scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतखट्टर की टिप्पणी के बाद याद करें क्या कह गए प्रेमचंद और सरोजिनी नायडू 

खट्टर की टिप्पणी के बाद याद करें क्या कह गए प्रेमचंद और सरोजिनी नायडू 

Text Size:

वो दिन चले गये जब दूसरे मज़हबों से जुड़ी हुई प्रथाएं हमें अच्छी लगा करती थीं। अब वे हमें डराती हैं।

“सहसा ईदगाह नजर आई. ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है. नीचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजिम बिछा हुआ है और रोजेदारों की पंक्तियाँ एक के पीछे एक न जाने कहाँ तक चली गई हैं, पक्की जगत के नीचे तक, जहाँ जाजिम भी नहीं है. नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं. आगे जगह नहीं हैं. यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता. इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं. इन ग्रामीणों ने भी वजू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गए.

कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुंदर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं. एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे. कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं. मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए हैं.”

यह प्रेमचंद हैं. ईदगाह कहानी के हामिद का जिक्र तो अक्सर होता है लेकिन हिंदी कथा संसार में नमाज़ का ऐसा वर्णन किसी और ने नहीं किया. इस वजह से भी इस कहानी को याद किया जाना चाहिए.देखिए, आमतौर पर यथार्थवादी माने जानेवाले और निर्मल वर्मा के शब्दों में दुःख और विषाद के कथाकार प्रेमचंद का दिल इन हजारों रोजेदारों को नमाज़ अता करते देख जिस तरह उल्लसित हो उठता है वैसे ही उनकी भाषा भी खिल उठती है.

जैसे सामूहिक नमाज़ प्रेमचंद के भीतर के कवि को जगा देती है वैसे ही वह बुलबुले हिन्द सरोजिनी नायडू की भाषा में ओज भर देती है.वे प्रेमचन्द की समकालीन हैं और एक तरह से हमपेशा और हमखयाल भी.1917 के “इस्लाम के आदर्श” नामक अपने एक व्याख्यान में वे कहती हैं, “ इस्लाम में व्याप्त जनतंत्र का दिन में पांच बार मुजाहिरा होता है जब किसान और बादशाह एक ही सफ में दोजानू होते हैं और कहते हैं, “अल्लाहो अकबर!”. इस्लाम के भीतर की इस अटूट एकता ने मुझे बार बार चकित किया है जो खुद ब खुद इंसान को बिरादर में बदल देती है. भाईचारे की यह महान भावना थी और इंसानी इन्साफ का गहरा बोध था जो भारत को अकबर के शासन का उपहार है. क्योंकि वह सिर्फ अजीमुश्शान मुग़ल अकबर न था , बल्कि महान मुसलमान अकबर था,जिसे यह मालूम था कि आप एक मुल्क को जीत सकते हैं, लेकिन जिन पर जीत हासिल की गई है उन्हें किसी भी तरह अपमानित न करना चाहिए.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इस माहं मुसलाम अकबर ने ही भारत को शान्ति और सलामती के जज्बे वाला संबोधन सलाम दिया, ऐसा सरोजिनी कहती हैं.

एक उत्तर प्रदेश के और दूसरी हैदराबाद की. नमाज़, सामूहिक नमाज़ का वर्णन करने करती उनकी भाषा की उदात्तता देखिए. इसकी तुलना कीजिए उस नफरत से जो उत्तर प्रदेश के आज के मुख्यमंत्री के उन शब्दों से टपक रही है जिनमें उन्होंने राहुल गाँधी के मंदिर में बैठने के तरीके की खिल्ली उड़ाई. राहुल गाँधी को कहा गया कि वे मंदिर में यों बैठे थे जैसे मस्जिद में नमाज़ के लिए बैठे हों. ओमर अब्दुल्लाह को यह बताना पड़ा की नमाज़ के दौरान आप बैठते नहीं. नामाज़ में शरीर निरंतर गतिमान रहता है,नमाज़ की अपनी एक लय है.

प्रेमचंद के उत्तर प्रदेश और सरोजिनी के भारत ने इन सत्तर सालों में कितना लंबा सफ़र तय कर कर लिया है! हमारा भावनात्मक पतन कितना अधिक हो चुका है!

मंदिर में मस्जिद की मुद्रा मात्र से नाक भौं सिकोड़ने वाले गाँधी को क्या कहेंगे जिन्होंने कहा था कि अगर वे गीता पूरी तरह भी भूल जाएं और “ द सरमन ऑन द माउंट’ ही उन्हें याद हो, तो भी उससे उनको उतना ही अध्यात्मिक आनंद मिलेगा.

वे दिन चले गए जब दूसरे धर्म और उनकी रीति रिवाज हमें उनके प्रति उत्सुक करते थे. अब हमें उनसे डर लगने लगा है!
पिछले जुमों को जब गुडगाँव के नमाजियों की सामूहिक प्रार्थना पर जब हमले हुए तो प्रेमचन्द और सरोजिनी नायडू की शिद्दत से याद आई. हमारे यहाँ और पूरी दुनियामिएँ किसी के भी पवित्र कार्य में बाधा पहुंचाना पाप माना जाता है.लेकिन यहाँ तो नमाज़ भंग करके शान बघारी जा रही है और दुबारा यह करने की धमकी दी जा रही है! मानो कोई बड़ा आध्यात्मिक मिशन पूरा किया जा रहा हो!

गुडगाँव के हिन्दुओं को यह कहकर डराया जा रहा है कि एक साथ नमाज़ के लिए इकठ्ठा हुए मुसलमान ताकत दिखा रहे हैं, कि वे ज़मीन पर कब्जा करना चाहते हैं.. यही मौक़ा है कि उस इलाके के हिंदू मित्र इन नमाज़ों की जगहों पर जाएँ और सिर्फ इन्हें देखें. देखें कि कितनी खामोशी से वे आते हैं और वजू करके एक कतार में खड़े होकर कितनी तन्मयता से नमाज़ पढ़ते है और फिर उतनी ही शान्ति से जानमाज़ उठा कर तह करते हैं और अलग अलग अपने काम पर चले जाते हैं. हिंदू मित्र देखें कि वे किस सब्र से मई की इस तीखी धूप में अपना धर्म निभाते हैं!

रमजान आनेवाला है. अभी जब मैं यह लिख रहा हूँ, गुडगाँव में नमाजियों को पुलिस बता रही है कि उन्हें कहाँ नमाज़ पढ़नी है! उनमें बेचैनी है और फिक्र है! क्या हिंदू इस बेचैनी से खुश हैं? क्या वे कविगुरु रविबाबू के 1912 की इन पक्तियों को भूल चुके हैं, “ हे प्रभु! मेरी प्रार्थना सुनो, मैं उस एक के स्पर्श का आनंद इस अनेक की क्रीड़ा में ले सकूँ.”
अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं।

Read this article in English: After Khattar’s remark, recall what Premchand and Sarojini Naidu had said about namazis

share & View comments