नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के लिए हुए चुनावों में मतदाताओं ने ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) विकल्प को एक बार फिर कम ही अपनाया। शनिवार को आए चुनाव परिणामों में यह बात सामने आयी कि महाराष्ट्र में 0.75 प्रतिशत और झारखंड में 1.32 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया।
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में एक प्रतिशत से भी कम (0.75 प्रतिशत) मतदाताओं ने ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ या नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया, जहां 288 सीटों के लिए चुनाव हुए।
झारखंड में एक प्रतिशत से थोड़ा अधिक (1.32 प्रतिशत) मतदाताओं ने इस विकल्प का प्रयोग किया।
निर्वाचन आयोग के अनुसार, महाराष्ट्र में 20 नवंबर को एक चरण में हुए चुनाव में 65.02 प्रतिशत मतदान हुआ।
झारखंड में दो चरण में 13 नवंबर और 20 नवंबर को हुए मतदान में क्रमशः 66.65 प्रतिशत और दूसरे चरण में 68.45 प्रतिशत मतदान हुआ था।
इससे पहले हाल में हुए विधानसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने हरियाणा के मतदाताओं की तुलना में नोटा विकल्प का अधिक इस्तेमाल किया था।
हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में दो करोड़ से अधिक मतदाताओं में से 67.90 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इनमें से 0.38 प्रतिशत ने नोटा का विकल्प चुना था।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर 2013 में शुरू किए गए नोटा विकल्प का अपना प्रतीक है – एक मतपत्र जिस पर काले रंग का काटे (क्रॉस) का निशान बना होता है।
सितंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम पर नोटा बटन को वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में जोड़ा। न्यायालय के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास फॉर्म 49-ओ भरने का विकल्प था।
लेकिन निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता से समझौता होता था।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि निर्वाचन आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया था कि यदि अधिकतर मतदाताओं ने मतदान के दौरान नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया है तो पुनः चुनाव कराए जाएं।
भाषा
प्रशांत माधव
माधव
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