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Friday, 19 April, 2024
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भाजपा यूं ही बदनाम है, कांग्रेस ने भी क्या किया मुसलमानों के लिए

कांग्रेस पार्टी के आखिरी मुख्यमंत्री 1982 में बने थे. क्या उसके बाद पार्टी को मुस्लिम समुदाय से कोई चेहरा नहीं मिला जो कि सूबे का नेतृत्व कर सके?

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नई दिल्ली: देश में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने और उनके समाज को उचित प्रतिनिधित्व नहीं देने के आरोप भारतीय जनता पार्टी के ऊपर लगते रहे हैं. वहीं कांग्रेस सहित अन्य दलों ने भी अल्पसंख्यकों को अपनी पार्टी में न तो खास जगह दी है न ही कुछ ठोस कदम उठाए हैं. भाजपा ने इस चुनाव में अपने फायदे के लिए अल्पसंख्यक सीटों पर उम्मीदवार ज़रूर खड़े किए, लेकिन कोई खास सफलता हासिल नहीं मिल पाई. वहीं कांग्रेस पार्टी के भी महज 4 ही अल्पसंख्यक प्रत्याशी जीतकर आए हैं. हर बार अल्पसंख्यकों पर राजनीति करने वाली कांग्रेस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश में केवल 5 ही मुस्लिम मुख्यमंत्री दिए हैं.

अभी तक मुस्लिम विरोधी पार्टी मानी जाने वाली भाजपा से इतर देश में करीब 5 दशक तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. दबी जुबान से ये बातें सामने आने लगी है कि कांग्रेस पार्टी ने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ खास नहीं किया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी अल्पसंख्यकों को राजनीतिक महत्व देने की ज़्यादा इच्छुक नज़र नहीं आती हैं. हालिया परिणामों में जहां अल्पसंख्यक वोट बैंक को भुनाने का वर्षों पुराना फार्मूला धराशायी हो गया है. वहीं भाजपा को अल्पसंख्यकों के बिन चुनाव में जीत हासिल करने की जीत की थ्योरी भी हाथ लग चुकी है. यह तो साफ नज़र आ रहा है कि आने वाले दिनों में अल्पसंख्यक हितैशी राजनीति के फार्मूेले पर चलने वाले भी इससे किनारा करने लगेंगे.

वर्षों से अल्पसंख्यक हितैशी होने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी पर भी सवाल उठने लगे हैं. कांग्रेस का अब पुराने रिकॉर्ड के आधार पर कहा जा रहा है कि अलसंख्यकों के वोट हासिल करने के बावजूद छह दश्कों में कांग्रेस ने उनके लिए बहुत ज्यादा कुछ भी नहीं किया. कुल जमा कांग्रेस पार्टी ने आज तक पांच ही सीएम बनाए जो अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते है.

मोदी की जीत के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी अनदेखी की चलते शायद अल्पसंख्यकों ने केवल कांग्रेस पार्टी से किनारा नहीं किया बल्कि क्षेत्रीय दलों का हाथ थाम लिया. इस चुनाव में बड़ी संख्या में मोदी का भी ​साथ दिया है.

अल्पसंख्यकों के साथ छल हुआ है, हमें विश्वास जीतने की ज़रुरत है

शनिवार को एनडीए के संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि अब हमें अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की जरूरत हैं. 2014 से 2019 तक हमारी सरकार प्रमुख रूप से गरीबों के लिए चलाई है. मैं यह गर्व से कह सकता हूं कि ये सरकार गरीबों ने बनाई है. गरीबों के साथ जो भी छल चल रहा था, उस छल में हमने छेद किया है और सीधे गरीबों के पास पहुंचे है. देश के इस गरीबी पर जो टैग लगा है उससे देश को मुक्त करना है.

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जैसा छल देश के गरीबों के साथ हुआ है, वैसा ही छल देश के अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हुआ है. अच्छा होता कि अल्पसंख्यक समुदायों की भी शिक्षा, स्वास्थ्य की चिंता जाती और उनका भी समाधान किया जाता. अन्य समाज की तरह भी उनका आर्थिक और समाजिक विकास किया जाता. इस देश में वौट बैंक के लिए हमेशा उन्हें दूर रखा और दबाकर रखा और चुनावों में इस्तेमाल किया गया. संविधान के सामने हम संकल्प लें कि देश के सभी वर्गों को उंचाईयों पर ले जाना है. जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.

इन चुनावों में बंगाल में भाजपा ने भी उतारे अल्पसंख्यक उम्मीदवार

17 वीं लोकसभा में 2014 की तुलना में इस बार मुस्लिम सांसदों की संख्या बढ़ गई है. लोकसभा में इस बार 27 मुस्लिम सांसद चुनकर आए है. पिछली बार महज 22 मुस्लिम सांसद चुनकर आए थे. जो अब तक के इतिहास में सबसे कम था. वहीं 15 वीं लोकसभा में 33 मुस्लिम सांसद ही चुनकर आए थे. 1980 में सबसे ज्यादा 49 उम्मीदवार लोकसभा पहुंचे थे.

जानकारी के अनुसार इन चुनावों में उत्तर प्रदेश से 6 मुस्लिम सांसदों ने जीत हासिल की है. इसके अलावा केरल से तीन, असम से दो, जम्मू—कश्मीर से तीन, पश्चिम बंगाल से चार, बिहार से दो, पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना,लक्ष्यद्वीप और तमिलनाडु से एक एक मुस्लिम सांसद चुन कर आए है.

इसके अलावा पश्चिम बंगाल की कुछ लोकसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर्स को प्रभाव को देखते हुए भाजपा ने बंगाल की पांच लोकसभा सीट से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे. बंगाल में भाजपा का केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार सौमित्र खान ने बिष्णुपुर सीट पर दर्ज की है. इस चुनाव में भाजपा बीजेपी ने इस बार 5 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. वहीं कश्मीर में भी कुछ प्रत्याशी उतारे थे लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी.

कांग्रेस पार्टी के आखिरी मुख्यमंत्री 1982 में बने थे. क्या उसके बाद पार्टी को मुस्लिम समुदाय से कोई चेहरा नहीं मिला जो कि सूबे का नेतृत्व कर सके? कांग्रेस के अब तक के मुस्लिम मुख्यमंत्री ये थे

एम.ओ.हसन.फारुख मारीकर

भारत के इतिहास में पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री 1967 एम.ओ.हसन फारुख मारीकर रहे. फारुख मारीकर पांडिचेरी (पुड्डुचेरी) के भी पहले मुस्लिम सीएम थे. फारुख किसी केंद्र शासित प्रदेश के पहले सीएम थे. वे 1991, 1996 और 1999 में सांसद भी रहे है. इसके अलावा मारीकर कुछ राज्यों के राज्यपाल भी रहे है. एम.ओ.एच. फारुख मारिकर का जन्‍म 6 सितंबर 1937 को हुआ और 2012 में निधन हुआ.

बरकतुल्लाह खान

बरकतुल्लाह खान राजस्थान के पहले मुस्लिम सीएम बरकतुल्ला रहे. वे जुलाई 1971 से अगस्त 1973 तक राज्य के सीएम रहे. खान कश्मीर के अलावा किसी राज्य के पहले मुस्लिम सीएम थे. 5 अक्टूबर 1920 को बरकतुल्लाह खान का जन्म जोधपुर के एक छोटे कारोबारी परिवार में पैदा हुए थे. बरकतुल्लाह खान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नज़दीकी थे. वे फिरोज गांधी के दोस्त थे, इसलिए वे इंदिरा गांधी को भाभी कहते थे.

अब्दुल गफूर खान

कांग्रेस नेता अब्दुल गफूर खान बिहार राज्य के पहले मुस्लिम सीएम रहे है. वे जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक राज्य के मुखिया रहे. खान के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं. इनके ही शासनकाल में जेपी के नेतृत्व में नवंबर 1974 पटना में मार्च निकाला था. इस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया था. इसमें जेपी भी घायल हो गए थे. वहीं इसके अलावा 1975 में समस्तीपुर में समाजसेवी ललित नारायण मिश्र की हत्या हो गई थी. इन्हीं घटना के बाद उन्हें सीएम पद से हटा दिया गया. इनका जन्म 1918 में गोपालगंज जिले में हुआ.

ए.आर.अंतुले

अंतुले 1980 से 1982 तक महाराष्ट्र के सीएम रहे. वे महाराष्ट्र के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री थे. अंतुले मुंबई की कोलाबा लोकसभा सीट से चार बार लोकसभा सांसद भी रहे है. अंतुले ने अपनी वकालत की पढ़ाई मुंबई और लंदन में पूरी की. आक्रामक कांग्रेसी नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले अंतुले अपने मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल में सीमेंट घोटाले की वजह से सूर्खियों में छाए रहे. इनका का जन्म 9 फरवरी 1929 में हुआ. इंतकाल 2 दिसंबर 2014 में हुआ.

सी.एच.मोहम्मद कोया

केरल के पहले मुस्लिम सीएम सी.एच. मोहम्मद कोया थे. वे गैर पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. उनका कार्यकाल 12 अक्टूबर 1979 से 1 दिसंबर 1979 तक रहा.

सैयदा अनवरा तैमूर

कांग्रेस नेता सैयदा अनवरा तैमूर असम की मुस्लिम सीएम रही. उनका कार्यकाल दिसंबर 1980 से जून 1981 तक का रहा. वे मात्र छ: माह ही असम के सीएम रही. वे राज्य की और देश की पहली महिला मुस्लिम सीएम रही हैं. वे 1988 में राज्यसभा के लिए भी चुनी गई. सैयदा बीते कई दिनों से बीमार चल रही हैं. वे आस्ट्रेलिया में अपने बेटे के साथ रह रही हैं. 1982 के बाद कोई मुस्लिम जम्मू कश्मीर को छोड़कर मुख्यमंत्री नहीं बना है. ए.आर अंतुले अंतिम सीएम थे जो 1982 में सीएम बने थे.

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