छत्रपति संभाजीनगर (महाराष्ट्र), 28 सितंबर (भाषा) महाराष्ट्र के बीड जिले में राज्य परिवहन निगम की एक बस के चालक और कंडक्टर ने यात्रा को मनोरंजक और सूचनाप्रद बनाने का बीड़ा उठाया, जिसके बाद यह बस शिक्षा आधारित अपनी आंतरिक साज-सज्जा के कारण छात्रों के बीच आकर्षण का केंद्र बन गयी है।
महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) की यह बस बाहर से देखने से हजारों आम यात्री बसों की तरह ही सफेद-नारंगी रंग की दिखती है लेकिन बस के अंदर उसकी छत तथा दोनों ओर चिपकी तस्वीरों और संदेशों के कारण यह एक तरह से चलती-फिरती कक्षा की तरह लगती है।
कंडक्टर वैशाली मुले ने शुक्रवार को फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमने बस में जो आंतरिक साज-सज्जा की है, वह छात्रों को पसंद आ रही है। अब हमारी बस में और छात्र यात्रा कर रहे हैं।’’
यह बस रोजाना दोनों तरफ से 200 किलोमीटर की दूरी तय करती है। छात्र अपने-अपने गांवों से इस बस में सवार होकर बीड-नलवंडी मार्ग पर स्थित अपने-अपने स्कूल आते-जाते हैं।
मुले ने बताया कि उन्होंने तथा चालक सिराज पठान ने बस को शैक्षणिक सामग्री, छत्रपति साहू महाराज, स्वामी विवेकानंद और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसी हस्तियों से जुड़े चित्रों तथा शिक्षाप्रद संदेशों से सजाने के लिए अपनी जेब से 35,000 रुपये खर्च किए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी बस का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर छात्र गन्ने की खेती में शामिल श्रमिकों के बच्चे हैं। ये परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाते हैं। हमें लगता है कि हमारी पहल से बदलाव आया है क्योंकि लड़कियों समेत और छात्र अब स्कूल जा रहे हैं।’’
उन्होंने बताया कि जहां बस की छत पर सौर मंडल के ग्रहों की चमकदार तस्वीरें लगाई गई हैं, वहीं बस में एक आवर्त सारणी (पीरियॉडिक टेबल) और योग आसन की तस्वीरें और जानकारी भी है। यह बस छात्रों के बीच लोकप्रिय हो गयी है।
मुले ने बताया, ‘‘वांगी में विश्वनाथ स्कूल और नलवंडी में संगमेश्वर विद्यालय के छात्र हमारी बस में यात्रा करते हैं। हमारे वरिष्ठ सहयोगी अजय मोरे, शिवराज कराड, निलेश पवार ने इस परियोजना में हमारी मदद की।’’
बीड के मंडलीय परिवहन अधीक्षक शिवराज कराड ने बताया कि इस परियोजना का इकलौता उद्देश्य परिवारों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘बस के चालक और कंडक्टर ने यह बीड़ा उठाया और हमने उनका सहयोग किया। इस बस में यात्रा करने वाले छात्रों की संख्या एक साल में ही 200 से बढ़कर 290 हो गयी है। खासतौर से छात्राओं की संख्या बढ़ी है।’’
भाषा
गोला सिम्मी
सिम्मी
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