मनमोहन सिंह संस्थाओं और व्यवस्था का दामन पकड़कर बिना शोरशराबा किए शासन चलाने वाले नेता रहे हैं जबकि नरेंद्र मोदी अपनी शख्सियत के बल पर अपनी कथनी और करनी में मुखर रहने वाले नेता रहे हैं. कोरोना संकट से निपटने में दोनों को अपनी-अपनी खास ताकत से बल मिलता.
कोविड-19 लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की राजनीतिक सलाह मानने से पहले मोदी को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. कई बार इलाज मर्ज़ से भी अधिक नुकसानदेह साबित होता है.
हम ये नहीं जानते कि कोरोनावायरस से पैदा स्वास्थ्य-संकट कितना गहन होगा और देश इससे कैसे निपटेगा लेकिन हम ये जरुर जानते हैं कि बेरोजगारी का संकट अभी ही सिर चढ़कर बोल रहा है. लोगों के जीवन और जीविका को बचाने के लिए सरकार को जल्दी ही लोक-कल्याण के मोर्चे पर कुछ वैसा करना पड़ेगा.
देश के वामपंथी, उदारवादी, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की शिकायत है कि बीजेपी ने शासन में आने के बाद वैज्ञानिक चिंतन का नाश हो गया, जबकि आजदी के समय नेहरू की पुजा-अर्चना को याद करनी चाहिए.
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल लंबे समय से पेटेंट-मुक्त और सस्ती जेनेरिक दवाएं हैं. भारत के पास दुनिया के लिए इनके उत्पादन की विशिष्ट क्षमता है. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, इसे बेकार नहीं जाने देना चाहिए.
जब देशभर में लॉकडाउन चल रहा है और सिर्फ जरूरी सेवाएं ही काम कर रही हैं तब केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यानी सीपीसीबी ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि 36 निगरानी पाइंट में से 27 जगह गंगा का पानी नहाने योग्य हो गया है.
सरकार को कोरोनावायरस महामारी के संकट पर काबू पाने और देशवासियों को इसके प्रकोप से बचाने के प्रयास के दौरान दायर हो रही इस तरह की याचिकाओं पर आपत्ति है.
इस बार हमारे राजनीतिक भूगोल के बड़े हिस्से में चुनावी मुक़ाबले का नतीजा भले साफ नजर आ रहा हो, मगर कुछ हिस्से में यह मुक़ाबला 2019 के मुक़ाबले से भी ज्यादा तीखा है
उन्नाव (उप्र), 20 अप्रैल (भाषा) उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बेहटा मुजावर थाना क्षेत्र अंतर्गत लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर शनिवार तड़के बारातियों को ले...