नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ‘‘आई लव मोहम्मद’’ लिखे पोस्टरों को लेकर दर्ज मामलों में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के अनुरोध वाली याचिका को बुधवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिका ‘‘अत्यंत भ्रांतिपूर्ण’’ है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय अन्य राज्यों में दर्ज प्राथमिकी के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा अनुरोधित निर्देश पारित नहीं कर सकता।
जनहित याचिका रजा अकादमी के प्रतिनिधि और ‘मुस्लिम स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया’ (एमएसओ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली ने दायर की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की पुलिस पर झूठी और सांप्रदायिक प्राथमिकी दर्ज करने का आरोप लगाया गया था।
ये पोस्टर मिलाद-उन-नबी के मौके पर आयोजित जुलूसों के दौरान लगाए गए थे।
ये प्राथमिकी कुछ घटनाओं से संबंधित हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे जुलूस के समय घटित हुई थीं।
अदालत ने कहा कि याचिका में उल्लेखित सभी तीन प्राथमिकी दिल्ली के बाहर दर्ज की गई हैं और कानून के अनुसार, जब तक आरोपों की जांच के लिए किसी विशेष एजेंसी की नियुक्ति नहीं की जाती, तब तक उनकी जांच संबंधित पुलिस थाने के जांच अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘इन प्राथमिकी में नामित आरोपियों को कानूनी उपाय का सहारा लेने से कोई नहीं रोक सकता है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए उपलब्ध होगा कि प्राथमिकी में आरोपों की उचित, वैध और निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए।’’
पीठ ने कहा कि उसे इस बात पर संदेह है कि क्या दिल्ली स्थित इस न्यायालय के लिए याचिका में मांगे गए निर्देश जारी करना संभव और कानूनी रूप से स्वीकार्य होगा।
अदालत ने कहा, ‘‘हमारी सुविचारित राय में, ऐसे मामले इस याचिका में किये गये अनुरोध का आधार नहीं बन सकते। यह याचिका बेहद गलत है और इसे खारिज किया जाता है।’’
याचिकाकर्ता ने ‘‘आई लव मोहम्मद’’ पोस्टरों के संबंध में दर्ज अनेक प्राथमिकी और गिरफ्तारियों को चुनौती दी थी।
जनहित याचिका में दावा किया गया कि प्राथमिकी ‘‘सांप्रदायिक प्रकृति’’ की थीं और उनके ‘‘मौलिक अधिकारों’’ का उल्लंघन करती थीं।
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देवेंद्र सुरेश
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