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Wednesday, 24 April, 2024
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मोदी वाराणसी को पेरिस बनाना चाहते हैं, पर यहां के निवासी बता रहे हैं उनकी पहचान खतरे में

वाराणसी के कायापलट के लिए 600 करोड़ की परियोजना के तहत 200 से अधिक घर, दुकान ढ़हाए जा चुके हैं. गुस्साए निवासी कहते हैं कि हर घर में मंदिर हैं और हर इमारत का ऐतिहासिक महत्व है.

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वाराणसी: वाराणसी की तंग गलियों से होकर काशी विश्वनाथ मंदिर और इस पुराने शहर के मशहूर घाटों पर जाने पर यहां कई दुकानों पर काले सफेद पोस्टर नज़र आते हैं. मनमोहन अग्रवाल की बर्तन की दुकान पर लगा पोस्टर है, ‘ एक ही भूल, कमल का फूल’. जो रास्ता

अपने काव्यात्मक अंदाज़ में इस पोस्टर पर एक विनती भी लिखी है – ‘मोदी जी एक काम करो, पहले रोटी का इंतज़ाम करो, फिर हमको बेरोज़गार करो.’

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काशी विश्वनाथ मंदिर को ले जाने वाली एक दुकान जिस के बाहर लगे पोस्टर पर लिखा है एक ही भूल, कमल का फूल | अदिति वत्सा, दिप्रिंट

इस गुस्से के मर्म में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र विकास परियोजना है जो कि मोदी का सपना है और हाल ही में जिसका नामकरण विश्वनाथ धाम रखा गया. परियोजना की कुल लागत 600 करोड़ रुपये है.

शहर के जरजर रूप को बदलने के लिए 200 से ज़्यादा घरों और दर्जनों दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया है ताकि उन्हें एक सरीखा बना कर पेरिस जैसा रूप दिया जा सके.

मोदी के प्रतिनिधित्व वाली इस सीट पर भाजपा के दो मुख्य मुद्दे हैं- विकास और हिंदुत्व- दोनों एक दूसरे के विरोधाभास में खड़े हैं. एक बेतरतीब धार्मिक नगरी जो कि आधुनिकीकरण परियोजना का सामना कर रही है.

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नाराज़ नागरिक, वो भी जो दावा करते हैं कि उन्होंने 2014 में मोदी के लिए वोट किया था, अपना गुस्सा जग ज़ाहिर कर रहे हैं इन पोस्टरों के ज़रिए, जिसकी हमने पहले चर्चा की थी.

अग्रवाल कहते हैं कि ‘किसी भी राजनीतिक दल ने हमारी चिंता पर ध्यान नहीं दिया. न कांग्रेस, न सपा-बसपा गठबंधन ने मामले को चुनावी चर्चा का हिस्सा बनाया. यहां तक की मीडिया भी मामले में चुप बैठा है.’

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विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के लिए ढहाया गया ललिता गली का एक हिस्सा. कथित तौर पर एक हाउस के अंदर छिपे मंदिर को जिसे अब ढहा दिया गया है. | अदिति वत्सा, दिप्रिंट

वाराणसी का पेरिस प्रोजेक्ट

विश्वनाथ धाम की चार चरण की परियोजना की आधारशिला मोदी ने 8 मार्च को रखी थी पर काम पिछले साल शुरू हुआ. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट जो कि इस योजना का काम देख रहा है, के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, विशाल सिंह कहते हैं, ‘इस परियोजना का मकसद वाराणसी को भीड़भाड़ मुक्त करना और सौन्दर्यीकरण करना, अनाधिकृत निर्माण हटाना और श्रद्धालुओं की मंदिर तक पहुंच को आसान करना है.’

सिंह ने साथ ही कहा, ‘इस योजना के पीछे विचार महत्वाकांक्षी है और कई ऐतिहासिक शहर जैसे पेरिस में (19वी सदी में) बस्तियों को हटाया गया था, के समान है.’

वे कहते हैं, ‘तंग गलियों और दुकानों ने वाराणसी में कानून व्यवस्था बनाए रखने को भी मुश्किल बना दिया है. कभी कोई भगदड़ हो या आग लगे या कोई मेडिकल इमरजेंसी हो तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाता है.’

सरकार ने काशी विश्वनाथ मंदिर के 700 मीटर के दायरे में तकरीबन 200 इमारतों को अपने हाथ में लिया है और उनको ‘काफी मुआवज़ा’ भी दिया है. सिंह ने साथ ही कहा कि सरकार बाकी इमारतों को भी अपने कब्ज़े में लेने वाली है.

सरकार के मुआवज़े के तहत विस्थापित किये गए दुकानदारों को इन नव विकसित परियोजना में दुकानें दी जाएंगी, साथ ही नकद भी जिससे वे इमारत और दुकान खरीद सकें.

पर ये योजना उतने अच्छे से नहीं चल पा रही जैसा कि आशा थी. अग्रवाल ने कहा कि कई लोगों को मुआवज़ा नहीं मिल रहा क्योंकि उनके पास ज़मीन के मिलकियत के कागज़ात नहीं हैं. दुकानदार इस बात से भी नाखुश हैं कि भले ही उन्हें प्राथमिकता दी जाये फिर भी उन्हें नव विकसित क्षेत्र में दुकान खरीदनी पड़ेगी.

बनारस की पहचान पर हमला

700 मीटर लंबे विश्वनाथ कॉरिडोर क्षेत्र के रहने वाले कहते हैं कि कि तंग गलियां, पुरानी इमारतें और ये मान्यता कि काशी के हर घर में मंदिर है- बनारस की पहचान है.

एक और स्थानीय दुकानदार, मनीष कुमार कहते हैं, ‘यहां दुनियाभर से लोग आते हैं और महीनों, सालों बिताते हैं. वे इन गलियों को देखने आते हैं जो घाटों की ओर जाती हैं.’ उन्होंने कहा, ‘हमारी यही पहचान भाजपा शासन में खतरे में है. हर इमारत का ऐतिहासिक महत्व है.’

वाराणसी स्थित सेवानिवृत्त पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह पक्का महल इलाके में गिरा दी गई बिल्डिंग के मलबे के ढेर के बीच खड़े हैं. ये वाराणसी का ‘केंद्र’ है और यहां से उन्होंने बताया कि शहर का मर्म क्या है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ललिता घाट जाने वाली गली ललिता गली प्रोजेक्ट के तहत आती है, यहां पहले बुज़ुर्गों के लिए एक आश्रम था, जो कि वाराणसी में स्थित कई मुक्ति धाम की तरह है.’ उन्होंने कहा, ‘लोग कहते हैं कि अगर काशी में आपकी मृत्यु होती है, तो आपकी आत्मा को बार-बार जन्म लेने के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. आश्रम अब नहीं रहा. यही हाल लाहौरी टोला के ऐतिहासिक आबादी का भी हुआ…’

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बनारस में पक्का महल क्षेत्र जो कि मलबा बन गया है. | अदिति वत्सा, दिप्रिंट

लाहौरी टोला का इतिहास बताते हुए पत्रकार ने कहा कि ‘जब लाहौर के महाराज रंजीत सिंह [1780-1839] ने वो सोना दान किया जिसे बाबा विश्वनाथ के मंदिर के ऊपर लगाने के लिए इस्तेमाल किया गया था तो उनके साथ कई लोग लाहौर से काशी तक आए थे.’ वो आगे कहते हैं, ‘उनकी वापसी में कुछ लोग तो उनके साथ चले गए लेकिन कई लोग यहीं रुककर बस गए. इस तरह से लाहौरी टोले को इसका नाम मिला-वो जगह जहां लाहौर के लोग रहते थे.’

जब परियोजना के लिए भूमि ली जाने लगी और इमारतों को ढहाया जाने लगा तो कई छोटे-बड़े मंदिर निकल आए. ये मंदिर स्थानीय लोगों के लिए वाराणसी की पवित्र पहचान का हिस्सा हैं और इन्हें डर है कि इन मंदिरों को पुनर्विकास का दंश झेलना पड़ सकता है. मंदिर ट्रस्ट के सिंह इन चिंताओं को तुरंत शांत करते हैं: ‘हमें नहीं पता था कि घरों के भीतर इतने सारे मंदिर छुपे हैं. इनके मिलने के बाद प्रोजेक्ट प्लान को बदला गया है और और अब ये मंदिर उसका हिस्सा होंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से भी बात कर रहे हैं ताकि इन मंदिरों की पहचान करके इनका इतिहास खंगाला जा सके.’ हालांकि, स्थानीय लोग सिंह द्वारा घरों में मंदिरों के होने की बात पता नहीं होने के दावे का खंडन करते हैं. अग्रवाल ने कहा, ‘काशी में सबको पता है कि हर घर में एक मंदिर है. कई सालों पहले लोगों ने मंदिर के चारों ओर अपने घर बना लिए ताकि विदेश आक्रमण से इन्हें बचाया जा सके.’

राजनीतिक विरोध

राजनीतिक उदासीनता की स्थानीय शिकायतों के बावजूद वाराणसी से कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय का कहना है कि परियोजना से प्रभावित हुए लोगों के मुद्दों को वो कई महीनों से उठाते रहे हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ये असल में एक चुनावी मुद्दा है और मैं इससे जुड़े हर प्रदर्शन में प्रमुखता से हिस्सा लेता रहा हूं. परियोजना की वजह से बीजेपी ने बनारस के सार को ही ग़ायब कर दिया है और स्थानीय लोगों के लिए कोई पुनर्वास की योजना नहीं है.’

समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि इसके हितधारकों के पीछे हटने के बाद पार्टी ने भी मामले से अपने कदम पीछे खींच लिए. नेता ने आगे कहा, ‘शुरू में हम परियोजना को लेकर अपने विरोध के मामले में मुखर थे. लेकिन स्थानीय लोगों ने कदम पीछे खींच लिए. ऐसी स्थिति में कोई क्या कर सकता है.’ भाजपा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘वाराणसी एक प्राचीन आध्यात्मिक शहर है. परियोजना के तहत कई मंदिरों को तोड़ दिया गया. अगर किसी और सरकार में ये हुआ होता तो दंगे हो जाते, लेकिन क्योंकि ये बीजेपी सरकार है और इन मामलों में उनका एकाधिकार है, वो कुछ भी कर सकते हैं.’

भाजपा के काशी के प्रभारी और एमएलसी लक्ष्मण आचार्या ने परियोजना से जुड़े विपक्ष के विरोध को ‘राजनीतिक लाभ’ से जुड़ा बताया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ये स्थानीय लोग नहीं थे बल्कि बाहर के लोग थे जो मंदिरों की पवित्रता में विश्वास नहीं करते. लोगों ने घरों में मौजूद मंदिरों को शौचालयों में बदल दिया था.’ उन्होंने आगे कहा, ‘पीएम नरेंद्र मोदी के दृष्टि और सीएम योगी आदित्यनाथ के संकल्प की वजह से इन मंदिरों को अब नवीकरण किया जाएगा और आम लोगों की इन तक पहुंच होगी.’

भाजपा नेता ने स्थानीय लोगों के पुनर्वास से जुड़ी चिंताओं को भी ख़ारिज किया. उन्होंने कहा, ‘उनके नुकसान की भरपाई अच्छे तरीके से की गई है और लोगों को सरकार के उस लक्ष्य में विश्वास है जिसके तहत सबको घर और रोज़गार दिया जाना है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘जिन लोगों के नुकसान की भरपाई की गई है उन्हें सरकार से कोई शिकायत नहीं है और उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी यहां से कहीं और जाकर ज़मीन ख़रीद ली है.’

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से वाराणसी की सीट भी एक सीट है. इस सीट पर आख़िरी फेज़ में 19 तारीख़ को वोटिंग होनी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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