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Wednesday, 17 April, 2024
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फूलन देवी की हत्या से लेकर जेल से भागने तक; बायोपिक के जरिए सबके होगी शेर सिंह राणा की जिंदगी

शेर सिंह राणा को साल 2014 में दस्यु से सांसद बनी फूलन देवी की 2001 में की गई हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. अपनी सजा के खिलाफ अपील के बाद उसे 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा जमानत दे दी गई थी.

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नई दिल्ली: ‘चौहान की अस्थि लाये थे, न काबू किसी के आये थे, ताले तोड़ भगाये थे … क्या जेल, क्या थाना के … सुनो काम शेर सिंह राणा के…’

ये 2001 में डकैत से नेता बनी फूलन देवी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए एकमात्र शख्श शेर सिंह राणा की तारीफ में कसीदे काढ़ने वाले एक गीत के बोल हैं.

इस गाने को यूट्यूब पर 6 लाख बार देखा जा चुका है और यह उस राणा को एक ‘नायक’ के रूप में पेश करने की कोशिश करता है, जो एक ऐसा व्यक्ति है जिसने न केवल फूलन देवी – जो उनकी हत्या के समय संसद सदस्य थी – की हत्या की साजिश के लिए सुर्खियां बटोरीं, बल्कि 2004 में चाक-चौबंद सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल से फरार होने के लिए भी कुख्यात है.

राणा के जीवन को अब अभिनेता विद्युत जामवाल अभिनीत और टॉयलेट: एक प्रेम कथा के निर्देशक श्री नारायण सिंह द्वारा रचित फिल्म का रूप दिया जा रहा है. दिप्रिंट इस बारे में विस्तार से बताता है कि आखिर राणा है कौन?

फूलन देवी की हत्या

शेर सिंह राणा का जन्म रुड़की, उत्तराखंड में पंकज सिंह पुंडीर के रूप में हुआ था. 45 वर्षीय राणा ने अपने शुरुआती वर्षों के दौरान अपना अधिकांश समय इसी राज्य में बिताया और डीएवी कॉलेज, देहरादून का छात्र रहा था. वहां वह छात्र राजनीति में शामिल हो गया और वे 1998 में उनसे अपना पहला छात्र चुनाव लड़ा. फिर वह साल 2001 में उत्तरांचल एकलव्य सेना का पदाधिकारी बन गया. जहां उसका परिचय फूलन देवी से हुआ जो एक समारोह में आमंत्रित की गयी थीं.

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देवी, जो उस समय उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी की सांसद थीं और लंबे समय से निचली जातियों के हिमायती नेता के रूप में प्रसिद्ध थीं, की 25 जुलाई 2001 को उनके दक्षिण दिल्ली स्थित बंगले के बाहर राणा समेत तीन नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

इस मामले के जांचकर्ताओं के सामने दिए गए अपने कबूलनामे में राणा ने दावा किया कि यह हत्या 1981 के बेहमई हत्याकांड का बदला लेने के लिए किया गया एक कृत्य था. यह हत्याकांड उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में 20 ठाकुर पुरुषों की हत्या वाला कांड था, जिसमें अपने अपहरण और बलात्कार का बदला लेने के लिए फूलन देवी भी शामिल थी. फूलन देवी की बाद में की गई हत्या के जैसे ही इस घटना को भी जातिय संघर्ष के रूप में देखा गया था.

इसी मामले में राणा को 2014 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अदालत ने उसके 10 साथी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. साल 2016 में राणा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की, और उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया. उसके बाद से इस मामले में आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई है.

तिहाड़ से फरार होना

जुलाई 2001 में फूलन देवी की हत्या के दो दिन बाद राणा ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था. इसके बाद उसे दिल्ली की तगड़ी सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में ले जाया गया, लेकिन वह 17 फरवरी 2004 को वहां से फरार हो गया.

राणा के जेल से भागने के कारनामे से सनसनी फैल गई थी. वह बड़ी शांति के साथ अपने एक साथी के साथ जेल से बाहर चला गया, जिसने पहले उसके वकील होने का नाटक किया था और फिर एक जेल गार्ड का वेश धारण किया जो उसे (राणा को) अदालत की सुनवाई में ले जा रहा था. एक बार बाहर आने के बाद वे दोनों एक पहले से इंतजार कर रहे ऑटोरिक्शा में सवार हो गए, जो उन्हें कश्मीरी गेट अंतर-राज्यीय बस टर्मिनल (आईएसबीटी) तक ले गया.

माना जाता है कि इसके बाद राणा नकली पासपोर्ट लेने के लिए रांची, झारखंड गया था, जिसके साथ वह कोलकाता के रास्ते बांग्लादेश भाग गया. वहां से वह फिर दुबई और बाद में अफगानिस्तान भी गया, जहां से वह प्रख्यात राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां वापस लाने का दावा करता है.

इस घटना के दो साल बाद संदीप ठाकुर, जिसने राणा को जेल से भागने में मदद की थी, को इस जेल से फरार होने के मामले में गिरफ्तार किये जाने के बाद राणा को भी साल 2006 में कोलकाता के एक गेस्टहाउस से फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था.

साल 2019 में यूट्यूब पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में राणा ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में राजपूत संगठनों को ‘अस्थियां’ सौंपने का दावा किया था.

राणा की अपनी वेबसाइट उसके जेल से फरार होने के कारनामे को वीरतापूर्ण बताती है.

इसमें कहा गया है, ‘शेर सिंह राणा जी उस समाधि को लाने के लिए तिहाड़ से भाग निकले, और फिर कोलकाता, बांग्लादेश, दुबई होते हुए अफगानिस्तान पहुंचे जहां गजनी के देयाक गांव से तालिबान को हराकर इसे अपने देश ले आए और भारत माता के चरणों में समर्पित कर दिया.’

राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं

जेल ही वह जगह थी जहां से राणा ने पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया. उसने 2012 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जेवर विधानसभा सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और असफल रहा. उसी समय के आसपास उसने अपना एक संस्मरण ‘जेल डेयरी: तिहार से काबुल-कंधार तक’ भी लिखा. यह किताब उसके बचपन, छात्र राजनीति में बिताये उसके वर्षों – जिसमें एकलव्य सेना में उसका वह कार्यकाल भी शामिल है जब उसे फूलन देवी से मिलवाया गया था – और जेल से उसके भागने का वर्णन करती है.

साल 2019 में उसने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी, राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (सत्या) की स्थापना की. उसकी पार्टी ने उस वर्ष हरियाणा विधानसभा चुनाव में असफल रूप से चुनाव भी लड़ा. राणा ने ‘राष्ट्रवादी जनलोक परिवर्तन यात्रा’ नाम से 50 दिवसीय राज्य का दौरा किया, जिसके दौरान 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार के लिए मौत की सजा, एक किसान आयोग का गठन, और हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति की नौकरी सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाना, उसकी पार्टी के मुख्य चुनाव मुद्दों के रूप में था.

कई ख़बरों में यह भी कहा गया है कि सामान्य पिचड़ा अल्पसंख्याक कल्याण समाज नामक संगठन 2019 के आम चुनावों में उसे इंदौर से चुनावी मैदान में उतारने की योजना बना रहा था, लेकिन वह योजना कभी भी अमल में नहीं आई.

साल 2020 में, उसकी पार्टी ने 2020 के दिल्ली चुनाव और 2022 उत्तराखंड विधानसभा चुनावों के लिए काशी सिंह ऐरी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के साथ गठबंधन किया. यूकेडी एक क्षेत्रीय पार्टी है जिसे एरी ने साल 1979 में एक स्वतंत्र पहाड़ी राज्य के संघर्ष में सहायता करने के लिए स्थापित किया था.

फूलन देवी की बहन मुन्नी देवी भी अक्टूबर 2021 में राणा की पार्टी में शामिल हो गईं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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