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Tuesday, 23 April, 2024
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जानें अनुप्रिया और राजभर से ज्यादा बीजेपी को निषाद क्यों भा रहे हैं

गोरखपुर में 3.5 लाख निषाद मतदाता हैं. सीएम योगी हरहाल में यह सीट जीतना चाहते हैं. उपचुनाव में यह मत एकतरफा एक खाते में जाने से बीजेपी को हार मिली थी.

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लखनऊः यूपी में अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), ओपी राजभर की सुभासपा के बाद अब निषाद पार्टी भी बीजेपी गठबंधन का हिस्सा हो गई है. खास बात ये है कि निषाद पार्टी के प्रति पूर्वांचल के बीजेपी नेताओं में काफी उत्सुकता है. इसका कारण गोरखपुर व उसके आसपास के जिलों में इसका मजबूत होना है. यूपी के सियासी गलियारों में चर्चा ये है कि अनुप्रिया व राजभर से ज्यादा बीजेपी को निषाद पार्टी की भूमिका बड़ी दिख रही है.

गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद ने गुरुवार को बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की. अब वह बीजेपी के टिकट पर चुनाल लड़ेंगे. हालांकि वह गोरखपुर से लड़ेंगे या किसी अन्य सीट से ये अभी फैसला होना बाकि है.

बता दें कि निषाद पार्टी हाल ही में समाजवादी पार्टी से अलग हुई थी. हाल ही में प्रवीण निषाद के पिता और निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी. दोनों की मुलाकात के बाद से ये चर्चा होने लगी थी कि दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ सकती हैं. लेकिन अब जब प्रवीण निषाद बीजेपी में शामिल हो गए हैं तो इन सभी चर्चाओं पर विराम लग गया है.

प्रवीण निषाद के बीजेपी में शामिल होने के बाद केंद्रीय मंत्री और पार्टी नेता जेपी नड्डा ने कहा कि निषाद पार्टी ने पीएम मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर बीजेपी से गठबंधन किया है.

निषाद पार्टी से हारी थी बीजेपी

बता दें कि 2017 में सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद पिछले साल यहां पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने इतिहास रचते हुए जीत हासिल की. उन्होंने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को हराया था. हालांकि इस बार वह किस सीट से लड़ेंगे यह तय नहीं, लेकिन वह अगर गोरखपुर से चुनाव लड़ते हैं तो निषाद बनाम निषाद का मुकाबला होगा, क्योंकि सपा ने रामभुआल निषाद को वहां से टिकट दिया है. इसके अलावा संजय निषाद बीजेपी के सहयोग से महाराजगंज से चुनाव लड़ सकते हैं.

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गोरखपुर हरहाल में जीतना चाहते हैं सीएम योगी

गोरखपुर को सीएम योगी का गढ़ माना जाता रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसी भी हाल में गोरखपुर लोकसभा सीट को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं. योगी आदित्यनाथ यहां से 1998 से लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं. 2017 में सीएम बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने पूरा जोर लगाया था कि यह सीट बरकरार रहे, लेकिन उपचुनाव में निषाद पार्टी के साथ मिलकर सपा ने यह सपना चकनाचूर कर दिया.

ये है निषाद पार्टी पर दांव लगाने का कारण

बीजेपी नेताओं को निषाद पार्टी इसलिए भा रही है क्योंकि पूर्वी यूपी में इनकी अच्छी पकड़ है.
गोरखपुर में 3.5 लाख मतदाता निषाद जाति के हैं. इन्हीं निषाद वोटर्स ने पिछले साल हुए उपचुनाव में प्रवीण निषाद की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. उपचुनाव में सपा और बसपा ने साझा उम्मीदवार खड़ा किया था. इससे पहले के चुनावों में भी सपा और बसपा निषाद जाति के लोगों का वोट हासिल करने के लिए निषाद उम्मीदवार को ही टिकट देती रही हैं. लेकिन उनके वोट बंट जाते थे. पिछले साल उपचुनाव में साझा उम्मीदवार होने के कारण निषाद जाति के लोगों के वोट एक ही खाते में गए, जिसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को हार मिली.

वहीं यूपी में तकरीबन 12 फीसदी आबादी मल्लाह, केवट और निषाद जातियों की है. यूपी की तकरीबन 20 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां निषाद वोटरों की संख्या अधिक है. पूर्वांचल की कई लोकसभा सीटों पर इनकी संख्या और भी अधिक है. ऐसे में एनडीए में निषाद पार्टी के शामिल होने के बाद बीजेपी को इसका सीधा फायदा होगा. गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संत कबीरनगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर लोकसभा सीटों पर निषाद वोटरों की संख्या अधिक है.

निषाद पार्टी का इतिहास

बता दें कि 2016 में संजय निषाद ने निषाद पार्टी जिसका पूरा नाम निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल की स्थापना की. 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी को ज्ञानपुर सीट से जीत हासिल हुई जहां से विजय मिश्रा जीते थे. गोरखपुर उपचुनाव में सपा से नजदीकी बढ़ने के बाद पार्टी की सपा में विलय की खबरें भी आईं. हालांकि यह प्रस्ताव सपा की ओर से था जिसे संजय निषाद ने नकार दिया. अब वह बीजेपी के सहयोग से लोकसभा का चुनाव लड़ते भी दिख सकते हैं.

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