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Sunday, 29 September, 2024
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गोवा, त्रिपुरा में शिकस्त के बाद टीएमसी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को झटका लगा

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(प्रदीप्त तापदार)

कोलकाता, 14 मार्च (भाषा) गोवा चुनावों में करारी हार और कुछ महीनों पहले त्रिपुरा में निकाय चुनावों में शिकस्त से ऐसा प्रतीत होता है कि तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व के तौर पर पार्टी को पेश करने के प्रयासों को झटका लगा है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में 2021 में शानदार जीत के बाद टीएमसी ने राज्य के बाहर भी अपने पैर पसारने की तैयारी कर ली है। उसने गोवा में जमीनी काम शुरू किया लेकिन उच्च स्तर पर नेताओं के प्रचार करने, स्थानीय पार्टी के साथ गठबंधन करने और विरोधी खेमे के कई नेताओं को शामिल करने के बावजूद पार्टी को महज 5.21 प्रतिशत वोट मिले और 40 सदस्यीय विधानसभा में उसका खाता भी नहीं खुला।

इस कड़ी परीक्षा में नाकाम होने के बाद पार्टी अब मेघालय और त्रिपुरा में चुनावों के मद्देनजर नयी रणनीति बना रही है।

टीएमसी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘‘अगर आप एक या दो चुनाव हार जाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपका काम खत्म हो गया है। मूड बदलने के लिए केवल एक जीत की दरकार होती है। हर कोई यह बात करता है कि आपने कितनी सीटें जीती या हारी, कोई भी मत प्रतिशत की बात नहीं करता। हम गोवा में महज कुछ महीने पहले गए और पांच प्रतिशत से ज्यादा वोट पाए। मुझे लगता है कि यह अच्छी शुरुआत है।’’

त्रिपुरा में पिछले साल हुए निकाय चुनावों में पार्टी को 24 प्रतिशत मत मिले थे लेकिन वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही।

टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गोवा में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप नहीं था और इससे उसकी रणनीतियों की समीक्षा की आवश्यकता पैदा हो गयी है। उन्होंने अपनी पहचान न उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘‘यह हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को झटका है। हमने गोवा में काफी समय और ऊर्जा लगायी लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। हमें आने वाले दिनों में आगे बढ़ने से पहले अपनी योजनाओं का फिर से आकलन करने की आवश्यकता है।’’

उन्होंने यह भी कहा कि इसकी संभावना नहीं है कि पार्टी ‘‘कुछ समय के लिए’’ अन्य राज्यों में जाएगी।

विपक्षी नेतृत्व के मुद्दे पर टीएमसी नेता ने कहा, ‘‘विपक्षी खेमे में कई नेता है लेकिन ममता बनर्जी सबसे वरिष्ठ हैं।’’

बनर्जी को 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष के मुख्य चेहरे के तौर पर दिखाने की कोशिश करते हुए टीएमसी विविध भौगोलिक और राजनीतिक पृष्ठभूमियों के लोगों को पार्टी में शामिल कर रही है और हर मौके पर कांग्रेस को घेर रही है लेकिन हाल की चुनावी हार ने पार्टी को झटका दिया है।

टीएमसी सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुखेंदू शेखर राय ने कहा, ‘‘न तो ममता बनर्जी और न ही टीएमसी के किसी नेता ने दावा किया कि वह विपक्ष की नेता बनेंगी। उन्होंने भाजपा के विरोधी प्रत्येक नेता से एक साथ आने और भाजपा के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘राजनीति एक लंबी चलने वाली लड़ाई है। आम आदमी पार्टी को गोवा में दो से तीन वर्षों तक प्रचार करने के बाद केवल दो सीटें मिली हैं। हम बेहतर कर सकते थे अगर हमने कुछ साल पहले शुरू किया होता। हमारी विस्तार की योजनाएं अब भी कायम है।’’

उनका समर्थन करते हुए एक अन्य टीएमसी नेता ने कहा, ‘‘आप टेस्ट मैच खेल रही थी और हम टी-20 मैच।’’

टीएमसी सूत्रों के अनुसार, विस्तार की योजनाओं में सबसे बड़ा रोड़ा उन रणनीतियों में से एक है जिसने पार्टी को बंगाल में जीत दिलायी यानी बंगाली उप-राष्ट्रवाद का प्रचार।

वहीं, लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘‘टीएमसी की कभी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं नहीं रही। उसकी मुख्य योजना कांग्रेस के वोट काटने और भाजपा की मदद करनी है, जो उसने किया। गोवा में उसने भाजपा को जीतने में मदद की।’’

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि टीएमसी की महत्वाकांक्षाएं एक बार फिर ढह गयी हैं।

राजनीतिक विश्लेषक सुमन भट्टाचार्य का मानना है कि टीएमसी मानती है कि बंगाल हमेशा उसका केंद्र रहेगा और इसलिए उसने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में राज्य के सदस्यों को भर लिया है। ममता बनर्जी का मानना है कि बंगाल अन्य राज्यों के मुकाबले उनका प्यार लौटाएगा। बंगाल की लोकसभा में 42 सीटें हैं और संसदीय राजनीति में संख्या मायने रखती है।’’

राजनीतिक विश्लेषक बिस्वनाथ चक्रवर्ती खुलकर कहते हैं कि टीएमसी ने अपनी राष्ट्रीय विश्वसनीयता खो दी है।

भाषा गोला उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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