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Friday, 19 April, 2024
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क्या ट्रम्प की नीतियों के लिए दूसरे देश भी ज़िम्मेदार हैं ?

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जहां ट्रम्प के एकतरफा फैसले व्यापारी युद्ध के खतरे को बढ़ावा दे सकते हैं वहीं उनका आर्थिक मुद्दों को सुलझाने की नीतियों के बारे में विचाफ करना भी सही है।

सामान्य सहमति से कहा जाए तो डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका का राष्ट्रपति होना हर मायने में अमेरिका के लिए बुरा ही रहा है। उनकी कर नीतियों के कारण वहां का राजकोष घाटे में है और राष्ट्रीय कर्ज बहुत बढ़ गया है। अर्थशास्त्री मार्टिन फेलस्टीन, जो आमतौर पर रिपब्लिकन प्रशासन के समर्थन में होते हैं, (बिजनेस स्टैंडर्ड, 1 जून) के हिसाब से राष्ट्रीय कर्ज 75 प्रतिशत बढ़ने के साथ साथ दस सालों में अमेरिकी राजकोष के घाटे में बहुत ही विस्फोटक बढ़ोत्तरी होगी। राष्ट्रपति द्वारा टैरिफ नीति अपनाने के कारण व्यापारिक युद्ध का खतरा बढ़ गया।

A picture of TN Ninan, chairman of Business Standard Private Limitedअंतरराष्ट्रीय संधियाँ जो या तो व्यापार को बढ़ावा देने, या जलवायु परिवर्तन को सीमित करने अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के लिए सीमायों के विस्तार का निष्कर्ष रखती थी उन सभी को ख़त्म कर दिया गया है। संधि के साथी देश, जिन्होंने दशकों से अमेरिकी सुरक्षा का आनंद लिया है, सोच में हैं कि कब यह सुरक्षा कवच हट जाएगा और उन्हें निष्काशित कर दिया जाएगा। और भारत की तरह एक तथाकथित “प्राकृतिक सहयोगी”, जो अमेरिका के करीब जा रहा था, वो अब रूस और चीन के साथ संबंध बनाने के लिए प्रयास भी करने लगा है।

वैसे इन सभी या इनमे से किसी के लिए भी ट्रम्प को दोषी ठहराते समय हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्या इस कथा के विपरीत कोई और भी कथा है? विशेष रूप से गौर करने की बात ये है कि क्या ट्रंप की प्रेसीडेंसी इस समय जिस दिशा में चल रही है उस दिशा के लिए दूसरे देश कितने जिम्मेदार हैं? जैसा कि (CAATSA) के अंतर्गत यूनाइटेड स्टेट्स का दूसरे देशों पर प्रतिबंध लगाने का ख़तरा। क्या ऐसा एक घरेलू कानून इतना उग्र होता अगर यूरोपियन संघ ने यूरो को डॉलर का एक विकल्प बनाया होता। अगर ऐसा हुआ होता तो देशों ने CAATSA के प्रतिबंधों से निकल कर व्यापार के लिए डॉलर को एकतरफा करते हुए यूरो का इस्तेमाल करते। लेकिन यूरोपीय संघ ने यूरो के लिए अंतर्राष्ट्रीय तरलता बनाने के लिए अभी तक इनकार ही किया हुआ है और इसका खुद का आधे से ज़्यादा व्यापार अभी भी यूरो के बजाय डॉलर में ही चलता है। जब विदेशी मुद्रा भंडार की बात आती है, तो डॉलर यूरो की तुलना में तीन गुना महत्वपूर्ण है।

आप यूरोप और पूर्वी एशिया के भाग्य पर भी विचार करके देखें, जिसने अमेरिका को वैश्विक पुलिसकर्मी के रूप में अपनी सुरक्षा को संरक्षित करने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी संभालने की अनुमति दी है। ऐसा करने में, उन्होंने रक्षा बजट पर पैसे बचाए हैं जबकि अमेरिका का रक्षा बजट ऐसा है जो अगले सात सबसे बड़े खर्चकर्ताओं के संयुक्त रक्षा बजट से भी अधिक है। जर्मनी जहां अपनी रक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) का सिर्फ 1.2 प्रतिशत खर्च करता है, वहीं अमेरिका के आंकड़े उनके सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में जर्मनी से तीन गुना ज़्यादा है। जापान की आंकड़े लगभग 1 प्रतिशत है। निश्चित रूप से यह सभी देश अपनी सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा कर सकते थे और अमेरिका पे अपनी निर्भरता को कम कर सकते थे। यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो यह समझ में आ जाता कि चीन और रूस के विरूदह अमरीका द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा सेवाओं की आवश्यकता नहीं होती।

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इसी तरह, चीन का करंट अकाउंट अधिशेष काफ़ी हद तक कम हो गया है, तथा अमेरिकी करंट अकाउंट डेफ़िसिट पिछले दशक में आधा ही हुआ है। अमेरिका की मांग यह होगी कि चीन अमेरिका से अत्यधिक ख़रीदारी करे लेकिन यह एक तरीक़े उस समय के लिए दवा होगी जो जा चुका है। लेकिन चीन की मुद्रा नीति और प्रौद्योगिकी की चल रही चोरी लंबे समय से बहुपक्षीय नियमों से उन्मुक्त रही है। तो द्विपक्षीयवाद की कोशिश करने के लिए ट्रम्प को क्यों दोष दें? उनका दृष्टिकोण काम कर सकता है या नहीं भी कर सकता है। यदि चीन अमेरिका से अधिक खरीदता है, जो ट्रम्प चाहते हैं, तो हो सकता है की बीजिंग अन्य देशों के ऑर्डर जो कि चीन को मिलते है वो अमेरिका को दे दें । यह व्यापार विस्तार के बजाय व्यापार-विचलन होगा। आश्चर्य की बात तो यह है की जर्मनी का का करंट अकाउंट अधिशेष, जीडीपी के संबंध में, उतना ही है जितना की किसी समय चीन का हुआ करता था (आश्चर्यजनक 8 प्रतिशत)। बर्लिन को बीजिंग की तुलना काफ़ी कुछ सपस्थ करना है। तो यदि ट्रम्प जर्मनी पर निशाना साध रहे हैं तो इसमें आश्चर्यजनक क्या है।

ट्रम्प की एकतरफा कार्रवाई सहयोगियों को अपमानित करती है और एक व्यापार युद्ध का खतरा बढ़ाती है, लेकिन उनका कहना सही है कि प्रमुख आर्थिक मुद्दों को संबोधित किया जाना चाहिए। इसी तरह, कौन कह सकता है कि वीज़ा नियमों का शोषण करने के लिए भारत का अपना लक्ष्यीकरण, आम तौर पर उच्च शुल्क और आयात पर प्रतिबंध नीतियां औचित्य से रहित हैं?

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