अपना-अपना पेट पकड़कर हँसने लगे. मनवीर ने उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा, ‘स्साले! सबको अपने जैसा समझा है क्या!’

सभी दोस्तों ने मनवीर को तरह-तरह के सुझाव दिए, लेकिन उसे कोई भी सुझाव पसंद ही नहीं आया.
आखिर में एक दोस्त बोला, ‘यार तू सब छोड़…तू सीधे जा और उसे ‘आई लव यू’ बोल दे बस.’
बाकी सबने भी उसकी हां में हां मिलाई, ‘हां यार! सीधे अपने मन की बात बोल दे जाकर.’
मनवीर ने मन-ही-मन कुछ तय किया और एक दिन कॉलेज के प्ले–ग्राउंड में सबके सामने उसने प्यार से केसर का हाथ पकड़ा और घुटने पर बैठते हुए अपनी आँख बंद करके कहा, ‘तुसित मुहब्बत करान.’
‘क्या!’

‘तु…सि…मुहब्बत…’ मनवीर ने अब भी अपनी आंखें नहीं खोली थीं, लेकिन वह मन-ही-मन डर रहा था कि कहीं वह गलत कश्मीरी तो नहीं बोल रहा? सिर्फ इतना बोलने के लिए उनसे तीन दिन तक कितनी ही पुस्तकें और डिक्शनरियां खँगाल डाली थीं.

लेकिन अगले ही पल उसे अपने चेहरे के पास केसर की सांसों की नरमी और गरमी महसूस हुई. उसकी खुशबू से मनवीर बहकने लगा, लेकिन फिर भी उसने अपनी आंखें नहीं खोलीं. केसर झुकी और मनवीर के चेहरे के पास अपना चेहरा ले आई. वहां जितने भी लड़के-लड़कियां थे वे सब अपना-अपना दम साधकर देख रहे थे कि अब आगे क्या होगा! केसर ने मनवीर की दोनों पलकों पर बारी-बारी से किस किया और बोली, ‘मैं वी तैनूं प्यार कर दीं.’ मनवीर ने हैरान होकर आंखें खोल लीं. उस दिन केसर ने कश्मीरी फिरन पहना हुआ था और उसमें बहुत प्यारी लग रही थी.

मनवीर ने केसर के सामने टूटी-फूटी कोशुर बोलकर अपने प्रेम का इजहार किया था और केसर ने भी बदले में पंजाबी में प्यार का जवाब दिया था. दोनों के दोस्तों ने खूब सीटियां और तालियां बजाईं, अगर यह कॉलेज न होता तो मनवीर अब तक केसर को अपनी बांहों में उठा चुका होता. उसने बस धीरे से उसकी दोनों हथेलियां चूम लीं.

आज फिर मनवीर उसी तरह से आंखें बंद किए बैठा था और पुरानी मीठी यादों में खोया हुआ था, तभी केसर ने बिल्‍कुल उस दिन की तरह मनवीर की पलकों पर किस किया. केसर आज फिर उसी फिरन में मनवीर के सामने खड़ी थी. मनवीर कुछ देर तक केसर को प्यार से निहारता रहा, फिर उसने उसे अपनी बांहों में भरकर कहा, ‘तुसित मुहब्बत करान.’
‘मैं वी तैनूं प्यार कर दीं.’ कहते हुए केसर भी मनवीर की बांहों में सिमट आई.

 

(‘घाटी’ प्रभात प्रकाशन से छपी है. ये किताब पेपर बैक में 250 ₹ की है )


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