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Friday, 29 March, 2024
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ये बाहुबली कभी यूपी की राजनीति के केंद्र में थे, जानें इस चुनाव में कहां जाएंगे

अधिकतर बाहुबलियों को इस बार किसी बड़े दल ने टिकट नहीं दिया है. हालांकि कुछ ने अपने करीबियों को लड़ाने की तैयारी कर ली है.

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लखनऊ: यूपी की राजनीति में बाहुबली नेताओं का काफी बोलबाला रहा है. एक वक्त तो ऐसा था कि पूर्वांचल की चुनावी हवा का रुख ये बाहुबली ही तय किया करते थे लेकिन अब वक्त काफी बदला है. अधिकतर बाहुलबलियों को इस बार किसी बड़े दल ने टिकट नहीं दिया है. हालांकि कुछ ने अपने करीबियों को लड़ाने की तैयारी कर ली है. ऐसे में देखना होगा कि वह अब कितना प्रभाव जनता पर छोड़ पाते हैं.

मुख्तार अंसारी

पूर्वांचल की राजनीति में मुख्तार अंसारी व उनका परिवार काफी अहम माना जाता है. इन्हें सूबे का बाहुबली नेता कहा जाता है. दबंगई के मामले में इनका कोई सानी नहीं है. मऊ विधानसभा क्षेत्र से ये पांच बार विधायक का चुनाव जीते हैं. 2010 में इन्हें आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण बहुजन समाज पार्टी ने पार्टी से निष्कासित भी कर दिया था, लेकिन फिर बाद में इन्हें पार्टी में शामिल कर लिया गया.

दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए क़ौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराया गया था लेकिन अखिलेश यादव इसके लिए राज़ी नहीं हुए. बाद में पार्टी को ये फ़ैसला बदलना पड़ा. कुछ ही महीनों बाद मायावती ने अंसारी परिवार को बीएसपी में शामिल कर लिया. जेल में होने के बावजूद मुख्तार का काफी प्रभाव माना जाता रहा. मुख्तार ने अपनी दबंगई के दम पर ठेकेदारी, खनन, शराब और रेलवे ठेकेदारी जैसे क्षेत्रों में अपना कब्जा जमा रखा है. इस बार उनके भाई अफजाल अंसारी को बसपा ने टिकट दिया है.


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रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया यूपी की राजनीति में निर्दलीय विधायक के तौर पर सिक्का जमाए हुए हैं. उन पर डीएसपी जियाउल हक सहित कई लोगों की हत्या का आरोप है. उनके पैतृक निवास प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील के बारे में कहा जाता था कि राज्य सरकार की सीमाएं यहां खत्म हो जाती हैं, क्योंकि वहां उनका अपना ही राज चलता है. हाल ही में उन्होंने अपनी नई पार्टी जनसत्ता दल की नींव रखी है. इस दल से वह कई प्रत्याशियों को चुनाव भी लड़ा रहे हैं.

अमरमणि त्रिपाठी

कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी को पूर्वांचल के प्रभावशाली राजनेताओं में गिना जाता है. उन्हें दलबदलू नेता के तौर पर भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने राजनैतिक सफर में कई पार्टियों का दामन थामा. उन पर हत्या सहित कई मामले दर्ज हैं. उनका बेटे अमनमणि त्रिपाठी निर्दलीय विधायक हैं. वहीं बेटी तनुश्री त्रिपाठी को इस बार प्रसपा और कांग्रेस दोनों से टिकट मिला लेकिन बाद में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया.

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अतीक अहमद

बरेली जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद काफी समय तक इलाहाबाद (प्रयागराज) की राजनीति का केंद्र रहे हैं. वह फूलपुर की लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं. उन पर हत्या की कोशिश, अपहरण, हत्या के करीब 42 मामले दर्ज हैं. राजनीति में आने के बाद भी ये अपराध की दुनिया से बाहर नहीं निकल पाए हैं. 2017 विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने उनका टिकट काट दिया था. पिछले साल फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे थे. कयास लगाया जा रहा था कि वह गठबंधन (सपा-बसपा) का नुकसान करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गठबंधन ने सीट जीत ली.

हरिशंकर तिवारी

गोरखपुर के रहने वाले हरिशंकर तिवारी सूबे के एक कुख्यात बाहुबली नेता हैं. रेलवे से लेकर पीडब्ल्यूडी की ठेकेदारी तक में इनका कब्जा है. इनके खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, फिरौती और अपहरण के 25 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. कहा जाता है कि हरिशंकर तिवारी जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले पहले नेता हैं. उसके बाद ही ये सिलसिला चल पड़ा था. उनके बेटे कुशल तिवारी को सपा-बसपा गठबंधन ने संतकबीर नगर से उम्मीदवार बनाया है.

रमाकांत और उमाकांत

रमाकांत यादव को दबंग छवि के नेता के तौर पर जाना जाता है. 2009 में भाजपा के टिकट पर आजमगढ़ से सांसद चुने गए थे. 2014 की मोदी लहर में भी वह भाजपा के प्रत्याशी थे लेकिन मुलायम सिंह यादव से चुनाव हार गए. ये मुकाबला काफी करीबी रहा था. रमाकांत विधायक भी रह चुके हैं. इस बार भी वह भाजपा से टिकट की दावेदारी में थे, लेकिन भाजपा ने निरहुआ को टिकट देकर साफ कर दिया कि अब वह दबंगों को टिकट नहीं देगी. हालांकि बाद में रमाकांत को कांग्रेस ने भदोही से टिकट दे दिया.

वहीं रमाकांत के भा़ई उमाकांत यादव इस समय जेल में हैं. वह 2004 में बसपा के टिकट पर सांसद चुने गए थे. जेल में रहते हुए भी इन्होंने कई दलों में सियासी ठौर तलाशने की कोशिश की, कोई सफलता नहीं मिली.

धनंजय सिंह

जौनपुर में बाहुबली धनंजय सिंह के नाम से हर कोई परिचित है. पहले जौनपुर के टीडी कॉलेज और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में शामिल होने वाले धनंजय ने मंडल कमीशन का विरोध करने से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की. लखनऊ विश्वविद्यालय में ही उनका परिचय बाहुबली छात्र नेता अभय सिंह से हुआ और यहीं से वह भी विश्वविद्यालय की राजनीति में शामिल हो गए. इसके बाद जौनपुर की राजनीति में प्रवेश किया.

वह 2009 में बसपा से सांसद चुने गए थे. इससे पूर्व 2002 और 2007 में जदयू से जौनपुर के ही रारी से विधायक चुने गए. 2014 लोकसभा चुनाव में निर्दल मैदान में उतरे और चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में टिकट के लिए धनंजय ने पहले कई बड़े दलों में भागदौड़ की लेकिन दाल नहीं गली है. अब वह बड़े दल के सहयोगी छोटे दलों के संपर्क में लगातार बने हुए हैं. जौनपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके धनंजय सिंह हो सकता है निर्दल या फिर किसी छोटे दल के टिकट से चुनाव मैदान में उतरना पड़े. हालांकि सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के नेताओं से अभी भी उनकी बात चल रही है.

अब बाहुबलियों को तवज्जो देने से बच रहे दल

इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल दबंग व बाहुबली नेताओं को उतनी तवज्जो नहीं दे रहे जितनी पहले देते थे. तमाम कोशिशों के बावजूद पूर्व में सांसद रह चुके बाहुबली नेता बड़े दलों से टिकट नहीं ले सके हैं. बड़े दलों के गठबंधन में शामिल छोटे दलों तक से हाथ-पैर चलाने के बावजूद इन्हें कोई सफलता नहीं मिल रही है. अब इन दबंग नेताओं के सामने एक ही रास्ता है कि वह किसी छोटे दल का दामन थामे या निर्दल होकर मैदान में जाएं. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से बाहुबली छवि के लोगों को टिकट नहीं देने की नींव उत्तर प्रदेश में पड़ी थी.


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जनता अब नकारने लगी है बाहुबली नेताओं को

यूपी में 2012 के विधानसभा चुनाव से पूर्व तक बाहुबली होना चुनाव में जीत की गारंटी मानी जाती थी लेकिन अब जनता इन्हें नकारने लगी है. 2012 के विधानसभा चुनाव में तमाम बाहुबलियों को हार का मुंह देखना पड़ा. हारने वालों में अतीक अहमद, बृजेश सिंह, अमरमणि के बेटे अमनमणि और धनजंय सिंह की पत्नी जागृति सिंह आदि नाम प्रमुख रहे. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह, अतीक अहमद, मित्रसेन यादव, डीपी यादव, रमाकांत यादव, रिजवान जहीर, बाल कुमार पटेल जैसे बाहुबलियों को भी तमाम जोड़-जुगाड़ के बावदूज हार का मुंह देखने को मजबूर होना पड़ा.

अखिलेश ने कर लिया था बाहुबलियों से किनारा

2017 के विधानसभा चुनाव में बाहुबलियों को टिकट नहीं देने का बड़ा कदम अखिलेश यादव ने उठाया था. मुख्तार अंसारी और उनके परिवार को सपा में शामिल करने का विरोध किया.अतीक अहमद, विजय मिश्र, गुड्डू पंडित, अमनमणि का टिकट काट दिया था. अधिकांश बाहुबली छोटे दलों के टिकट पर चुनाव में उतरे और हारे. सिर्फ मुख्तार अंसारी ही विधायक बनने में सफल रहे. वहीं इस चुनाव में जो बाहुबली उतर रहे हैं उनकी जीत/हार ही उनका राजनीति में भविष्य तय करेगी.

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