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Friday, 29 March, 2024
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बेगूसराय: ‘आज़ादी’ के नारों के बीच- ‘तनवीर जीते तो गिरिराज की हार होगी, कन्हैया जीते तो मोदी की’

आम चुनाव की ग्राउंड रिपोर्टिंग में दिप्रिंट की टीम को बेगूसराय में राजनीति के कई रंग दिखे. जेएनयू में 'आजादी' के नारों पर विवाद यहां बहस के केंद्र में है.

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बेगूसराय: आम चुनाव की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान दिप्रिंट की टीम को बिहार के बेगूसराय में राजनीति के कई रंग देखने को मिले. एक रंग तो ये था 2016 में जेएनयू में ‘आज़ादी’ को लेकर जो विवाद हुआ था उसने उन कथित नारों को लगाने वालों को बहस के केंद्र में ला खड़ा किया था. उसके बाद हर बहस ‘आज़ादी’ के नारों और टुकड़े टुकड़े गैंग के इर्द-गिर्द घूमती रही. लेकिन इसे भारतीय लोकतंत्र की ख़ूबसूरती ही कहेंगे कि ‘आज़ादी’ के इन विवादित नारों को कन्हैया कुमार जेएनयू से निकालकर अपने कैंपेन में बेगूसराय की सड़कों पर ले आए हैं.

सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार की रैलियों में आज़ादी के नारे तो लग ही रहे हैं, साथ ही इन्हें डीजे पर भी बजाया जा रहा है और उनकी रैली में कई युवा ‘हम ले के रहेंगे आज़ादी की टी-शर्ट’ पहने नज़र आते हैं. फैज़ान नाम के ऐसे ही एक युवक से जब दिप्रिंट ने पूछा कि उसे किससे आज़ादी चाहिए तो उसने कहा, ‘मुझे मोदी से आज़ादी चाहिए.’ वहीं, अदनान नाम के एक और युवक ने बेहद आश्चर्यजनक बात कही कि अगर तनवीर हसन जीतेंगे तो वो गिरिराज सिंह को हराएंगे लेकिन कन्हैया कुमार जीतते हैं तो ये सीधे मोदी की हार होगी.


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जब आगे पूछा गया कि मोदी से क्यों आज़ादी चाहिए तो युवक ने प्रधानमंत्री के बारे में कहा कि ‘उन्होंने बहुत ख़राब काम किया है.’ सर पर सीपीआई की पट्टी बांधे फैज़ान से जब ये पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि कन्हैया अच्छा काम करेंगे तो जवाब मिला कि ‘बिल्कुल अच्छा काम करेंगे.’ इसकी वजह ये बताई गई कि कन्हैया हिंदू-मुस्लिम सबको साथ लेकर चलते हैं.

वहीं शारिक नाम के एक और युवक ने कहा, ‘योगी जी कभी हनुमान जी को दलित तो कभी मुसलमान बताते हैं.’ उनका कहना था कि इनकी राजनीति अली और बजरंग बली वाली है. ‘एक तरफ जातिवाद बढ़ाया जा रहा है. वहीं, हमारे कन्हैया ने जीतने के बाद यूनिवर्सिटी खोलने का वादा किया है.’ ये युवा कन्हैया के फैन हैं और आंख मूंद कर उन पर भरोसा कर रहे हैं. इस समय उनकी नज़र में वे ही सही चॉइस हैं.

इन युवकों की ख़ास बात थी कि इनमें से ज़्यादातर ने या तो लाल झंडा उठा रखा था या सर पर लाल पट्टी बांध रखी थी या ‘हम ले के रहेंगे आज़ादी की टीशर्ट’ पहन रखी थी. यानि सभी वाम समर्थक नज़र आ रहे थे. अकिब नाम का एक लड़का ख़ुद को कन्हैया का बड़ा फैन बताता है. अकिब का कहना है कि किसी नेता ने उनके लिए वैसी आवाज़ नहीं उठाई जैसी कन्हैया ने. साथ ही वो कहते हैं कि कन्हैया ने उन्हें पढ़ाई के लिए भी प्रेरित किया है.

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जब कन्हैया के वादों से जुड़ा सवाल किया गया तो इस मुस्लिम युवक ने कहा कि कन्हैया जातिवाद से आज़ादी दिलाने का वादा कर रहे हैं और वो इनके लिए सबसे अहम है. हालांकि, वो शायद जातिवाद और सांप्रदायिकता के बीच कन्फ्यूज़ होता दिख रहा था. इस युवक ने पीएम नरेंद्र मोदी के 15 लाख़ वाले वादे की याद दिलाते हुए कहा कि ‘15 लाख़ तो दिए नहीं, उल्टे खाता खुलवाकर हमसे 500 रुपए वापस और ले लिए.’


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कन्हैया के फैन इन युवाओं से दिप्रिंट की ये बातचीत उस दौरान हुई जब कन्हैया चुनाव प्रचार पर निकले थे और उनका काफिला बेगूसराय ज़िले के कटहरी गांव से गुज़र रहा था. बातचीत के बीच में घुसते हुए फैजान ने कहा कि यहां कि पब्लिक में गुस्सा है और ये पीएम मोदी पर निकलेगा. वहीं जब ये पूछा गया कि क्या कन्हैया को वोट भी मिलेंगे तो सबने एक सुर में कहा कि वोट तो मिलेंगे.

इस बीच ‘आज़ादी’ की टीशर्ट पहने अदनान इस बातचीत में शामिल होते हैं और कहते हैं कि कन्हैया बेगूसराय को सबसे अच्छे से रखेगा. अदनान से पूछा गया कि ऐसे में तनवीर हसन कहां जाएंगे तो उन्होंने बेहद आश्चर्यजनक जवाब दिया. वो कहते हैं, ‘तनवीर अगर जीतेंगे तो वो गिरिराज सिंह को हराएंगे, कन्हैया जीतते हैं तो ये सीधे मोदी की हार होगी.’

काफिला आगे बढ़ता है और ये युवक आज़ादी के नारे लगाने लगते हैं. पर आज़ादी किससे – इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं- जातिवाद से. पर क्या वे मानते हैं कि मुसलमानों में भी जाति की बीमारी है इस पर वे सीधा जवाब नहीं दे पाते. उनके दिमाग में जातिवाद और सांप्रदायिकता गडमड्ड होती दिखती है.

कन्हैया समर्थकों के बीच ज़ाहिर है कि भाजपा विरोधी स्वर ही सुनाई देने थे. भाजपा से ख़फा फैजान कहते हैं, ‘हम जातिवाद से दूर होना चाहते हैं. दलित है तो दलित हमारे साथ रहें, पिछड़ा है तो साथ रहे.’ वो कहते हैं कि (बीजेपी) दलित को नीचा दिखाना चाहती है, हिंदू-मुस्लिम में फसाद कराना चाहती है और वो इससे आज़ादी चाहते हैं. वो कहते हैं, ‘हमारे बिहार में ऐसा नहीं हुआ और ख़ासकर बेगूसराय में तो और भी नहीं. हम नहीं चाहते कि हम आपसे में लड़ें.’ फैजान कहते हैं कि उन्होंने तनवीर हसन को तीन बार वोट दिया है लेकिन इस बार कन्हैया को एक चांस देंगे.

दिप्रिंट जब कन्हैया के इस काफिले के साथ चला रहा था तो उनके दो भाषण हुए जिसमें कई बार वो सीधे पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते नज़र आए. बावजूद इसके कि उनकी लड़ाई भाजपा के गिरिराज सिंह और महागठबंधन के तनवीर हसन के ख़िलाफ़ है. कन्हैया के भाषणों और इन युवाओं की प्रतिक्रिया से इतना तो साफ है कि कन्हैया ने एक तबके के ज़ेहन में अपनी लड़ाई सीधे पीएम नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ छाप दी है. कन्हैया के लिए कैनवासिंग कर रहे एक अनुभवी युवक का कहना था कि मुस्लिम युवाओं में तो कन्हैया को लेकर जोश है लेकिन बाकी का मुस्लिम समाज चुप है, अपने पत्ते नहीं खोल रहा.

एक दिन के कैंपेन के दौरान दिप्रिंट का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा. मुस्लिम युवा कन्हैया के पक्ष में छाती ठोंककर बोल रहे हैं. लेकिन जब अधेड़ या बुज़र्गों से पूछा गया कि क्या वो सीपीआई के इस कैंडिडेट को वोट देंगे तो वो कहते हैं, ‘देखिए.’ देखिए ये उनका जो मतलब है उसे समझना बेहद टेढ़ी खीर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी हालत सांप-छछुंदर वाली है और वो नहीं चाहेंगे कि उनका वोट बंटे. ऐसा इसलिए भी है कि एक तरफ तो उनके अपने समुदाय से आने वाले महागठबंधन के तनवीर हसन हैं जो कि 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद महज़ 40,000 के करीब वोटों से हारे थे. वहीं, दूसरी तरफ भाजपा के गिरिराज सिंह हैं जो लोगों को ‘पाकिस्तान जाने’ की बात करते रहते हैं.

मुस्लिम समाज इस उहापोह में है कि वो तनवीर हसन का साथ दें या दिल्ली से आज़ादी का नारा ले कर आए कन्हैया कुमार को. पर युवाओं में ज़रूर कन्हैया का जादू नज़र आ रहा है. और इस वक्त वो उन्हें राजनीति में एक नई आशा के रूप में नज़र आ रहे हैं.


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बेगूसराय में 2014 में सीपीआई उम्मीदवार राजेन्द्र प्रसाद सिंह को 17.8 प्रतिशत मत मिले थे और भाजपा और आरजेडी के बाद वे तीसरे नंबर पर आए थे. अगर कन्हैया जीतते हैं तो ये राजनीतिक तौर पर तो बड़ा उलटफेर होगा पर ये बेगूसराय में भूमिहर जाति के वर्चस्व को कम नहीं करेगा. कन्हैया भी इसी उच्च जाति से आते हैं और भाजपा के गिरिराज सिंह भी. इन दोनों में से किसी की भी जीत भूमिहरों की क्षेत्र पर मज़बूत पकड़ बनाए रखेगी. यानि इस चुनाव में बहुत कुछ बदलने का वादा अपने साथ बहुत कुछ वैसा ही रहने वाला है का यथार्थ भी लाएगा.

बेगूसराय में फिलहाल मीडिया की चर्चा में तो कन्हैया ही आगे चल रहे हैं. पर ये संभव है कि जिन युवाओं से हमारी बात हुई है वो बेहद छोटा सैंपल साइज़ हो और ये पूरे बेगूसराय के मुस्लिम युवाओं की राय नहीं हो. पर उनके लड़ाई ने यहां के युवाओं को नया जोश दिया है और उनको कन्हैया से बहुत आशा भी है. देखने वाली बात होगी कि अगर कन्हैया जीत जाते हैं तो क्या वो इन युवाओं को ‘आज़ादी’ दिला पाते हैं?

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