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Thursday, 25 April, 2024
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रामपुर की जंग में जया और आजम के बीच आखिर कौन हैं संजय कपूर

कांग्रेस द्वारा रामपुर लोकसभा सीट से पार्टी के राष्ट्रीय सचिव संजय कपूर को टिकट देने से एक रोमांचक मुकाबला बनने की उम्मीद है.

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नई दिल्ली: हर बार देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश सबसे अहम रोल अदा करता है. आठ प्रधानमंत्री देने वाले इस सूबे पर सभी राजनीतिक दलों की पैनी निगाह रहती है. अब जब लोकसभा चुनाव के मतदान के दिन करीब आ गए है. वैसे में एक-एक सीट का गुणा भाग अभी से शुरू हो गया है. उप्र में कुल 80 लोकसभा सीटे है. सभी सीटों के अपने अलग अलग जातीय समीकरण हैं. प्रदेश की कुछ सीटे ऐसी हैं जहां स्टार पावर या दबंगई चलती रही है. ऐसी ही चर्चित सीटों में से एक है रामपुर लोकसभा सीट.

यहां से समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री आजम खां मैदान में हैं. उन्हें टक्कर देने के लिए इस सीट से सपा के टिकट से दो बार सांसद रही फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को भाजपा ने मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक संजय कपूर को दोनों हाई-प्रोफाइल चेहरों के सामने खड़ा किया है.

कौन हैं संजय कपूर

संजय कपूर का जन्म यूपी के रामपुर जिले के बिलासपुर में 15 जुलाई 1962 को हुआ था. रोहेलखंड यूनिवर्सिटी से कामर्स में ग्रेजुएशन करने के बाद राजनीति में पहला कदम उन्होंने महज 20 साल की उम्र में रखा, जब वे गजरौला ग्राम पंचायत के प्रधान बने. इसी बीच उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की. साल 1985 में यानी 23 साल की उम्र में उन्हें जिला युवक कांग्रेस, रामपुर का अध्यक्ष बना दिया गया. यहीं नही संजय जिला सहकारी बैंक रामपुर के अधयक्ष भी रहे हैं. इसके अलावा 1996 से लेकर 2004 तक वो प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में भी काम किया है.

लगातार 10 साल तक विधायक रहे

रामपुर की बिलासपुर विधानसभा सीट से संजय कपूर 2002 में सपा की बीना भारद्वाज से चुनाव हार गए. लेकिन पार्टी ने उनपर भरोसा रखते हुए एक बार फिर से उन्हें मौका दिया और संजय ने इस बार निराश नहीं किया. 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के ज्वाला प्रसाद को लगभग 900 वोटों से हराकर जीत दर्ज की. इसके बाद उन्होंने अगला चुनाव भी जीता और बिलासपुर सीट से लगातार 10 साल तक विधायक रहे.

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रामपुर की बिलासपुर विधानसभा सीट पर सपा और कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. लेकिन 2017 में सपा और कांग्रेस के संयुक्त गठबंधन सीट पर चुनाव लड़ रहे संजय कपूर चुनाव हार गए. उन्हें भाजपा के टिकट से पहली बार चुनाव लड़े बलदेव सिंह से हार का सामना करना पड़ा.

लेकिन अब सवाल यह है कि 2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद भी कांग्रेस ने रामपुर की हाईप्रोफाइल सीट से संजय कपूर को क्यों मैदान में उतारा है.

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव जीताने का मिला फायदा

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव संजय कपूर को बीते नवंबर में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सहप्रभारी का जिम्मा सौंपा गया था. संजय कपूर ने अपना पूरा जोर लगाया और इसका फायदा पार्टी को चुनाव में भी मिला. कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में 15 साल बाद वापसी करते हुए 230 में से 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी. मध्यप्रदेश में सहप्रभारी के तौर पर काम करते हुए संजय कपूर की नजदीकियां कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से बढ़ी. अब जब सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमान मिली तो संजय को लोकसभा उम्मीदवार के रूप में इसका फायदा मिला.

मुस्लिम वोटों के विभाजन का फायदा

रामपुर में आधे से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. अगर 2014 के लोकसभा चुनाव को देखे तो कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खान को, सपा ने नासिर अहमद खान को और बसपा ने अकबर हुसैन को मैदान में उतारा था. वहीं भाजपा ने डॉ नेपाल सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था. मुस्लिम वोटों के बिखराव का फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिला और उन्होंने लगभग 23 हजार वोटों से चुनाव जीत लिया. इस घटना से सबक लेते हुए इस बार कांग्रेस ने संजय कपूर पर दांव चला है.

स्थानीय होने का फायदा

संजय को स्थानीय कैंडिडेट होने का फायदा मिला है. उन्हें टिकट मिलने पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य अरशद अली खां गुड्डू ने खुशी जताते हुए उन्हें जमीन से जुड़ा नेता बताया. और उनके होने से कांग्रेस के मजबूत होने की संभावना भी जताई. संजय को क्षेत्र में बतौर विधायक दस साल गुजारने का भी अनुभव भी काम आएगा.

कद्दावर नेताओं के बीच कैसे स्वीकारेंगे चुनौती

रामपुर से सपा-बसपा ने आजम खां को उतारा है, वहीं भाजपा ने दो बार की सांसद जयाप्रदा को अपना उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में संजय की राह आसान नहीं होने वाली है.

दिप्रिंट से बातचीत में संजय ने बताया, ‘मैं एक सामान्य सा कार्यकर्ता हूं. और रामपुर की बिलासपुर से लगातार दो बार विधायक रहा हूं. पार्टी ने किसी जातिगत मुद्दे को देखते हुए मुझे टिकट नहीं दिया है. रामपुर की जनता ने आजम खां और जयाप्रदा दोनों पर भरोसा करके देख चुकी है. क्षेत्र की जनता उन दोनों से तंग आ गई है.’

क्या नवाब परिवार से कोई मतभेद है?

रामपुर लोकसभा सीट पर नवाब परिवार का दबदबा सालों से रहा है. कांग्रेस ने अब तक लगभग हर चुनाव में नवाब परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया है. यह पहली बार है कि रामपुर के इस रसूखवाले परिवार से किसी को  टिकट न देकर किसी अन्य को टिकट दिया है. ऐसे में क्या नवाब परिवार से कोई मतभेद होने की संभावना है?

संजय कपूर बताते हैं, ‘जहां तक बात है नवाब परिवार के समर्थन की तो मुझे सभी का समर्थन प्राप्त है. हमारा नवाब परिवार से कोई मतभेद नहीं है. हम सबको साथ लेकर इस चुनाव में उतरे हैं. पार्टी के हर स्तर पर हम बातचीत कर मैदान की रणनीति तैयार कर रहे हैं.’

रामपुर सीट क्यों है हाईप्रोफाइल

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आना वाला रामपुर की गिनती उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बाहुल इलाकों में होती है. करीब 16 लाख से अधिक मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में 2011 की जनगणना के अनुसार यहां करीब 51 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में मौलाना अब्दुल कालाम आजाद ने कांग्रेस की ओर से लड़ते हुए रामपुर सीट से जीत दर्ज कर थी. बाद में वे देश के पहले शिक्षा मंत्री भी बने.

नवाब खानदान का रहा है बोलबाला

1957 से हुए अबतक हुए कुल 15 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामपुर लोकसभा सीट से नवाब खानदान के लोगों को ही मैदान में उतारा. जिसमें इस कुनबे ने 9 बार लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की है. जुलफिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां 5 बार सांसद रहे, वहीं उनकी पत्नी नूरबेगम भी 1996 और 1999 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल कर लोकसभा पहुंची हैं. 2014 में नूरबेगम को कांग्रेस ने टिकट दिया था, लेकिन उन्हें भाजपा के नेपाल सिंह से शिकस्त झेलनी पड़ी.

आजम खां का भी है यहां दबदबा 

सपा सरकार में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खां रामपुर विधानसभा सीट से 9 बार विधायक रह चुके हैं. आजम खान रामपुर के नवाब परिवार के मुखर विरोधी रहे हैं.

अब देखने वाली बात होगी कि संजय कपूर महागठबंधन के प्रत्याशी और सपा के दिग्गज नेता आजम खां और रामपुर से दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुकी और इस बार भाजपा के टिकट से मैदान में उतरी जयाप्रदा को किस तरह चुनौती दे पाते हैं.

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