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Friday, 18 July, 2025
होमदेशआज महिलाओं को अधिक आजादी है लेकिन पितृसत्ता भी कठोर हुई है : बानू मुश्ताक

आज महिलाओं को अधिक आजादी है लेकिन पितृसत्ता भी कठोर हुई है : बानू मुश्ताक

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नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका बानू मुश्ताक को उनके जिस कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया उसमें 12 कहानियां हैं जो 1990 के दशक से लेकर 2023 तक लिखी गई हैं। इसी दौर में झांकते हुए बानू कहती हैं कि महिलाएं पहले के मुकाबले आज अधिक आज़ाद हैं लेकिन इसके साथ ही पितृसत्ता भी अधिक कठोर हुई है।

बृहस्पतिवार को यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बानू मुश्ताक ने कहा कि एक ओर महिलाएं उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं, नौकरी कर रही हैं लेकिन उसी के साथ ही अपने धर्म से बाहर किसी और से विवाह करने पर उनकी हत्याएं भी हो रही हैं।

पेशे से अधिवक्ता और महिला अधिकारों की प्रबल पैरोकार बानू मुश्ताक ने कहा,‘‘ पितृसत्ता बदल गई है और महिलाओं का दर्जा भी बदला है। महिलाएं उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं, अच्छी नौकरियां ले रही हैं और कुछ चीजें हैं जो वे दुनिया में बेहतर कर रही हैं। लेकिन इसी के साथ ही पितृसत्ता भी कठोर हुई है।’’

मूल कन्नड भाषा से दीपा भास्ती द्वारा अंग्रेजी में अनूदित ‘हार्ट लैंप’ दक्षिण भारत में महिलाओं और लड़कियों की रोजमर्रा जिंदगी का रोजनामचा है – जहां उनके प्रजनन अधिकारों का अक्सर शोषण किया जाता है, जहां सत्ता की कमान पुरूषों के हाथों में होती है और एक ऐसे रूढ़िवादी समाज में उनका हर रोज दमन किया जाता है जो महिलाओं की स्वायत्ता को बिरले ही बर्दाश्त करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम आए दिन खाप पंचायतों के फैसले देखते हैं। हम देखते हैं कि एक पिता अपनी ही बेटी की हत्या कर देता है, एक मुस्लिम युवती को केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया जाता है क्योंकि उसने एक हिंदू युवक से विवाह करने का फैसला किया या एक हिंदू लड़की को इसलिए कत्ल कर दिया जाता है कि उसने एक मुस्लिम युवक को जीवन साथी बनाने का रास्ता चुना। इस पितृसत्ता के कारण आप देखिए कि महिलाओं के खिलाफ हर प्रकार की हिंसा को जायज ठहराया जाता है। दोनों चीजे एक ही समय में, एक साथ हो रही हैं।’’

उन्होंने कहा ‘‘वह आजाद है, शिक्षित है और फैसले ले सकती है लेकिन उसी के साथ ही पितृसत्ता महिलाओं के रास्ते में कांटे बो रही है।’’

बातचीत में मुश्ताक के साथ भास्ती भी शामिल हुईं, जिन्होंने कहा कि धार्मिक और नस्लीय अल्पसंख्यकों की तुलना में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं के लिए चीजें हमेशा आसान रही हैं।

लेखिका और अनुवादक भास्ती ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से, अलग अलग तरीकों से महिलाओं के लिए चीजें आसान हुई हैं लेकिन यह गौर करना भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि वे कौन महिलाएं हैं जिनके लिए स्थितियों में सुधार हुआ है , और ये उच्च जाति है , आर्थिक रूप से संपन्न तबका है जहां हालात बेहतर हुए हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों, नस्लीय अल्पसंख्यकों और बाकी अन्य अल्पसंख्यकों के मुकाबले, आभिजात्य वर्ग की महिलाओं के लिए हालात बेहतर हुए हैं।’’

टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या का उदाहरण देते हुए भास्ती ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ‘बहुत सी चीजें बदली हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ तो जैसा कि बानू ने कहा, कई मामलों में चीजें आसान हुई हैं लेकिन हां, पितृसत्ता भी कठोर हुई है। और पितृसत्ता राजनीतिक है। एक परिवार सबसे ज्यादा राजनीतिक ईकाई है जो आप हमारे रोजमर्रा के जीवन में देख सकते हैं।’’

भास्ती का कहना था, ‘‘ तो हाँ, अगर एक पिता टेनिस अकादमी में कमाई के लिए अपनी ही बेटी की हत्या कर देता है, तो यह कहना मुश्किल है कि भविष्य उज्जवल होगा। सच कहूँ तो, मुझे ज़्यादा कुछ बदला हुआ नहीं लगता।’’

भाषा नरेश

नरेश मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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